नई दिल्ली। भारत देश (India) में कोरोना वायरस से अलग अब लंपी वायरस (lumpy virus) ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। लंपी वायरस (Lumpy Virus) की वजह से भारत में अब तक 80 हजार से अधिक मवेशियों (cattle) की मौत हो चुकी है। इससे दुग्ध उत्पादन भी प्रभावित होने लगा है। वायरस से निपटने के लिए मवेशियों (cattle) के देश के सभी राज्यों में टीकाकरण पर जोर दिया जा रहा है।
जानकारी के लिए बता दें कि लंपी वायरस गौवंश (cattle) को चपेट में ले रहा है, उसमें भी संकर नस्ल (हाईव्रिड) गायों को ज्यादा प्रभावित करता है, हालांकि देसी नस्ल को इससे मौत का खतरा बेहद कम है। पशुओं में लंपी वायरस इंसानों में मलेरिया की तरह मच्छर, कीट, मख्खियों के काटने से फैलता है।
हालांकि, गायों के बच्चों को दूर रखना चाहिए संक्रमित गाय के दूध के सेवन से बछड़ा या बछिया भी इस बीमारी का शिकार हो सकती है. ज्यादातर पशु चिकित्सक ने पशुपालकों को संक्रमित गायों और उनके बच्चों को अलग रखने की सलाह दी है. ऐसा करने से दोनों की जान की रक्षा की जा सकती है। अभी तक लंपी स्किन डिजीज से ग्रस्त पशुओं से इंसानों में बीमारी फैलने का कोई मामला सामने नहीं आया है। हां, संक्रमित गायों के दूध के सेवन के लिए जरूर सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए हैं। फिलहाल, इस वायरस पर वैज्ञानिकों द्वारा रिसर्च जारी है।
हाइव्रिड नस्ल की 80 फीसदी तक होती है मौत
लंपी वायरस से देसी नस्ल के गौवंश को खतरा ज्यादा है। देसी नस्ल सिर्फ 2-3 फीसदी तक मौत होती है। जबकि गायों की हाइब्रिड नस्ल की 80 फीसदी तक की मौत हो जाती है। 1 साल से कम उम्र के बच्चे ज्यादा बीमार नहीं होते। सबसे ज्यादा 1 से 5 साल का गौवंश इसकी जद में आता है। 5 साल से अधिक आयु का गौवंश भी इससे प्रभावित होता है।
वहीं फिलहाल गोट पॉक्स (Goat Pox) टीके का उपयोग किया जा रहा है। यह 100 प्रतिशत तक प्रभावी है, हालांकि इस टीके की संख्या सीमित होने की वजह से अभी दिक्कत हो रही है. इसे बनाने वाली कंपनी को इसके तेज उत्पादन (Production) के लिए कहा गया है. वहीं कृषि अनुसंधान निकाय आईसीएआर के दो संस्थानों द्वारा विकसित एलएसडी के लिए एक नए टीके ‘लंपी-प्रोवैकइंड’ की व्यावसायिक पेशकश में अभी 3-4 महीने’ का समय लग सकता है।
इन राज्यों में सबसे ज्यादा दिक्कत
लंपी वायरस से गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में सबसे ज्यादा दिक्कत हो रही है. यहां सबसे ज्यादा मवेशी इसकी चपेट में आए हुए हैं. आंध्र प्रदेश और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में कुछ छिटपुट मामले हैं. जतिंद्र नाथ स्वैन ने कहा, ‘‘राजस्थान में प्रतिदिन मरने वालों मवेशियों की संख्या 600-700 है, लेकिन अन्य राज्यों में यह संख्या एक दिन में 100 से भी कम है।’
दूध के उत्पादन पर इस तरह पड़ रहा असर
वहीं मवेशियों की मौत और उनके इस वायरस की चपेट में आने से दूध के उत्पादन पर भी असर पड़ रहा है।गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (जीसीएमएमएफ) के प्रबंध निदेशक आर एस सोढ़ी ने कहा कि गुजरात में दूध उत्पादन 0.5 प्रतिशत तक गिरा है. क्योंकि टीकाकरण से गुजरात में स्थिति कंट्रोल में है,हालांकि उन्होंने दूसरे राज्यों में इसके व्यापक असर की बात मानी। मदर डेयरी के प्रबंध निदेशक, मनीष बंदलिश ने कहा, ‘समग्र योजना में दूध के उत्पादन पर मामूली असर पड़ा है।’
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