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    Maharashtra: महायुति की सुनामी में ढहे पुराने किले, PM मोदी बोले- परजीवी बन गई कांग्रेस

  • November 24, 2024

    मुम्बई। महाराष्ट्र (Maharashtra) में महायुति गठबंधन (Mahayuti Alliance) की जबरदस्त जीत ने राज्य की राजनीति के समीकरण ही पलटकर रख दिए। बीजेपी और उसके सहयोगियों की इस सुनामी में कई पुराने किले ढह गए। बीजेपी, एनसीपी और शिंदे सेना के महायुति गठबंधन (Grand alliance of BJP, NCP and Shinde Sena) ने 288 में से 235 सीटों पर कब्जा कर लिया। वहीं महाविकास अघाड़ी (Mahavikas Aghadi) को 50 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। महाविकास अघाड़ी के दलों की स्थिति यह हो गई कि वे निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या से भी कम रह गए।


    मराठवाड़ा में पलट गई बाजी
    छह महीने पहले ही लोकसभा चुनाव के दौरान पूरे महाराष्ट्र में माहौल महाविकास अघाड़ी के पक्ष में दिखाई दे रहा था। मराठवाड़ा की सात लोकसभा सीटों में से छह में महायुति को हार का सामना करना पड़ा था। छह महीने में ही ऐसा हुआ कि महायुति ने 46 में से 41 विधानसभा सीटों पर कब्जा कर लिया। इसमें बीजेपी के खाते में 19, शिवसेना के 13 और एनसीपी के खाते में 8 सीटें आईं।

    इस नाटकीय बदलाव के पीछे कई वजहें हैं। मराठा आरक्षण एक्टिविस्ट मनोज जरांगे के आंदलन की वजह से लोकभा चुनाव में महायुति को नुकसान उठाना पड़ा था। हालांकि इस चुनाव में मनोज जरांगे के फैक्टर असर नहीं दिखा सका। उन्होंने एन मौके पर विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। वहीं उनके समुदाय से दर्जनों प्रत्याशियों ने नामांकन किया था। ऐसे में मराठा वोटर्स में उनकी पैठ कम हो गई।

    बीजेपी ने सुधार के लिए सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया। एक राजनीतिक जानकार ने कहा, मराठवाड़ा के लातूर, उस्मानाबाद, नांदेड़ जिलों में आरएसएस की अच्छी पकड़ है। इसके अलावा कई जिलों में धर्मुगरुओं ने भी कमान संभाली और हिंदू वोटरों के ध्रुवीकरण में लग गए। ऐसे में ओबीसी वोट भी महायुति की ओर शिफ्ट हुआ। हालांकि नांदेड़ लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा।

    विदर्भ में भी लोकसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को झटका लगा था। इस बार महायुति ने 62 में से 39 सीटों पर कब्जा किया है। कांग्रेस कोयहां काफी नुकसान हुआ है। कोंकण बेल्ट और मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन में ठाकरे परिवार का दशकों पुराना किला ढह गया। यहां 39 में से केवल एक सीट पर ही उद्धव ठाकरे की सेना चुनाव जीत पाई। वहीं 35 सीटों पर महायुति का कब्जा हो गया। माना जाता है कि यहां एकनाथ शिंदे की जमीनी पकड़ है। इसके अलावा आरएसएस का भी अच्छा प्रभाव हहै। मीरा भयंदर की सीट पर बीजेपी के नरेंद्र मेहता ने कांग्रेस के मुजफ्फर हुसैन को 1 लाख 44 हजार वोटों से हराया।

    पश्चिमी महाराष्ट्र में महायुति को 70 में से 53 सीटों पर सफलता मिली। महाविकास अघाड़ी को केवल 12 सीटें ही मिलीं। एनसीपी नेता अजित पवार ने खुद कहा कि उन्हें यह तो पता था कि जीत होगी लेकिन इतनी बड़ी जीत का अंदाजा नहीं था। कोल्हापुर जिले की सभी 10 सीटों पर महायुति का ही कब्जा हो गया। उत्तर महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में महायुति को 6 में से चार पर हार का सामना करना पड़ा था। हालाांकि इस बार वोट एकदम से महायुति की ओर शिफ्ट हो गया। नारायण राणे का प्रभाव इस इलाके में देखने को मिला। जानकारों का कहना है कि शिवसेना और एनसीपी के टूटने की वजह से वोट भी महायुति की ओर शिफ्ट हुआ है। ऐसे में टूटी पार्टियों का जनाधार तेजी से गिरा है।

    कांग्रेस अपनी ही नहीं, साथियों की भी नाव डूबो देती हैः PM मोदी
    महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति की बंपर जीत और यूपी विधानसभा उपचुनावों में बीजेपी की धमाकेदार जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने कांग्रेस पर जमकर वार किया। पीएम मोदी ने दावा किया कि कांग्रेस ने महाराष्ट्र में वोट पाने के लिए टेम्परेरी रूप से वीर सावरकर को गाली देना बंद किया है। कांग्रेस अब भारतीय राजनीति में परजीवी बनकर रह गई है, जो अपने साथियों की भी नाव डुबो देती है। कांग्रेस का अब अपने दम पर सरकार बनाना मुश्किल हो गया है। वहीं, यूपी के उपचुनावों में सपा द्वारा एक भी सीट न दिए जाने पर पीएम मोदी ने तंज कसते हुए कहा कि अच्छा है कि यूपी जैसे राज्य में कांग्रेस के सहयोगियों ने उससे जान छुड़ा ली, वरना उसके सहयोगियों को लेने के देने पड़ जाते। मालूम हो कि यूपी उपचुनाव की सभी 9 सीटों पर सपा ने चुनाव लड़ा था। इंडिया गठबंधन के तहत बने अलायंस में सपा ने कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी थी। हालांकि, खैर सीट पर कांग्रेस नेता चारू कैन को जरूर मैदान में उतारा था, लेकिन उन्हें भी अपने ही सिंबल पर लड़वाया।

    पीएम मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि उसका अहंकार सातवें आसमान पर है। सच्चाई यह है कि कांग्रेस एक परजीवी पार्टी बन चुकी है। वह सिर्फ अपनी ही नहीं, बल्कि अपने साथियों के नाव को भी डुबो देती है। महाराष्ट्र में भी हमने यही देखा है। वहां पर कांग्रेस और उसके गठबंधन ने महाराष्ट्र की हर पांच में से चार सीट हार गई। अघाड़ी के हर घटक का स्ट्राइक रेट 20 फीसदी से भी नीचे है। यह दिखाता है कि कांग्रेस खुद भी डूबती है और दूसरों को भी डूबोती है। महाराष्ट्र में अब सबसे ज्यादा सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ी। उतनी ही बड़ी हार इनके सहयोगियों वालों को भी मिली। वह तो अच्छा है कि यूपी जैसे राज्यों में कांग्रेस के सहयोगियों ने उससे जान छुड़ा ली, वरना वहां भी कांग्रेस के सहयोगियों को लेने के देने पड़ जाते।

    पीएम मोदी ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने हिंदू संस्कार और परंपराओं को जीते हुए पंथनिरपेक्षता की राह को चुना था। तभी देश के महापुरुषों ने संविधान सभा में डिबेट की थी, उसमें भी इस पर चर्चा हुई थी। लेकिन कांग्रेस के इस परिवार ने झूठे सेक्युलरिज्म के नाम पर उस महान परंपरा को तबाह कर दिया। कांग्रेस ने तुष्टिकरण का जो बीज बोया, वह संविधान निर्माताओं के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है।

    ‘जाते-जाते संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दीं’
    पीएम मोदी ने कहा कि दशकों तक कांग्रेस ने यही खेल खेला। उसने तुष्टिकरण के लिए कानून बनाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की परवाह नहीं की। इसका एक उदाहरण वक्फ बोर्ड है। दिल्ली के लोग चौंक जाएंगे, हालात यह थी कि 2014 में इन लोगों ने सरकार से जाते-जाते दिल्ली के आसपास की अनेक संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दी थीं। बाबा साहेब अंबेडकर ने जो हमें संविधान दिया है, उसमें वक्फ कानून का कोई स्थान ही नहीं है, लेकिन फिर भी कांग्रेस ने तुष्टिकरण के लिए वक्फबोर्ड जैसी व्यवस्था पैदा कर दी, ताकि कांग्रेस के परिवार का वोटबैंक बन सके। सच्ची पंथनिरपेक्षता को एक तरह से मृत्युदंड देने की कोशिश की है।

    ‘एक समय था जब कांग्रेस के नेता जाति के खिलाफ बोलते थे’
    प्रधानमंत्री ने निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस के शाही परिवार की सत्ताभूख इतनी हो गई है कि उन्होंने सामाजिक न्याय की भावना को भी चूर-चूर कर दिया। एक समय था जब कांग्रेस के नेता जाति के खिलाफ बोलते थे, जनता को समझाते थे। लेकिन आज यही कांग्रेस और उसका परिवार खुद की सत्ताभूख को शांत करने के लिए जाति का जहर फैला रहा है। इन लोगों ने सामाजिक न्याय का गला घोंट दिया है। एक परिवार की सत्ताभूख इतने चरम पर है कि उन्होंने खुद की पार्टी को ही खा लिया है। देश के अलग-अलग भागों में कई जमानों के कांग्रेस कार्यकर्ता हैं। पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, जो अपने जमाने की कांग्रेस को ढूंढ रहे हैं।

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