वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप का नाम सुनते ही मेवाडवासियों को इस बात का गर्व होता है कि वे उस जगह के रहने वाले है जहां पर प्रताप जैसे वीर योद्धा हुए थे, जिन्होंने कभी भी मुगलों की हार स्वीकार नहीं की। महाराणा प्रताप की जयंती अंग्रेजी महीने और विक्रम संवत के अनुसार अलग-अलग आती है इसलिए दोनों ही दिन कई कार्यक्रम होते है। मेवाड़ में महाराणा प्रताप जयंती के उपलक्ष्य में होने वाले सभी कार्यक्रम उनकी जन्मतिथि के अनुसार होते है। 7 फीट 5 इंच लंबाई, 110 किलो वजन। 81 किलो का भारी-भरकम भाला और छाती पर 72 किलो वजनी कवच। दुश्मन भी जिनके युद्ध-कौशल के कायल थे। जिन्होंने मुगल शासक अकबर का भी घमंड चूर कर दिया। 30 सालों तक लगातार कोशिश के बाद भी अकबर उन्हें बंदी नहीं बना सका।
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के मेवाड़ में हुआ था। राजपूत राजघराने में जन्म लेने वाले प्रताप उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे। वे एक महान पराक्रमी और युद्ध रणनीति कौशल में दक्ष थे। महाराणा प्रताप ने मुगलों के बार-बार हुए हमलों से मेवाड़ की रक्षा की। उन्होंने अपनी आन, बान और शान के लिए कभी समझौता नहीं किया। विपरीत से विपरीत परिस्थिति ही क्यों ना, कभी हार नहीं मानी। यही वजह है कि महाराणा प्रताप की वीरता के आगे किसी की भी कहानी टिकती नहीं है।
1576 में हल्दी घाटी में महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच युद्ध हुआ। महाराणा प्रताप ने अकबर की 85 हजार सैनिकों वाली विशाल सेना के सामने अपने 20 हजार सैनिक और सीमित संसाधनों के बल पर स्वतंत्रता के लिए कई वर्षों तक संघर्ष किया। बताते हैं कि ये युद्ध तीन घंटे से अधिक समय तक चला था। इस युद्ध में जख्मी होने के बावजूद महाराणा मुगलों के हाथ नहीं आए।
महाराणा प्रताप कुछ साथियों के साथ जंगल में जाकर छिप गए और यहीं जंगल के कंद-मूल खाकर लड़ते रहे। महाराणा यहीं से फिर से सेना को जमा करने में जुट गए। हालांकि, तब तक एक अनुमान के मुताबिक, मेवाड़ के मारे गए सैनिकों को की संख्या 1,600 तक पहुंच गई थी, जबकि मुगल सेना में 350 घायल सैनिकों के अलावा 3500 से लेकर-7800 सैनिकों की जान चली गई थी। 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बाद भी अकबर महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका। आखिरकार, अकबर को महाराण को पकड़ने का ख्याल दिल से निकलना पड़ा।
बताते हैं कि महाराणा प्रताप के पास हमेशा 104 किलो वजन वाली दो तलवार रहा करती थीं। महाराण दो तलवार इसलिए साथ रखते थे कि अगर कोई निहत्था दुश्मन मिले तो एक तलवार उसे दे सकें, क्योंकि वे निहत्थे पर वार नहीं करते थे। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक भी उनकी ही तरह की बहादुर था। महाराणा के साथ उनके घोड़े को हमेशा याद किया जाता है। जब मुगल सेना महाराणा प्रताप के पीछे लगी गे थी, तब चेतक महाराणा को अपनी पीठ पर लिए 26 फीट के उस नाले को लांघ गया था, जिसे मुगल पार न कर सके। चेतक इतना अधिक ताकतवर था कि उसके मुंह के आगे हाथी की सूंड लगाई जाती थी। चेतक ने महाराणा को बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिए।
बताते हैं कि महाराणा प्रताप की 11 रानियां थीं, जिनमें से अजबदे पंवार मुख्य महारानी थी और उनके 17 पुत्रों में से अमर सिंह महाराणा प्रताप के उत्तराधिकारी और मेवाड़ के 14वें महाराणा बने। महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी 1597 को हुआ था। कहा जाता है कि इस महाराणा की मृत्यु पर अकबर की आंखें भी नम हो गई थीं।
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