भोपाल। गर्मी का समय आते ही मप्र (MP) में पीला सोना (Yellow Gold) के नाम से मशहूर महुआ (Mahua) के फूल टपकना शुरू हो गए हैं। जिनकी सुगंध से समूचा वनाचंल महक रहा है। महुआ एकत्रित करने के लिए आदिवासी समुदाय सहित ग्रामीण सुबह से ही जंगलों और खेतों में पहुंच रहे हैं। सूर्य निकलने एवं ताप बढऩे के साथ-साथ पेड़ों से फूल गिरना भी कम होता जाता है। आदिवासी समाज के लिए महुआ फूल रोजी -रोटी का जरिया होता है। इसके लिए प्रदेश सरकार द्वारा भी महुआ का समर्थन मूल्य तय करते हुए 30 रुपए प्रति किलो किया गया है।
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की कमी होने से आदिवासी समाज के लिए गर्मी का मौसम किसी उत्सव से कम नहीं होता। इस मौसम में आदिवासी कुनबा बड़ी संख्या में महुआ के फूल बीनने में लगा रहता है।वहीं ग्रामीणों ने मांग की है कि महुआ के गुणों को देखते हुए महुआ से औषधीय उत्पाद तैयार करने के साथ ही पौष्टिक खाद्य पदार्थ तैयार करने की योजना बनानी चाहिए। ऐसा करने से क्षेत्रीय लोगों को रोजगार का अवसर मिलेगा और उनकी आय में वृद्घि होगी।
संक्रमण काल में राहत
कोरोना संक्रमण में मजदूरों की स्थिति खराब होने के बाद महुआ से आदिवासी परिवारों को थोड़ी राहत मिल रही है। बीते साल कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए घोषित किए गए लाकडाउन से व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद होने के साथ ही सामाजिक दूरियां बनाए रखना भी नितांत आवश्यक हो गया था। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का सृजन न के बराबर रह गया था। जिसके बाद ग्रामीणों ने संग्रहित महुआ का विनमय कर अपने परिवार का भरण पोषण किया एवं अपनी अर्थव्यवस्था को सुचारू रखा।
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