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    90% महिलाओं को शिकार बना रहा लुपस

  • May 06, 2024

    हार्ट ब्लॉकेज के साथ अंगों के फेलियर का खतरा बढ़ जाता है

    इंदौर। लुपस (Lupus) किसी भी व्यक्ति को हो सकता है पर ध्यान रखने वाली बात यह है कि यह संक्रामक (contagious) नहीं होता है। यह एक ऑटो इम्यून (Auto Immune) बीमारी है, जो हमारे विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचा सकती है। खासकर के त्वचा, दिमाग, गुर्दे, आंख, खून की नसें आदि। यह बीमारी (Disease) क्रोनिक होती है और काफी लम्बे समय तक चलती है। दुनियाभर में लगभग 50 लाख लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं, जिनमें से 90 परसेंट पेशेंट महिलाएं हैं। यह जानकारी इंदौर के रुमेंटोलोजिस्ट डॉ. सौरभ मालवीया (गठिया रोग विशेषज्ञ) ने सिस्टमिक लुपस एस्थिमैटोसस (एसएलई) के बारे में बताते हुए दी।



    इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज

    – धूप में निकलने पर चेहरे पर लाल चकते होना, मुंह में छाले और बाल झडऩा
    – हाथ, कलाई, कोहनी,कंधे, घुटने, टखने और पैरों में सूजन आना
    – सुबह के समय गर्दन और पीठ में अकडऩ का होना, बार-बार बुखार आना
    – बार-बार मुंह में दर्दनाक छाले पडऩा
    – सर्दियों में हाथ का रंग बदलना
    – मुंह या आंखों का सूखापन
    – हाथों या पैरों में गैंगरीन होना

    बच्चों को भी बना रही शिकार
    लुपस में स्टेरॉयड की शुरुआती समय में जरूरत होती है। इसे सही समय पर पहचानना बहुत जरूरी है, क्योंकि देरी होने पर इसके कारण हार्ट में ब्लॉकेज हो जाता है, जिससे इलाज के दौरान कई बार हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है। बच्चों में भी लुपस का खतरा होता है, इसलिए यदि बच्चे बाहर खेलने में आनाकानी करें या कोहनी में चोट के कारण दर्द की शिकायत करें तो एक बार चिकित्सकीय सलाह जरूर लें। इन दिनों बच्चों में लुपस अधिक देखा जा रहा है।

    महिलाओं में होता है ज्यादा खतरा
    डॉ. सौरभ ने बताया कि लुपस रिह्यूमेटोलॉजी की सौ बीमारियों में से एक है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में इसका खतरा 9 गुना अधिक होता है। अध्ययनों के मुताबिक हर 2000 में से एक महिला को लुपस होता है। शहर की बात करें तो जागरूकता के अभाव में लुपस के 80 प्रतिशत केसेस अभी भी डॉक्टर्स के सामने नहीं आए हैं। आज भी 90 प्रतिशत मामलों में मरीज और डॉक्टर दोनों ही जागरूकता के अभाव में इस बीमारी के लक्षण नहीं समझ पाते। इस तरह के केसेस में लुपस के कारण मरीज के अन्य अंग प्रभावित हो जाते हैं और कई बार मरीज अपने वे अंग खो भी देते हैं। सेमिनार के दौरान भी ऐसे कई मरीज आए थे, जिन्होंने अपनी आंखे खो दी,वहीं एक मरीज में डॉक्टर लुपस के लक्षण को कैंसर के लक्षण समझकर चार बार उसकी बायोप्सी करा चुके थे।

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