भोपाल। शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क की सीमा का विस्तार करने और उद्यान में एक बार फिर टाइगर सफारी शुरू करने के लिए माधव नेशनल पार्क प्रबंधन ने 40 करोड़ रुपये खर्च कर डाले। 13 गांव का विस्थापन करते हुए मुआवजा भी बांट दिया लेकिन अब तक पार्क में टाइगर सफारी की शुरुआत नहीं हो सकी है। इसके कारण टाइगर देखने आने वाले पर्यटकों को निराशा हाथ लगती है। यहां तक कि नेशनल पार्क के नाम पर राजस्व रिकॉर्ड में जमीन भी स्थानांतरित कर दी गई है। बावजूद इसके गांव खाली नहीं कराए जा सके और ग्रामीण आज भी खेती कर रहे हैं। प्रशासनिक मंशा की कमी के चलते बीते कई सालों से यह प्रोजेक्ट अटका हुआ है।
माधव राष्ट्रीय उद्यान की सीमा को विस्तार करने और टाइगर सफारी की पुर्नस्थापना करने के लिए कवायद वर्ष 2000 में शुरू की गई थी। उसके बाद इसका प्रस्ताव बनाकर भेजा गया। मंजूरी मिलने के बाद 13 गांव का विस्थापन का काम शुरू किया गया। मुआवजे का निर्धारण कर ग्रामीणों को पार्क प्रबंधन तथा राजस्व अमले ने मिलकर मुआवजा भी बांटा। इस दौरान 40 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अर्जुनगवां, लखनगवां, बलारपुर, मितलौनी, कांठी सहित कुछ अन्य गांवों का विस्थापन किया गया था जो माधव नेशनल पार्क की सीमा में बसे हुए थे। इन गांव के ग्रामीणों को खेती सहित मकान का मुआवजा भी प्रति परिवार के हिसाब से दिया गया था लेकिन मुआवजा लेने के बाद भी कई ग्रामीण आज भी इन इलाकों में खेती कर रहे हैं।
1988 में सिंधिया की पहल पर बनी थी टाइगर सफारी
नेशनल पार्क के अंदर टाइगर सफारी की शुरुआत तत्कालीन केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया की पहल पर शुरू की गई थी और यहां पर पेटू और तारा नाम के टाइगर साल 1988 में लाए गए थे। इसके बाद वंश वृद्धि हुई और एक समय संख्या 10 तक जा पहुंची थी। बाद में किसी कारणवश शावकों की मौत होती गई। यहां तक बताया जाता है कि तारा के नरभक्षी हो जाने के चलते उसे वन्य प्राणी उद्यान भोपाल भेज दिया था। इसके बाद टाइगर सफारी साल 1999 में बंद कर दी गई थी, जिसे पुर्नस्थापित करने की कवायद शुरू हुई थी।
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