उज्जैन। शहर में 2028 में लगने वाले सिंहस्थ के पहले शिप्रा नदी को प्रवाहमान बनाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार पूरे प्रयास कर रही है। इसके लिए केंद्र की भी मदद ली जाएगी। विशेष कर इंदौर से क्षिप्रा नदी में नालों का गंदा पानी रोकने के लिए 9 स्टाप डैम भी बनाए जाएँगे। सिंहस्थ की योजना बनाने में साधु-संतों का परामर्श भी लिया जाएगा। केंद्र सरकार से क्षिप्रा शुद्धिकरण के लिए आवश्यक बजट की मांग की जा रही है।
वर्ष 2028 में उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ से पहले मध्य प्रदेश सरकार क्षिप्रा नदी को निर्मल बनाएगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसके लिए प्राधिकरण गठित करने के निर्देश भी दिए हैं। इस निर्णय के बाद प्राधिकरण के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसका नाम क्षिप्रा नदी कछार प्राधिकरण होगा तथा इसे मध्य प्रदेश सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1973 के तहत पंजीकृत कराया जाएगा। इसके लिए नियमों का प्रारूप भी तैयार कर लिया गया है। इस प्राधिकरण को जल्द मंजूरी दी जाएगी। ये नियम प्राधिकरण से संबद्ध समस्त इकाइयों और गतिविधियों पर लागू होंगे। क्षिप्रा के जल को पीने और आचमन योग्य बनाया जाएगा। नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत केंद्र सरकार से क्षिप्रा शुद्धिकरण के लिए आवश्यक बजट की मांग की जा रही है। इंदौर में क्षिप्रा नदी में नालों का गंदा पानी रोकने के लिए नौ स्टाप डैम भी बनाए जाएँगे। जहां-जहां संत रहते हैं उन घाटों का विस्तार प्राथमिकता से किया जाएगा। सिंहस्थ की योजना बनाने में साधु-संतों का परामर्श भी लिया जाएगा। प्राधिकरण कछार अंतर्गत नदी-नालों के दूषित जल को क्षिप्रा नदी से छोडऩे के पूर्व साफ करते हुए अविरल प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शन एवं संबंधित कार्यक्रमों को देखेगा। वित्तीय सहायता सहित अतिरिक्त संसाधनों की व्यवस्था करेगा। राज्य स्तरीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण और शोध संस्थाओं से समन्वय कर नदी संरक्षण संबंधित प्रशिक्षण एवं शोध की व्यवस्था करेगा। प्राधिकरण क्षिप्रा नदी कछार अंतर्गत निर्मल एवं अविरल प्रवाह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से निर्माण संबंधित कार्यक्रमों के लिए समन्वित कार्य योजना बनाएगा। प्राधिकरण इनके क्रियान्वयन से संबंधित नीतिगत निर्णयों के लिए राज्य स्तर पर शीर्ष संस्था के रूप में कार्य करेगा। प्राधिकरण की साधारण सभा का एक सभापति एवं उपसभापति होगा।
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