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    MP की IAS अधिकारी मार्टिन को महामंडलेश्वर ने दी देश छोड़ने की धमकी, शैलबाला ने बताया क्‍यों उठाया लाउडस्पीकर का मुद्दा

  • October 26, 2024

    भोपाल । मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की IAS अधिकारी शैलबाला मार्टिन पाठक (Shailbala Martin Pathak) ने हाल ही में मंदिरों (Temples) में लगे लाउडस्पीकरों (Loudspeakers) से होने वाले ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) का मुद्दा उठाया था। इसके बाद वे कई हिंदू संगठनों के निशाने पर आ गई थीं और संगठनों ने उनसे माफी मांगने की बात कही थी। इसी बीच महिला अधिकारी ने गुरुवार रात को एक और ट्वीट करते हुए अपने पिछले ट्वीट को करने की वजह और उसके बाद हुए घटनाक्रम के बारे में बताया।

    मार्टिन ने बताया कि उन्होंने किस तरह एक पत्रकार के ट्वीट का जवाब देते हुए मंदिरों में लगे लाउड स्पीकर से होने वाले ध्वनि प्रदूषण की बात लिखी थी। उन्होंने बताया कि पिछली पोस्ट के बाद कई लोगों ने आपत्ति जताते हुए उनका विरोध किया, इस दौरान कई लोगों ने उन्हें धमकियां भी दीं। उन्होंने कहा, जब तक ट्रोल्स ने धमकियां दीं तब तक मुझे जवाब देने की जरूरत महसूस नहीं हुई, लेकिन जब महामंडलेश्वर जैसे विद्वान ने मुझे देश छोड़ने की धमकी दी तो लगा कि अब जवाब देना होगा। मार्टिन ने कहा कि उन्होंने मेरी शारीरिक और मानसिक बनावट पर भी टिप्पणी की।

    उन्होंने कहा कि चाहे किसी भी धर्म के धर्मस्थल हों एक सीमा से अधिक शोर किसी के भी हित में नहीं है। उन्होंने बताया कि उनके विचार किसी भी तौर पर किसी धर्म विशेष के प्रति आग्रह,दुराग्रह से प्रेरित नहीं थे और वे सर्वधर्म समभाव में विश्वास करती हैं। उन्होंने बताया कि वे ईसाई धर्म में पैदा हुई हैं और उस धर्म के मठाधीशों द्वारा की जा रहीं अनियमितताओं के खिलाफ भी वे सोशल मीडिया पर सवाल उठाती रही हैं।


    उन्होंने कहा कि लोगों ने मेरे ट्वीट के मूल भाव को ना समझते हुए टिप्पणी करना शुरू कर दिया। मार्टिन ने बताया कि अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हुए ही उन्होंने ध्वनि प्रदूषण की ओर ध्यान आकर्षित किया था। अपनी पोस्ट में मार्टिन ने बताया कि ध्वनि प्रदूषण न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी घातक है, इसीलिए देश में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनाए गए हैं। इसी वजह से माननीय सर्वोच्च न्यायालय भी समय-समय पर ध्वनि प्रदूषण के बारे में दिशा निर्देश जारी करता रहा है।

    पोस्ट के अंत में उन्होंने देश छोड़कर जाने की धमकी का जवाब देते हुए अपने पति और परिवार का जिक्र करते हुए कहा कि ‘अच्छी तरह जान लीजिए कि यह देश उसी तरह मेरा भी है जैसा आप सबका। मैं इस देश की जन्मजात नागरिक हूं और संविधान ने मुझे समस्त नागरिक अधिकार अन्य नागरिकों की तरह ही दिए हैं। मैंने आज तक ऐसा कोई अपराध नहीं किया है कोई भी मुझे देश निकाला दे दे..!’

    आगे उन्होंने लिखा, ‘इस देश को बनाने में मेरे पुरखों का खून पसीना भी मिला है, मेरे पुरखे भारतीय सेना की वर्दी पहनकर इस देश के लिए जंग भी लड़े हैं। मेरे पुरखे इस देश की मिट्टी में दफ़न हैं। इस देश की पवित्र माटी में दफ़न होने के लिए दो गज ज़मीन पर मेरा भी हक़ है। कोई माई का लाल ये हक़ मुझसे छीन नहीं सकता।’

    शैलबाला मार्टिन पाठक की पोस्ट…
    लाउड स्पीकर और डीजे का प्रश्न उठाने पर परम आदरणीय महामंडलेश्वर अनिल जी महाराज ने मुझे देश छोड़कर चले जाने को कहा है।

    ‘कुछ और सुधीजन भी मेरे चार लाइन के ट्वीट पर मुझे देश निकाला दे रहे हैं। जब तक कुछ अगंभीर लोग (ट्रोल्स) धमकी दे रहे थे तब तक उत्तर देना आवश्यक नहीं लगा लेकिन अब सम्माननीय महामंडलेश्वर जी जैसे विद्वान ने मुझे देश से चले जाने की धमकी दी है तब लगा कि कुछ उत्तर दिया जाए। यद्यपि परम श्रद्धेय महामंडलेश्वर जी ने मेरी “शारीरिक और मानसिक बनावट” पर भी टिप्पणी की है लेकिन उस पर मुझे कुछ नहीं कहना। (महामंडलेश्वर जी के वीडियो के अंश देखिए)

    मामला यह है कि.…
    वरिष्ठ पत्रकार डॉ. मुकेश कुमार जी के ट्वीट के इस हिस्से पर मेरा रीट्वीट आधारित था- “तर्क ये दिया जा रहा है कि मस्जिदों से लाउड स्पीकर से अज़ान की आवाज़ें जब लोगों को डिस्टर्ब करती हैं तो मस्जिदों के सामने डीजे बजाने से परेशानी क्यों होना चाहिए?”

    स्वाभाविक ही है कि जब मुकेश कुमार जी का ट्वीट मस्जिदों के लाउड स्पीकर से एक वर्ग विशेष की आपत्ति पर था तो सहज रूप से मैंने ये चार लाइन लिख कर मंदिरों के लाउड स्पीकर की ओर ध्यान दिलाया।

    मार्टिन ने कहा- मेरे शब्द ये रहे…
    “और मंदिरों पर लगे लाउडस्पीकर, जो कई कई गलियों में दूर तक स्पीकर्स के माध्यम से ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं, जो आधी आधी रात तक बजते हैं उनसे किसी को डिस्टरबेंस नहीं होता.?”

    लेकिन ट्वीट के मूल भाव को न समझते हुए कुछ लोगों ने आपत्ति की। सहज शालीन भाषा में आपत्ति और असहमति का स्वागत है लेकिन बात गालियों से होते हुए मेरे देश निकाले की धमकी तक पहुंच गई है। मैं आप सबको बताना चाहती हूं कि मैंने अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत ही अन्य धार्मिक स्थलों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण की ओर ध्यान आकर्षित किया था।

    किसी भी प्रकार का प्रदूषण चाहे किसी भी व्यक्ति, समाज या धार्मिक स्थल/संगठन द्वारा फैलाया जा रहा हो, न केवल पर्यावरण के लिए अपितु स्वास्थ्य के लिए भी सर्वाधिक घातक है। इसीलिए देश में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनाए गए हैं। मेरा अब भी यही अभिमत है कि चाहे मंदिर,मस्जिद,गिरजाघर,गुरुद्वारा हो या अन्य कोई सार्वजनिक स्थान एक सीमा से अधिक शोर किसी के भी हित में नहीं है। मेरे विचार किसी भी तौर पर किसी धर्म विशेष के प्रति आग्रह,दुराग्रह से प्रेरित नहीं हैं बल्कि मैं सर्वधर्म समभाव में विश्वास करती हूं।

    माननीय सर्वोच्च न्यायालय भी समय समय पर ध्वनि प्रदूषण के बारे में दिशा निर्देश जारी करता रहा है। (लिंक आप स्वयं ढूंढ लीजिए।)

    मप्र के माननीय मुख्यमंत्री जी ने भी शपथ लेने के बाद डीजे और लाउड स्पीकर पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था। (लिंक कमेंट सेक्शन में)

    जो बात माननीय सर्वोच्च न्यायालय और प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी कह चुके हैं उसे दोहराना कैसे गलत हो गया? यह कैसे किसी धर्म विशेष को आहत करने वाली बात हो गई? एक सामाजिक विषय पर चार लाइन लिखना धर्म विशेष के विरुद्ध कैसे हो गया?

    विनम्रता से बता दूं…मैंने जिस धर्म में जन्म लिया है उसके मठाधीशों द्वारा की जा रहीं अनियमितताओं के खिलाफ पहले ही सोशल मीडिया पर लिख चुकी हूं। जिस पर देश भर के मीडिया में खबरें भी बनीं थीं। (लिंक कमेंट सेक्शन में)

    तीन दशक से ज्यादा की प्रशासनिक सेवा में SDM, ADM, निगम कमिश्नर और कलेक्टर के रूप में पूरी निरपेक्षता के साथ अपने दायित्व का निर्वाह किया है।

    अदभुत संयोग यह भी है कि मुझे निवाड़ी के कलेक्टर का दायित्व निभाने का अवसर भी राज्य शासन ने दिया था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, रामराजा का मंदिर भी इसी जिले के ओरछा में है। रामराजा सरकार मंदिर की सुरक्षा और सौंदर्यीकरण के लिए भी मेरे द्वारा प्रयास किए गए थे जिन्हें मैं स्थानांतरण के कारण मूर्त रूप नहीं दे सकी।

    इन सभी दायित्वों में अनेक ऐसे अवसर आए जब मैंने शासन के अधीन मठ, मंदिरों या अन्य धर्मों के उत्सवों में अपने कर्तव्य का बिना किसी भेद के पालन किया।

    जहां तक मेरे देश छोड़ कर चले जाने की बात है तो अच्छी तरह जान लीजिए कि यह देश उसी तरह मेरा भी है जैसा आप सबका। मैं इस देश की जन्मजात नागरिक हूं और संविधान ने मुझे समस्त नागरिक अधिकार अन्य नागरिकों की तरह ही दिए हैं। मैंने आज तक ऐसा कोई अपराध नहीं किया है कोई भी मुझे देश निकाला दे दे..! संविधान की समझ न रखने वाले किसी भी व्यक्ति के कहने से तो काम नहीं चलेगा…. और कोई भी व्यक्ति जो किसी नागरिक को देश छोड़ कर जाने के लिए कहता है, वो संविधान विरोधी है।

    हमारे संविधान ने इस देश पर मुझे भी उतना ही अधिकार दिया है जितना किसी भी अन्य नागरिक को। किसी के कहने या धमकाने से हमारे अधिकार कम नहीं हो सकते। संविधान के रहते हुए ये देश किसी एक कौम का नहीं है। ये हम सबका है।

    इस देश को बनाने में मेरे पुरखों का खून पसीना मिला है, मेरे पुरखे भारतीय सेना की वर्दी पहनकर इस देश के लिए जंग भी लड़े हैं… मेरे पुरखे इस देश की मिट्टी में दफ़न हैं। इस देश की पवित्र माटी में दफ़न होने के लिए दो गज ज़मीन पर मेरा भी हक़ है। कोई माई का लाल ये हक़ मुझसे छीन नहीं सकता।

    ….तो आदरणीय महामंडलेश्वर जी और ऐसे सभी व्यक्ति जो मुझे देश छोड़कर चले जाने की धमकी दे रहे हैं वो अच्छी तरह समझ लें कि मैं और मेरे परिजन इस देश में जन्म जन्मांतरों से रहते आए हैं, आज भी गर्व से रह रहे हैं और आखिरी सांस तक यहीं रहेंगे।

    अंतिम बात: हो सकता है आप जानते हों या न जानते हों मेरे पति सुपरिचित पत्रकार, लेखक, गांधीवादी कार्यकर्ता डॉ. राकेश पाठक हिंदू हैं। वे इंसानियत के सिपाही के रूप में जाने जाते हैं। हम दोनों को जानने वाले जानते हैं कि हम दोनों ही सर्वधर्म समभाव, धर्म निरपेक्षता में विश्वास रखते हैं। हम न केवल एक दूसरे के धर्म, संस्कृति, आस्था,विश्वास और परंपरा का सम्मान करते हैं बल्कि अन्य सबके प्रति भी हमारा यही स्थाई भाव है।

    हमारा भाव है…. जिओ और जीने दो। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया। (समाप्त)’

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