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    महाराष्ट्र : दुर्गाडी किले के 48 साल पुराने विवाद पर कोर्ट ने दिया फैसला, कहा- यहां मस्जिद नहीं मंदिर था

  • December 11, 2024

    ठाणे । महाराष्ट्र (Maharashtra) के ठाणे जिले (Thane district) में स्थित ऐतिहासिक दुर्गाडी किले (Durgadi Fort) को लेकर 48 साल से चल रहे विवाद पर आज कल्याण सेशन कोर्ट (kalyan sessions court) ने फैसला सुनाया है. कोर्ट ने इसे मंदिर घोषित करते हुए कहा कि किला सरकारी संपत्ति बना रहेगा. यह मामला पिछले 48 सालों से लंबित था. आखिरकार कल्याण सेशन कोर्ट ने इस मामले में आदेश जारी किया है कि ऐतिहासिक दुर्गाडी किला मस्जिद नहीं बल्कि मंदिर है. इसके बाद हिंदू संगठनों और शिवसेना के पदाधिकारियों ने कल्याण दुर्गाडी किले में दुर्गा देवी की आरती कर जश्न मनाया.

    कल्याण के दुर्गाडी किले पर एक मंदिर है इसको कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय के न्यायमूर्ति ए.एस. लांजेवार ने दुर्गाडी किले पर मंदिर के दावे को स्वीकार कर लिया है. मामले में याचिकाकर्ता और हिंदू फोरम के अध्यक्ष दिनेश देशमुख ने मंगलवार को दुर्गाडी किले में मीडिया को बताया कि कोर्ट ने कल्याण कोर्ट से मामले को वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर करने के अन्य धर्मों के दावे को खारिज कर दिया है.

    दरअसल, पिछले 48 सालों से दुर्गाडी किले में स्थित मंदिर की मस्जिद को लेकर दो धर्मों के बीच लड़ाई कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय में चल रही थी. पहले यह दावा ठाणे जिला न्यायालय में लंबित था, जिसके बाद कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय में दावा दायर किया गया था. याचिकाकर्ता दिनेश देशमुख ने कहा, 1971 में ठाणे जिला कलेक्टर ने घोषित किया था कि दुर्गाडी किले में एक मंदिर है. इसके बाद इस जगह को मंदिर की मस्जिद बताने के लिए जांच की अर्जी दायर की गई थी. इस दावे में एडवोकेट भाऊसाहेब मोदक ने केस की पैरवी की थी. मस्जिद में खिड़कियां नहीं हैं, यहां मंदिर की खिड़कियां हैं. यहां मूर्तियां रखने के लिए एक मंदिर (चौथारा) है. इसलिए सरकार ने घोषित किया था कि इस जगह पर एक मंदिर है.


    वहीं, 1975-76 में मुस्लिम समुदाय की ओर से ठाणे जिला न्यायालय में अर्जी दाखिल की गई थी कि दुर्गाडी किला मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद है. इसके बाद दो साल तक यह दावा चलता रहा. इसके बाद यह दावा कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया. अन्य धार्मिक लोगों ने मांग की कि यह दावा कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय से वक्फ बोर्ड को स्थानांतरित कर दिया जाए. याचिकाकर्ता दिनेश देशमुख ने बताया कि न्यायालय ने इस मांग को खारिज कर दिया और सरकार के पहले के फैसले को स्वीकार करते हुए कहा कि दुर्गाडी किले पर मंदिर है.

    आंदोलन और शिवसेना की भूमिका
    साल 1976 में बाला साहेब ठाकरे और आनंद दिघे ने “घंटानाद आंदोलन” चलाकर इस स्थान पर मंदिर के अधिकार के लिए संघर्ष किया. इस वर्ष भी शिवसेना और हिंदू संगठनों ने मंदिर बंद होने पर विरोध प्रदर्शन किया था.

    हिंदू मंच के अध्यक्ष (याचिकाकर्ता) दिनेश देशमुख ने कहा कि वर्ष 1971 में ठाणे जिला कलेक्टर कार्यालय में इस स्थान को मंदिर घोषित किया गया था. यह मंदिर है या मस्जिद, इसकी जांच के लिए याचिका दायर की गई थी. भाव साहेब मोदक ने हिंदुओं की ओर से याचिका दायर की और अपने पक्ष को बहुत अच्छे से पेश किया. उन्होंने कहा कि मस्जिद में खिड़कियां नहीं होती हैं, जबकि मंदिर में खिड़कियां होती हैं और मूर्ति रखने के लिए एक चबूतरा बनाया गया है. इस स्थान पर दिवाली जैसा ढांचा बनाया गया है और यह एक मंदिर है.

    उस समय सरकार ने इसे घोषित किया था. लेकिन वर्ष 1976 में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने याचिका दायर की कि यह मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद है. इस दावे की सुनवाई ठाणे कोर्ट में हुई. बाद में इसे कल्याण कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया. उस समय यह भी दावा किया गया कि यह वक्फ है. इसलिए इसकी सुनवाई कल्याण कोर्ट में नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड में होनी चाहिए. लेकिन कल्याण जिला न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और आज न्यायालय ने फैसला दिया है कि यहां मंदिर है और यह निर्णय योग्य है. हम सभी इसके लिए बहुत खुश हैं.

    कल्याण डीसीपी अतुल झेंडे ने बताया कि आज कल्याण कोर्ट में दुर्गाडी किले का फैसला आया है. यह फैसला सरकार के पक्ष में है. हमें अभी फैसले की कॉपी नहीं मिली है, लेकिन हमने सुरक्षा के मद्देनजर पूरे कल्याण में पुलिस सुरक्षा बढ़ा दी है. यह सुरक्षा इसलिए लगाई गई है ताकि किसी भी तरह की कोई अप्रिय घटना न हो. फिलहाल हर जगह शांति है. हम नागरिकों से भी अपील कर रहे हैं कि किसी भी अफवाह पर विश्वास न करें. कोर्ट में जो हुआ उसके बारे में बात करना ठीक नहीं है.

    सरकारी वकील सचिन कुलकर्णी ने बताया कि कुछ साल पहले दुर्गाडी किले की मरम्मत के लिए अनुमति मांगी गई थी. कोर्ट ने 1994 में अनुमति दे दी थी. अभी भी इसका कुछ हिस्सा ढहने के कगार पर है. किले के कुछ पुराने हिस्से जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं और उन्हें नष्ट किया जा सकता है. प्राचीन वास्तुकला को संरक्षित करना सरकार की प्राथमिकता है. यह किला सरकारी संपत्ति है. मुस्लिम समुदाय ने दावा किया था कि इस जगह पर मस्जिद और प्रार्थना स्थल है. इसलिए इस जगह को मुस्लिम समुदाय को देने के लिए याचिका दायर की गई थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया है.

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