img-fluid

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव : फिर नाराज अखिलेश की पार्टी, क्या इंडिया ब्लॉक में लेगी अलग राह

October 18, 2024

नई दिल्ली. महाराष्ट्र (Maharashtra) में विधानसभा चुनाव ( Assembly Elections) हैं और गठबंधनों की फाइट भी अब सामने आने लगी है. हरियाणा (Haryana) में कांग्रेस (Congress) की हार के बाद आइना दिखाने वाली शिवसेना (UBT) ने सीट शेयरिंग पर राहुल गांधी से बातचीत की बात कही है. वहीं, समाजवादी पार्टी (SP) के प्रदेश अध्यक्ष अबू आजमी ने भी एमवीए की बैठकों में नहीं बुलाए जाने को लेकर नाराजगी जाहिर की है.


सपा प्रमुख अखिलेश यादव आज से खुद प्रचार के मैदान में उतर रहे हैं. गठबंधन में सीटों को लेकर जारी खींचतान के बीच अखिलेश की मालेगांव और धुले में रैलियां होनी हैं. सपा के तेवर देख अब बात इसे लेकर भी हो रही है कि क्या महाराष्ट्र में भी मध्य प्रदेश वाली लड़ाई दिखेगी?

मध्य प्रदेश में कैसी लड़ाई थी?
लोकसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव थे. इंडिया ब्लॉक के घटक कांग्रेस और सपा के बीच अंतिम समय तक सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत चलती रही. कांग्रेस की लोकल लीडरशिप सपा के वजूद पर सवाल उठाते हुए गठबंधन के खिलाफ थी. सपा दर्जनभर सीटों की डिमांड कर रही थी.

सपा नेताओं को उम्मीद थी कि उन्हें कांग्रेस से गठबंधन में आठ से 10 विधानसभा सीटें मिल जाएंगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कांग्रेस ने 2018 के एमपी चुनाव में पार्टी की जीती सीट भी नहीं छोड़ी. बाद में सपा ने अकेले ही अपने उम्मीदवार उतारे और अखिलेश ने कैंप कर प्रचार की कमान संभाली. सपा भले ही खाता नहीं खोल पाई लेकिन कई सीटों पर कांग्रेस का खेल जरूर खराब कर गई.

महाराष्ट्र में मध्य प्रदेश की बात क्यों?
अब महाराष्ट्र चुनाव में भी वैसे ही हालात बनते नजर आ रहे हैं. सपा दर्जनभर सीटों पर दावेदारी कर रही है. सपा की डिमांड तो हरियाणा चुनाव में भी गठबंधन की थी लेकिन वहां पार्टी बातचीत की टेबल से ग्राउंड तक पहुंच ही नहीं पाई. हरियाणा के झटके से सतर्क सपा एमपी मॉडल अपनाते हुए सीट बंटवारे पर बातचीत के साथ-साथ चुनावी तैयारियों को भी रफ्तार देने की रणनीति पर काम कर रही है. संकेत साफ हैं कि पार्टी नहीं चाहती कि गठबंधन न हो पाए तो पार्टी हरियाणा की तरह चुनाव मैदान से बाहर रह जाए.

सपा की सक्रियता कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) के लिए साफ संदेश है कि गठबंधन हो या ना हो, पार्टी चुनावी रणभूमि में उतरेगी. महाराष्ट्र के सपा अध्यक्ष अबू आजमी ने तो बाकायदा सीटों के नाम गिनाते हुए दो टूक कह दिया है कि हमारी पूरी तैयारी है और गठबंधन में सीटें नहीं मिलीं तो हम अखिलेश यादव से चर्चा कर अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने को भी तैयार हैं. उन्होंने ये भी कहा है कि सपा अकेले चुनाव मैदान में उतरी और मुस्लिम वोट बंटे तो इसके लिए एमवीए जिम्मेदार होगा.

जहां जो मजबूत, वो वहां दूसरे को सटने क्यों नहीं देता?
पहले मध्य प्रदेश और फिर हरियाणा, दोनों ही राज्यों में कांग्रेस मजबूत है. दोनों राज्यों की चुनावी फाइट में कांग्रेस मेन फ्रेम में होती है और पार्टी ने यहां सपा हो या आम आदमी पार्टी, किसी को भी साथ नहीं लिया. आम आदमी पार्टी ने पंजाब में कांग्रेस को साथ लेने से परहेज किया. इंडिया ब्लॉक की एक और घटक तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) भी आम चुनाव में पश्चिम बंगाल की सीटों पर एकला चलो के फॉर्मूले पर ही बढ़ी. अब महाराष्ट्र में भी कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) को लेकर सपा की तल्खी भी इसी ट्रेंड के विस्तार का संकेत बताई जा रही है. ऐसे में सवाल है कि जो जहां मजबूत है, वो वहां दूसरे को सटने क्यों नहीं देती? इसे तीन पॉइंट में समझा जा सकता है.

सियासी जमीन
सियासत में दोस्ती हो या दुश्मनी, स्थायी नहीं होते. आज जो साथ है, वह कल भी साथ रहेगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं होती. यह भी एक वजह है कि जो पार्टी जहां मजबूत है, अपनी उंगली पकड़ाकर किसी दूसरे दल को एंट्री नहीं करने देना चाहती. राजनीतिक दलों को यह भय लगा रहता है कि कहीं उसकी उंगली पकड़कर आई पार्टी उसकी ही सियासी जमीन न खिसका दे, उसके लिए ही चुनौती न बन जाए.

वोटबैंक
एक चिंता वोटबैंक की भी है. महाराष्ट्र के संदर्भ में देखें तो मुस्लिम सपा का कोर वोटर रहे हैं और मराठा वर्ग के साथ ही ओबीसी शरद पवार और कांग्रेस पार्टी के साथ रहा है. शिवसेना (यूबीटी) का भी अपना जनाधार रहा है. अब कांग्रेस और एमवीए की चिंता यह भी हो सकती है कि कुछ सीटें जीतकर विधानसभा में मौजूदगी दर्ज कराती आई सपा से गठबंधन की स्थिति में उनके कोर वोटर भी उसे वोट करेंगे. खतरा यह भी है कि कहीं वो वोटर आगे भी सपा के साथ ही न चला जाए.

भविष्य की राजनीति
एक वजह भविष्य की राजनीति भी है. सपा विधानसभा चुनाव में कुछ सीटें जीतती जरूर है लेकिन वह उतनी नहीं होतीं कि बारगेन कर पाए. सपा, बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन के साथ जा नहीं सकती और एमवीए के अलावा दूसरा कोई विकल्प सूबे में है नहीं. ऐसे में एमवीए की रणनीति भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखते हुए सपा को किनारे करने की हो सकती है. गठबंधन के साथ से सपा मजबूत हुई तो उसकी बारगेन पावर बढ़ जाएगी जो भविष्य में एमवीए के घटक दलों के लिए मुश्किलें उत्पन्न कर सकता है.

Share:

Jharkhand एनडीए में सीटों का हुआ बंटवारा, 68 सीटों पर चुनाव लड़ेगी भाजपा, आजसू-जदयू और लोजपा को इतनी सीटें

Fri Oct 18 , 2024
रांची। झारखंड (Jharkhand) में भाजपा (BJP) के नेतृत्व वाले एनडीए (NDA) के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है। सीट बंटवारे के तहत भाजपा झारखंड की 68 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वहीं आजसू (AJSU) को 10, जदयू (JDU ) को दो और एक सीट लोजपा(आर) (LJP-R)को दी गई है। झारखंड भाजपा के सह-प्रभारी और असम […]
सम्बंधित ख़बरें
खरी-खरी
मंगलवार का राशिफल
मनोरंजन
अभी-अभी
Archives

©2024 Agnibaan , All Rights Reserved