भोपाल: गुजरात में चांदीपुरा वायरस (Chandipura virus in Gujarat) के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. इसके बाद गुजरात बॉर्डर से सटे मध्य प्रदेश (Chandipura virus in Madhya Pradesh) में भी सतर्कता बरती जा रही है. स्वास्थ्य विभाग (Madhya Pradesh Health Department) चांदीपुरा वायरस की स्थिति की सतत निगरानी कर रहा है. राहत की बात ये है कि फिलहाल मध्यप्रदेश में चांदीपुरा वायरस का कोई मामला सामने नहीं आया है, लेकिन प्रशासन ने सतर्क रहने को कहा है. बता दें आईडीएसपी पोर्टल पर चांदीपुरा वायरस से जुड़ी सभी जानकारी और अपडेट मिल जाएंगे. वायरस की पहचान के लिए प्रदेश में सभी आवश्यक उपकरण और सुविधाएँ उपलब्ध करवा दी गई हैं. चांदीपुरा वायरस एईएस (एक्यूट एन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम) के कारणों में से एक है.
चांदीपुरा वायरस संक्रमण को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञ अलर्ट पर हैं. गुजरात के कई हिस्सों में इस वायरस ने पैर पसार लिए हैं. करीब एक महीने में गुजरात में संक्रमण के कई मामले सामने आ चुके हैं. ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक गुजरात के बाद वायरस मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी पहुंच गया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति जारी कर जानकारी दी है कि कई अन्य राज्य निगरानी पर हैं. इसमें खासतौर पर गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश है, जहां चांदीपुरा संक्रमण को लेकर खास समीक्षा की जा रही है.
मिल रही जानकारी के मुताबिक गुजरात के बाद राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी चांदीपुरा वायरस को लेकर अलर्ट जारी किया है. इसी को लेकर इन राज्यों में केंद्रीय टीम तैनात की जा रही है. बता दें एईएस कई अलग-अलग वायरस, बैक्टीरिया, रसायन या विषैले पदार्थों के कारण हो रहा है. लक्षणों की बात करें तो इसमें तेज बुखार और दिमाग में सूजन देखने को मिल रही है. साथ ही तेज बुखार भी लक्षणों में शामिल है. इसके लक्षण काफी कुछ फ्लू जैसे ही बताए जा रहे हैं. अभी तक की जानकारी के मुताबिक ये वायरस मच्छर, मक्खी या कीट-पतंगों से फैल रहा है. दावा है कि ये सबसे ज्यादा मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से फैलता है.
साल 1966 में पहली महाराष्ट्र में इससे जुड़ा केस रिपोर्ट किया गया था. नागपुर के चांदीपुर में इस वायरस की पहचान हुई थी, इसी लिए इसका नाम चांदीपुरा वायरस पड़ गया. इसके बाद इस वायरस को साल 2004 से 2006 और 2019 में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में रिपोर्ट किया गया. बता दें कि चांदीपुरा वायरस एक RNA वायरस है, जो सबसे ज्यादा मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से फैलता है. इसके फैलने के पीछे मच्छर में पाए जाने वाले एडीज जिम्मेदार हैं.
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