मध्य प्रदेश के कृषक अपनाएं प्राकृतिक खेतीः मुख्यमंत्री चौहान
भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) ने कहा कि प्राकृतिक कृषि पद्धति (natural farming method) पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला सिर्फ कर्म-कांड नहीं है, यह कृषि की दशा और दिशा बदलने का महायज्ञ है। प्रदेश में मध्यप्रदेश प्राकृतिक कृषि बोर्ड का तत्काल गठन (Immediate formation of Madhya Pradesh Natural Agriculture Board) किया जाएगा। प्राकृतिक खेती की तकनीक की जानकारी देने के लिए प्रदेश के किसानों को पुस्तक उपलब्ध कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि मैं स्वयं अपनी 5 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती आरंभ कर रहा हूँ। उन्होंने प्रदेश के सभी कृषकों से अपील की कि उनके पास जितनी भी कृषि भूमि है, उसमें से कुछ क्षेत्र में वे प्राकृतिक खेती प्रारंभ करें। इससे होने वाले लाभ से अन्य कृषक प्राकृतिक खेती विस्तार के लिए प्रेरित होंगे।
मुख्यमंत्री चौहान बुधवार को राजधानी भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर भोपाल में हुई प्राकृतिक कृषि पद्धति पर हुई राज्य स्तरीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। कार्यशाला में प्राकृतिक खेती और प्राकृतिक चिकित्सा के प्रकाण्ड विद्वान गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी सहभागिता की। केंद्रीय कृषि एवं किसान-कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कार्यशाला में दिल्ली से वर्चुअली सहभागिता की। प्रदेश के नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह और कृषि मंत्री कमल पटेल उपस्थित थे।
धरती माँ की उर्वरा क्षमता बनाए रखने के लिए हमें होना होगा सचेत
मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश जैविक खेती में अग्रणी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रकृति का शोषण नहीं दोहन करने का विचार दिया है। यह भविष्य के खतरे को दृष्टिगत रखते हुए दिया गया मंत्र है। रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग के परिणामस्वरूप धरती का स्वास्थ्य निरंतर प्रभावित हो रहा है। आने वाली पीढ़ियों के लिए धरती माँ की उर्वरा क्षमता को बनाए रखने के लिए हमें सचेत रहना होगा। उन्होंने कहा कि यह धरती केवल मनुष्यों के लिए नहीं, अपितु कीट-पतंगों और जीव-जंतुओं के लिए भी है। हमने कीटनाशक के अंधाधुंध उपयोग से कीट मित्रों को समाप्त कर दिया है और हमारी नदियाँ भी प्रभावित हुई हैं। प्रधानमंत्री मोदी की संकल्पना के अनुरूप जल-संरक्षण के लिए प्रदेश में जलाभिषेक अभियान शुरू किया गया है। हम जितना जल धरती से ले रहे हैं, उस अनुपात में हमें धरती माँ को जल देना भी होगा। यह आने वाली पीढ़ी को बेहतर धरोहर सौंपने का प्रयास है।
उन्होंने कहा, यह वास्तविकता है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद की आवश्यकता थी, उत्पादन बढ़ाना जरूरी था। परंतु समय के साथ इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। रासायनिक खाद एवं कीटनाशक के अधिक उपयोग और खेती में पानी की अधिक आवश्यकता आदि से खेती की लागत बढ़ती जा रही है। उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन खर्च भी निरंतर बढ़ता जा रहा है। खेती के इस दुष्चक्र का वैकल्पिक मार्ग खोजना होगा। धरती के स्वास्थ्य, कृषकों की स्थिति और निरोगी जीवन के लिए प्राकृतिक खेती ही वैकल्पिक मार्ग है।
मुख्यमंत्री चौहान गरीबों और किसनों लिए सुरक्षा कवचः तोमर
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि रासायनिक खेती परिस्थिति जन्य समाधान था। आज की चुनौतियों को स्वीकार कर नवाचार की ओर बढ़ना होगा। इसी मंशा से सरकार ने प्राकृतिक खेती की पहल करते हुए मेरिस संस्था के साथ नॉलेज पार्टनरशिप कर 30 हजार किसानों के प्रशिक्षण की पहल की है। विश्वविद्यालयीन शिक्षा में प्राकृतिक खेती पाठ्यक्रम को शामिल कराने के लिए इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च में समिति का भी गठन किया गया है। देश के 8 राज्यों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है।
उन्होंने प्रदेश में प्राकृतिक खेती के लिए की गई पहल की सराहना करते हुए कहा कि राज्य को प्राकृतिक खेती में नंबर वन बनाने के लिए संकल्पित होना होगा। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री चौहान किसान और गरीबों के लिए सुरक्षा कवच हैं। प्रदेश में कृषि के क्षेत्र में हो रहे सार्थक कार्यों का ही परिणाम है कि प्रदेश को सात बार से निरंतर कृषि कर्मण पुरस्कार मिल रहा है। केन्द्रीय मंत्री तोमर ने केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए भी मुख्यमंत्री चौहान की सराहना भी की।
कार्यशाला को गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मप्र प्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मप्र के कृषि मंत्री कमल पटेल और कृषि उत्पादन आयुक्त शैलेन्द्र सिंह ने संबोधित किया। कार्यशाला में प्राकृतिक कृषि की पद्धति की प्रक्रिया एवं गुणवत्ता नियंत्रण, प्राकृतिक कृषि से उत्पन्न उत्पाद की विपणन व्यवस्था, प्रमाणीकरण एवं निर्यात की संभावना पर विषय-विशेषज्ञों के सत्रों के साथ आर्गेनिक क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं, कम्पनियों तथा प्रगतिशील कृषकों के अनुभव साझा किए गए। (एजेंसी, हि.स.)
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