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    चले गए महेंद्र सेठिया… यादों में हमेशा जि़ंदा रहेगा उनका किरदार

  • August 19, 2022

    हुए नामवर बे-निशां कैसे कैसे
    ज़मीं खा गई आसमाँ कैसे कैसे।

    बड़ी अफसोसनाक खबर है। महेंद्र सेठिया साब कल इस फानी दुनिया से कूच कर गए। 73 बरस के महेंद्र भाई लिवर की तश्वीकनाक बीमारी से जूझ रहे थे। कोई 10 बरस पेले तलक, यानी साल 2012 में जब दैनिक जागरण ग्रुप ने नईदुनिया को खरीदा नहीं था, वे मालवा सहित पूरे सूबे के इस मक़बूल अखबार के मैनेजिंग एडिटर थे। जो लोग इंदौर की नईदुनिया से रूहानी तौर से बावस्ता रहे हैं, जिन रीडरों ने साठ से दो हज़ार की दहाई तलक नईदुनिया के कमिटेड जर्नलिज्म, अख़बारी ज़बान की खूबसूरती और इंदौर सहित पूरे सूबे के आमफहम को तरजीह देने वाले उस अखबार के जलवे को देखा है वे महेंद्र सेठिया की मखनातीसी (चुम्बकीय) शख्सियत से ज़रूर वाकिफ होंगे। नईदुनिया अखबार को इंदौर में तीन पार्टनरों ने खड़ा किया था। उनमें बाबू लाभचंद छजलानी, बसंतीलाल सेठिया और नरेंद्र तिवारी (तीनों स्वर्गीय) शामिल थे। इस पहली पीढ़ी के बाद नईदुनिया की कमान दूसरी पीढ़ी के अभय छजलानी, महेंद्र सेठिया और राजेंद्र तिवारी के पास आई। तभी से महेंद्र सेठिया नईदुनिया के मैनेजिंग एडिटर रहे। इस अखबार के बिकने के बाद महेंद्र भाई दस बरसों से मीडिया से बहुत दूर हो गए और अपने भाई के साथ झलारिया बायपास पे शिशुकुंज स्कूल चलाने लगे। गोरे खूबसूरत महेंद्र सेठिया को जिसने भी देखा उनके चेहरे पे कुदरती मुस्कान के साथ ही देखा। तब की नईदुनिया में अखबार मालिक और एडीटोरियल स्टाफ की डेस्क आमने सामने होती थी।


    वहां संपादक या मालिकों में चेम्बर कल्चर नहीं था। अभय छजलानी साब का मिजाज काफी कमसुखन (रिज़र्व) था। लिहाज़ा उनकी डेस्क पे कम ही लोग जाते। उनके बरक्स हसमुख और पूरे स्टाफ की फिकर करने वाले महेंद्र भाई की डेस्क पे महफि़ल ही सजी रहती। एडीटोरियल स्टाफ के अलावा इंदौर के जो भी नेता, अभिनेता, अफसर या सोशल वर्कर वहां आते तो महेंद्र भाई के पास ज़रूर जाते। जिसपे भी उनकी नजऱ पड़ती, वे तपाक से इंदौरी लहजे में कहते- आओ बाबू आओ, बेठो यार चाय पियोगे के कचोरी बुलऊं…। जो लोग नईं जानते उने बता दूं कि पुराने आरटीओ के सामने वाले पुराने नईदुनिया का केंटीन पूरे इंदौर में फेमस था। वहां अदरक-इलायची वाली पेशल चाय, कचोरी और पोहे-जलेबी भोत लज़ीज़ बनते थे। इस केंटीन को लेके महेंद्र सेठिया भोत सचेत रेते। वो केंटीन की खानपान की क्वालिटी चेक करने के लिए वहां का राउंड ज़रूर लगाते। इस केंटीन में अखबारनवीसों के अलावा इंदौर के दीगर लोग भी आते। महेंद्र सेठिया वाहिद ऐसे शख्स थे जिससे अखबार का कोई भी बन्दा अपनी दिक्कत-परेशानी बता सकता था। वे उसे गौर से सुनते और बनते कोशिश उसके मसले का हल निकालते। उनके दौर में मैनेजमेंट या एचआर आज की तरह बेरहम नहीं था। महेन्द्र जी के पास अपना मसला ले जाने वाले बंदे को एतबार रहता कि उसका काम हो जायेगा। वे बहुत उजले और लाइट कलर के साफ शफ्फ़ाफ़ कपड़े पहनते थे। वो बहुत कम किसी पे नाराज़ होते। थोड़ी देर बाद जब उनकी नाराज़ी खत्म होती तो सामने वाले से केते- थोड़ा ध्यान रखा करो बाबू… क्या। उनकी सादगी और शराफत पूरे नईदुनिया में मशहूर थी। उनसे जो भी मिलता वो उनके अखलाक से मुतास्सिर हो जाता। उनके मरहूम माधवराव सिंधिया से उम्दा मिरासिम थे। शायद इसी लिए वे एमपीसीए के ओहदेदार बने। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी उनके भेतरीन राब्ते रहे। पुराने नईदुनिया यानी अस्सी की दहाई में महेंद्र सेठिया खेल हलचल पत्रिका के एडिटर भी रहे। उन्ने नईदुनिया प्रिंटरी और मैनेजमेंट का काम निहायत सलाहियत से किया। दस बरस पेले जब जागरण ग्रुप ने नईदुनिया को खरीदा तब महेंद्र जी ने झलारिया बायपास पे स्कूल खोल लिया। पुराने आरटीओ वाले नईदुनिया दफ्तर से उनकी ढेरों यादें जुड़ी हुई हैं। इस पुराने दफ्तर से जुड़ी हज़ारों यादों में राहुल बारपुते उर्फं बाबा,राजेंद्र माथुर उर्फ रज्जु बाबू, विष्णु चिंचालकर उर्फ गुरुजी सहित शाहिद मिजऱ्ा, शिव अनुराग पटेरिया और दिलीप चिंचालकर (सभी मरहूम) सहित आज मुल्क में नाम कमा रहे तमाम सहाफियों का फ्लेशबैक जब भी गूंजेगा तब उसमें महेंद्र भाई की प्यार भरी आवाज़ ज़रूर सुनाई देगी। जब तलक आप ये कॉलम पढेंगे तब तलक महेन्द्र सेठिया इंदौर के रीजनल पार्क मुक्तिधाम में पंचतत्व में मिल चुके होंगे। महेन्द्रजी अपने चाहने वालो के बीच हमेशा जि़ंदा रहेंगे। आपको अग्निबाण परिवार की तरफ से पुरनम आंखों से खिराजे अक़ीदत।

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