नई दिल्ली । भारतीय स्टेट बैंक (state Bank of India) का मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court)की जज न्यायमूर्ति जे निशा बानू (Judge Justice J Nisha Banu)के साथ लोन विवाद चल रहा है। एसबीआई ने अब होम लोन पुनर्भुगतान विवाद (Home loan repayment disputes)पर अपने खिलाफ दायर उपभोक्ता शिकायत(Consumer Complaints) को तमिलनाडु से बाहर ट्रांसफर(Transfer outside Tamilnadu) करने के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) से संपर्क किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, एसबीआई को डर है कि मदुरै में जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (डीसीडीआरसी) के समक्ष न्याय नहीं मिलेगा। एसबीआई को यह डर इसलिए है क्यों कि डीसीडीआरसी मद्रास हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, जज के मदुरै स्थित घर का निर्माण आंशिक रूप से हुआ था और कथित तौर पर खराब निर्माण के कारण उसे ध्वस्त कर दिया गया था। बैंक ने आरोप लगाया है कि जज ने नोटिस देने के बावजूद अभी तक बकाया राशि का पूरा भुगतान नहीं किया है और वह इसे अपने घर पर पॉलिसी दावे से जोड़ रही हैं जिसे न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी ने खारिज कर दिया था। न्यायमूर्ति बानू ने बैंक अधिकारियों और बीमा कंपनी पर मिलीभगत करके उन्हें पॉलिसी लाभ से वंचित करने का आरोप लगाया है।
एनसीडीआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एपी साही और सदस्य इंदर जीत सिंह की पीठ ने 2 अगस्त को एसबीआई के द्वारा केस ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया और 23 सितंबर को फिर से सुनवाई के लिए तय किया।
एसबीआई के वकील एडवोकेट जितेंद्र कुमार ने मदुरै में डीसीडीआरसी के समक्ष कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगाने के लिए दबाव डाला। हालांकि आयोग ने कहा, “आपको उचित आशंका हो सकती है, लेकिन जब बात हाईकोर्ट के जज की हो तो इतनी हल्की नहीं है। आपको कई बातें बतानी होंगी कि जिससे पता चल सके कि आपको अपने मामले में ऐसा होने की उम्मीद क्यों है? हल्के-फुल्के दावे से ज्यादा गंभीर कुछ होना चाहिए।”
एसबीआई के अनुसार, न्यायमूर्ति बानू ईएमआई का भुगतान कर रही थीं। लेकिन फरवरी 2018, दिसंबर 2018, जनवरी 2019 और फरवरी 2019 में ईएमआई डेबिट करने के लिए शुरू की गई ईसीएस (इलेक्ट्रॉनिक क्लियरिंग सर्विस) को फंड की कमी के कारण बिना भुगतान किए वापस कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति बानू ने मदुरै आयोग से आग्रह किया है कि वह न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को उन्हें 46 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दे, जो कि ब्याज सहित बीमित राशि है। इसके अलावा बीमा फर्म और एसबीआई को मानसिक पीड़ा के लिए मुआवजे के रूप में 1 करोड़ रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दें। ब्याज सहित भुगतान की गई सभी ईएमआई को वापस करने का निर्देश दें। पॉलिसी खरीदने के लिए काटे गए 17,125 रुपये भी वापस करें। साथ ही मुकदमेबाजी लागत के लिए 50,000 रुपये का भी भुगतान करें।
जून 2024 में दर्ज अपनी उपभोक्ता शिकायत में न्यायमूर्ति बानू ने आरोप लगाया कि बैंक और बीमा अधिकारियों ने पॉलिसी को लेकर सांठगांठ की। उनका दावा है कि एसबीआई ने उनकी जानकारी के बिना खरीदा था। उन्होंने यह भी कहा कि बैंक ने पॉलिसी के लिए 17,125 रुपये डेबिट किए। वहीं, एसबीआई ने तर्क दिया कि पॉलिसी खरीद के बारे में जज को पता था। इसने यह भी तर्क दिया कि जज ने बिल्डर से कथित खराब निर्माण के लिए मुआवजे के रूप में 38 लाख रुपये प्राप्त करने के बावजूद बकाया राशि का भुगतान नहीं किया है। बैंक ने कहा कि उन्हें आंशिक रूप से निर्मित इमारत को ध्वस्त करवाना पड़ा।
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