नई दिल्ली। महाराष्ट्र (Maharashtra) में शिवसेना (Shiv Sena) के बागी एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के दो तिहाई संख्या वाले गुट ने भाजपा (BJP) के साथ सरकार (government) बना ली है, लेकिन इस बागी गुट (rebel group) ने न तो अपना विलय भाजपा में किया है और न ही खुद के मूल शिवसेना पार्टी से होने का दावा किया है।
संविधान की 10वीं अनुसूची के अनुसार, अयोग्यता से बचने के लिए इन दोनों में एक शर्त को पूरा करना बेहद आवश्यक है। फिलहाल यह दोनों सवाल खुले हैं और कोर्ट ने गत शुक्रवार को शिवसेना (उद्धव ठाकरे) की याचिका को 11 जुलाई के लिए स्थगित करते हुए यह कहा है कि हमने आंखें बंद नहीं कर रखी हैं, हम सब देख रहे हैं और इस पर उचित समय पर विचार होगा।
इससे स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे को अंतिम रूप से सुनेगा। अभी तक कोर्ट ने जो आदेश (फ्लोर टेस्ट करने और स्पीकर को हटाने के प्रस्ताव के लंबित रहते विधायकों की अयोग्यता पर फैसला नहीं करने के) दिए हैं, वे बेहद संक्षिप्त हैं तथा तार्किक निर्णय नहीं हैं।
संविधान विशेषज्ञों के अनुसार, यह स्थिति संभवत: कोर्ट के सामने पहली बार आई है कि दो तिहाई गुट, जो विद्रोह करके अलग हो गया। बाद में मुख्यमंत्री के इस्तीफा देने पर बिना दूसरे दल में विलय किए या स्वयं मूल पार्टी घोषित किए दूसरे दल के साथ सरकार बना ले और अयोग्यता के कानून संविधान की दसवीं अनुसूची की मार से बच जाए।
कोर्ट ने मामले में नबाम रबिया, 2016 (अरुणाचल प्रदेश) के मामले में पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा दी गई नजीर को प्रथम दृष्टया आधार बनाया था, जिसमें स्पीकर के खिलाफ हटाने का प्रस्ताव (अनुच्छेद 197 के तहत) लंबित रहते उन्हें विधायकों को अयोग्य ठहराने से रोक दिया गया था।
कोर्ट ने इस मामले में एक और बीच का रास्ता निकाला, जिससे वह संविधान के अनुच्छेद 212 (सदन की कार्यवाही को अदालतों सवाल करने से छूट) के दायरे में नहीं आया और स्पीकर की नोटिस का जवाब देने का समय 12 जुलाई तक बढ़ा दिया। इससे कोर्ट ने सदन की कार्यवाही (स्पीकर के नोटिस आदि) में दखल देने से स्वयं को रोक लिया और फ्लोर टेस्ट का आदेश भी दे दिया। ये दोनों ही आदेश संविधान की दसवीं अनुसूची के सामने आ गए हैं।
विशेषज्ञ कहते हैं कि कोर्ट ने ये आदेश देकर संविधान की 10वीं अनुसूची को लगभग निष्प्रभावी कर दिया है। क्योंकि इस आदेश से विधायकों को यह छूट मिलती हुई दिख रही है कि वह अपनी अयोग्यता बचाने के लिए स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव दे दें।
विस्तृत विचार करना होगा
विशेषज्ञों ने कहा कि कोर्ट स्पीकर की संस्था को बचाने के लिए इस मुद्दे पर विस्तृत विचार करना होगा और यह विचार दो जजों की पीठ नहीं कर सकती। इसे संविधान पीठ को भेजना होगा। क्योंकि 2019 में बालासाहेब पाटिल बनाम महाराष्ट्र विधानसभा केस में तीन जजों की पीठ ने कहा था कि संसद को 10वीं अनुसूची को मजबूत करने के लिए कदम उठाने होंगे। इसके बाद 2020 में मध्यप्रदेश के केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश देते हुए कहा कि विधायकों को उठाकर कहीं और सुरक्षित रिसोर्ट आदि में शिफ्ट करना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के महाराष्ट्र में स्पीकर की हटाने के प्रस्ताव के लंबित रहते विधायकों की अयोग्यता का फैसला नहीं करने के आदेश से कई सवाल पैदा हुए हैं, जिनका फैसला सुप्रीम कोर्ट को आने वाले समय में देगा। संविधान की 10वीं अनुसूची की स्थिति कमजोर हुई है या मजबूत यह तय होना बाकी है।
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