भोपाल। मप्र में जंगलों की रोजाना तेजी के साथ कटाई की जा रही है। जिससे जंगल में हरे-भरे पौधों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। पेड़ों की कटाई के कारण वन परिक्षेत्र कम होता जा रहा है। 15 साल पहले जंगल काफी हरे-भरे हुआ करते थे, लेकिन इसमें आज कमी आ चुकी है। उधर जंगल की कटाई रोकने पर वन विभाग के कर्मचारियों के साथ मारपीट की जा रही है। कई बार तो वनकर्मियों को जान भी गंवानी पड़ी है। उसके बाद भी वन विभाग के अफसरों ने वनों और वन्य प्राणियों की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
गौरतलब है कि देश में सबसे अधिक संरक्षित वन क्षेत्र मध्यप्रदेश में 31 हजार 98 वर्ग किलोमीटर है। सबसे ज्यादा टाइगर, सबसे अधिक तेंदुए एवं घडिय़ाल और अब चीता का इकलौता राज्य होने का गौरव प्राप्त है। इसके साथ ही सच यह भी है कि देश में सबसे अधिक मध्य प्रदेश के जंगल कटते है। सबसे अधिक अतिक्रमण होते हैं और जंगलों की सुरक्षा में तैनात मैदानी अमले की पिटाई भी सबसे अधिक इसी राज्य में होती है। सबसे अधिक वन कर्मियों की मौत भी यहीं होती है और पुलिस उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करती है। इन सबके बावजूद भी यहां के अफसर मजे में हैं। वन कर्मियों की पिटाई को लेकर सरकार चुप्पी साधे हुए हैं। उनकी सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है।
माफिया वनकर्मियों पर पड़ रहे भारी
मध्यप्रदेश में टिंबर माफिया, अतिक्रमण माफिया, रेत माफिया, शिकार माफिया और खनन माफिया सक्रिय है। विदिशा जिले की लटेरी में हुई घटना के बाद से राज्य के वन कर्मियों पर हमले तेज हो गए हैं। बुरहानपुर में तो हद हो गई वहां 300 से 400 लोगों का सशस्त्र अतिक्रमणकारियों का झुंड स्थानीय प्रशासन पर भी भारी पड़ रहा। बुरहानपुर के वन परिक्षेत्र नवरा की वन चौकी बाकड़ी में अतिक्रमणकारियों का झुंड बंदूक ही लूट के ले गए। इस घटना के दूसरे दिन भी वनकर्मियों पर हमले किए गए। स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि निहत्थे वन कर्मी बुरहानपुर के जंगलों में गश्त नहीं कर पा रहे हैं। संरक्षण शाखा से एकत्रित आकड़ों के मुताबिक वन एवं वन्यप्राणियों की सुरक्षा में हर साल वनकर्मियों के साथ मारपीट के 20-30 प्रकरण दर्ज हो रहे हैं। पिछले तीन सालों में जंगलों की सुरक्षा में आधा दर्जन वनकर्मियों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है। यही नहीं, विदिशा, रायसेन, गुना, शिवपुरी, मुरैना, भिंड, ग्वालियर, नरसिंहपुर, बालाघाट, बैतूल, छिंदवाड़ा, सागर, दमोह, बुरहानपुर, वन मंडलों में 2 दर्जन से अधिक वन कर्मचारियों पर माफिया प्राणघातक हमला कर चुके हैं। पिछले 6 महीने से बुरहानपुर वन मंडल में अवैध कटाई कर अतिक्रमण करने का सिलसिला जारी है।
इस साल करीब एक दर्जन हमले
प्रदेश में इस साल करीब एक दर्जन हमले वन कर्मियों पर हुए हैं। जनवरी में उमरिया के वन परिक्षेत्र नौरोजाबाद शिकारियों द्वारा में वीट गार्ड सजनिया की पिटाई गई। फरवरी में खंडवा वन मंडल के सीताबेठी में अतिक्रमणकारियों द्वारा पत्थर और गोफनों के हमले में चार वनकर्मी घायल हुए। मार्च में औबेदुल्लागंज के गौहरगंज में अतिक्रमणकारियों के हमले से वनरक्षक अजय सिंह अहिरवार और वनरक्षक बलराज सिंह घायल हुए। अप्रैल में श्योपुर में खनिज माफिया के हमले में वनरक्षक ऋषभ शर्मा और वाहन चालक हसन खान पर जानलेवा हमला हुआ। मई में विदिशा के गंजबासौदा अंतर्गत उदयपुर बीच में लोहे की रॉड से वनरक्षक शशांक शर्मा पर प्राणघातक हमला किया। जून में शिकारियों द्वारा गोली चालन में तीन पुलिसकर्मियों की मौके पर मौत हो गई। जुलाई में सिंगरौली में वनरक्षक संजीव कुमार शुक्ला और सुरेश मिश्रा पर लाठी-डंडों से पिटाई। गुना परिक्षेत्र में वनकर्मियों पर हमले हुए। अक्टूबर में बुरहानपुर में अतिक्रमण माफिया द्वारा कुल्हाड़ी डंडे गोपाल और पत्थर से हुए हमले में वनरक्षक वीरेन्द्र यादव, मांगीलाल कुल्हारी, जीतेंद्र कुशवाहा और अंकित सिंह राजपूत गंभीर रूप से घायल हुए। यहां तक कि विशेष सशस्त्र बल की बंदूकें छीनने की कोशिश की गई। शिवपुरी के सतनवाड़ा रेंज के चितौरा में वनभूमि पर अवैध कब्जे के दौरान डिप्टी रेंजर विष्णु सेन सहित चार वन कर्मियों पर हमला हुए। नवंबर में बुरहानपुर के वन परिक्षेत्र नवरा की बन चौकी बाकड़ी में अतिक्रमण माफिया द्वारा वनकर्मियों पर हमला, अतिक्रमण माफियाओं द्वारा जंगलों की कटाई और वन स्टॉप पर हमले हुए। दिसंबर में बुरहानपुर के नेपानगर में अतिक्रमण माफियाओं द्वारा जंगल की कटाई और गोफन सेवन कर्मियों पर प्राणघातक हमला हुए।
वन कर्मियों पर दोहरी मार
जंगलों की सुरक्षा में पिट रहे वन कर्मियों पर दोहरी मार पड़ रही है। एक तरफ वन माफियाओं द्वारा उन पर हमले हो रहे हैं तो दूसरी तरफ पुलिसकर्मी ही उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर रही है। जबकि असम और महाराष्ट्र में स्पष्ट निर्देश है कि यदि वनकर्मियों द्वारा गोली चालन अथवा कोई भी मारपीट की घटनाएं की जाती हैं तो बिना मजिस्ट्रियल जांच प्रतिवेदन के निष्कर्षो से पहले एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी। मध्यप्रदेश में भी गृह विभाग ने 2009 में एक स्पष्ट निर्देश दिया है कि मजिस्ट्रियल जांच प्रतिवेदन आए बिना पुलिस द्वारा वनकर्मियों पर एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी। राज्य में इसका उल्टा हो रहा है। लटेरी की घटना इसका ताजा उदाहरण है। आत्मरक्षा में वनकर्मियों ने गोली चलाई और उनके खिलाफ मजिस्ट्रियल जांच आए बिना ही एफआईआर दर्ज हो गई। ऐसी ही घटना मुरैना में हुई जहां माफिया से बचने के लिए गोली चालन की गई। परिणाम स्वरूप वनकर्मियों पर ही एफआईआर दर्ज हो गई। जंगलों की सुरक्षा में पीट रहे वन कर्मचारी संघ और आला अफसरों द्वारा असम और महाराष्ट्र की तरह ही उन्हें बंदूक चलाने का अधिकार दिया जाए। इस मांग को लेकर कई बार सरकार को पत्र लिखा गया, किंतु सरकार चुप्पी साधे हुए हैं। वोटों की राजनीति में अतिक्रमण हो रहे हैं और सरकार के मंत्री उनको बढ़ावा भी दे रहे हैं। पिछले दिनों शिवराज सरकार के कबीना मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया का बयान इस बात का जीता जागता प्रमाण है। बुरहानपुर में भी नेताओं द्वारा अतिक्रमणकारियों को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसके कारण यह हमले हो रहे हैं। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (संरक्षण) सीके पाटिल अपने मुखिया को कई बार पत्र लिख चुके हैं कि वर्ष 2009 में जारी किए गए गृह विभाग के आदेश का पालन कराने के लिए शासन के मुखिया को पत्र लिखें पर विभाग के मुखिया की ओर से शासन के मुखिया अथवा गृह विभाग के प्रमुख को पत्र नहीं लिखा गया। गृह विभाग अपने ही अफसरों से पूर्व में जारी आदेश का पालन करवाने में नाकाम नजर आ रहा है।
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