नई दिल्ली। ‘अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का, काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का’ कालों के काल महाकाल राजा की महिमा अद्भुत है. द्वादश ज्योतिर्लिग (Jyotirlinga ) में बाबा महाकाल सर्वोत्तम शिवलिंग (Shivling) माना गया है. कहते हैं ‘आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्। भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ‘ इसका अर्थ है, आकाश में तारक शिवलिंग, पाताल में हाटकेश्वर शिवलिंग (Hatkeshwar Shivling) तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर (Mahakaleshwar ) ही मान्य शिवलिंग है.
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन (Ujjain) में स्थित है. कहते हैं यहां आने वालों की झोली कभी खाली नहीं जाती. आइए जानते हैं 12 ज्योतिर्लिंग के इस शिव धाम (shiv dham) में कैसे हुई महाकाल की स्थापना.
भस्म आरती
महाकालेश्व मंदिर एकलौती ऐसी जगह है, जहां शिव को भस्म से आरती की जाती है। प्राचीन कथाओं के अनुसार यहां चिता की राख से यह आरती की जाती थी, हालांकि आज के समय में ऐसा नहीं है। आज कंडे की राख से भस्म आरती की जाती है। भस्म आरती के समय महिलाओं की उपस्थिति वर्जित है
जब धरती फाड़ कर प्रकट हुए महाकाल
पौराणिक कथा के अनुसा वेद प्रिय नाम का एक ब्राह्रण अवंती नामक नगर रहता था. वो शिव का परम भक्त था. प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर बाबा की पूजा करता था. नियमित रूप से धार्मिक कर्मकांड के कामों में उसकी विशेष रूचि थी. एक बार दूषण नामक राक्षस नगर में आया और लोगों को धार्मिक कार्य करने से रोकने लगा. राक्षस को ब्रह्मा जी से विशेष वरदान प्राप्त था. इसी कारण उसका आतंक बढ़ता गया. राक्षस की पीड़ा से दुखी होकर सभी ने शिव से रक्षा के लिए विनती की.
शिव की हुंकार मात्र से भस्म हुआ राक्षस
भोलेनाथ ने नगरवासियों को राक्षस के अत्याचार से बचाने के लिए पहले उसे चेतावनी दी.दूषण राक्षस पर इसका कोई असर नहीं हुआ और उसने नगर पर हमला कर दिया. भोलेनाथ क्रोधित हो उठे और धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए. शिव ने अपनी हुंकार से राक्षस को भस्म कर दिया. ब्राह्रणों ने महादेव से यहीं विराजमान होने के लिए प्रार्थना की. ब्राह्मणों के निवेदन से प्रसन्न होकर शिव जी यहां महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने लगे.
जूना महाकाल
कुछ राजाओं और आक्रमणकारियों के समय इस मंदिर में मौजूद असली शिवलिंग को कई बार नष्ट करने की कोशिश की गई थी, जिससे बचने के लिए पुजारियों ने असली शिवलिंग को वहां से हटा दिया और एक दूसरा शिवलिंग रखकर पूजा करने लगे। इसके बाद जब असली शिवलिंग को वापस स्थापित किया गया तो हटाई गई शिवलिंग को मंदिर के ही प्रांगण में स्थापित कर दिया गया। इसे जूना महाकाल कहते हैं।
नोट– उपरोक्त दी गई जानकारी पौराणिक कथाओं और लोक मान्यताओं पर आधारित है, हम इन पर किसी भी प्रकार का दावा नहीं करते हैं.
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