भोपाल। प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान और नौरादेही वन्यप्राणी अभ्यारण्य में चीतों के रहवास के लिए उपयुक्त पाए जाने की स्थिति है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान जो करीब 750 वर्ग किलोमीटर में स्थित है वहां मात्र एक गांव है जिसके विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है। इसी तरह एक हजार किलोमीटर से अधिक वर्ग किलोमीटर में स्थित नौरादेही वन्यप्राणी अभ्यारण्य सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिलों में स्थित है। यहाँ वर्तमान में 63 ग्रामों में से 13 गांव विस्थापित किए जा चुके हैं। अन्य 15 ग्रामों के विस्थापन की प्रक्रिया प्रचलन में है। इसके दृष्टिगत मध्यप्रदेश के इन संरक्षित क्षेत्रों में अफ्रीकी चीते की स्थापना की संभावनाएं देखी जा रही हैं। मुुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वन्य प्राणी बोर्ड की बैठक में यह निर्देश दिए। बैठक में बताया कि इस संबंध में वैधानिक रूप से आवश्यक अनुमतियों के पश्चात कार्य को गति दी जाएगी। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वाय.वी. झाला द्वारा मध्यप्रदेश के संरक्षित क्षेत्रों में अफ्रीकी चीतों की अनुकूलता के संबंध में प्राथमिक सर्वेक्षण किया जाएगा। इसके लिए मध्यप्रदेश में तैयारियां प्रारंभ की गई हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि बफर में सफर जैसी गतिविधियों से पर्यटन विकास संभव होगा। उन्होंने मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट के बाद तेंदुआ स्टेट बनने पर बधाई दी। मुख्यमंत्री ने प्रदेश में 3421 तेंदुए होने पर भी प्रसन्नता व्यक्त की। देश में कुल 12852 तेंदुएं हैं। मध्यप्रदेश को टाइगर के बाद तेंदुआ राज्य बनने के पश्चात अन्य वन्यप्राणियों की श्रेणी में भी अग्रणी बनने की संभावनाएं बढ़ी हैं।
नर्मदा में छोड़ी जाएगी महाशीर
प्रदेश के बड़वाह वनमण्डल में महाशीर संरक्षण योजना लागू की गई है। राज्य शासन ने महाशीर संरक्षण और प्रजनन पर 61 लाख रूपए की राशि खर्च की है। वर्ष 2020 में महाशीर का चार बार कृत्रिम प्रजनन कराया गया जिसके फलस्वरूप 4000 फ्राई प्राप्त किए गए। ये स्वस्थ स्थिति में है, इन्हें नर्मदा के जल प्रवाह में छोड़ा जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि एक समय नर्मदा में इन मछलियों की संख्या काफी अधिक थी।
संकट में है खरमोर
धार जिले के सरदारपुर में वन्यप्राणी अभ्यारण्य का गठन खरमोर प्रजाति के पक्षी के लिए किया गया है। यह पक्षी घास के मैदानों में पायी जाने वाली महत्वपूर्ण और संकटग्रस्त प्रजाति है। पश्चिमी मध्यप्रदेश के धार के अलावा झाबुआ, रतलाम, मंदसौर और नीमच में ये पाए जाते हैं। इनकी संख्या कम हुई है। प्रदेश में खरमोर संरक्षण के लिए कंजर्वेंशन ब्रीडिंग केन्द्र प्रारंभ करने पर सहमति हुई। इसके लिए करीब साढ़े तीन सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पूर्व में अधिसूचित किया गया था।
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