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लखनऊ के ‘लाल’ का चले जाना!

July 22, 2020

– डा. रमेश ठाकुर

आधुनिक लखनऊ के शिल्पकार, सफल राजनेता व प्रशासक लाल जी टंडन का परलोक वासी हो जाने का मतलब हिंदुस्तान की सियासत में गहरा शून्य छोड़ जाने जैसा है। आम इंसान के दर्द को समझना और उसका तत्काल समाधान खोजना, उनकी आदत हुआ करती थी। उन्होंने अपने पूरे सियासी और सार्वजनिक जीवनकाल में कभी आम और खास में अंतर नहीं समझा, हमेशा इंसानियत को तवज्जो दी। यही कारण था कि न सिर्फ भाजपा नेताओं का उनसे जुड़ाव रहा, बल्कि विपक्षी नेता भी उनकी सरल-सादगी से मन मोहित होते थे। वह जरूरतमंदों और गरीबों से प्रत्यक्ष संवाद करने में विश्वास रखते थे।

लाल जी टंडन के न रहने की खबर मंगलवार को तड़के जैसे ही आई, लोगों को ऐसा प्रतीत हुआ कि उनके परिवार का कोई सदस्य उनसे रुखसत हो गया हो। लखनऊ के अलावा पूरा देश उनके निधन से स्तब्ध है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ उनकी राजनीतिक कर्मशाला और पाठशाला जैसी रही, तभी उन्हें ‘लखनऊ का लाल’ कहा जाता था। लखनऊ की मिट्टी से दो राजनेताओं का जुड़ाव सबसे ज्यादा रहा। अव्वल, अटल बिहारी वाजपेई और दूसरे लाल जी टंडन। बाबूजी के नाम से प्रसिद्व लाल जी टंडन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के हमेशा करीबी और अतिप्रिय रहे। अटल जी का राजनैतिक इतिहास अगर लखनऊ की धरती से जुड़ा, तो उसके पीछे लाल जी टंडन की मुख्य भूमिका रही।

अटल जी ने लखनऊ के अलावा कई बार दूसरे शहरों से चुनाव लड़ने का मन बनाया लेकिन ऐसा हो ना सका, कारण था? लखनऊ की जनता के प्रति उनका विशेष लगाव। लखनऊ के लोग कितना प्यार करते थे, ये बातें लाल जी टंडन ही उन्हें बताया करते थे। लाल जी का अलविदा कहना, निश्चित रूप से भारतीय राजनीति में एक ऐसा खालीपन होगा, जिसकी भरपाई सदियों कोई नहीं कर पाएगा? अटल जी का लखनऊ से दिल्ली और दिल्ली से अन्य शहरों में कहीं भी जाना होता, तो लाल जी टंडन उनके साथ साए की तरह साथ रहते थे। खैर, कुदरत की नियति और नियमों के समक्ष भला किसका जोर चला। मध्य प्रदेश के राज्यपाल और उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले लाल जी टंडन अब हमारे बीच नहीं रहे।

राजनीति में उनकी खास पहचान इसलिए मानी गई, वह अटल बिहारी वाजपेई के सबसे विश्वस्त सहयोगियों में गिने जाते थे। अटल जी जी उनपर आंख मूंदकर विश्वास किया करते थे। राजनीति में लाल जी टंडन का उप नाम बाबू जी था। इसी नाम से वह पुकारे जाते थे। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक समर्पित सेवक रहे। राजनीति के शुरुआती दिनों से ही उनकी संघ के भीतर सक्रियता अग्रणी रही। कई मंचों पर अटल जी ने अपने संबोधन में लाल जी को निष्ठावान और ईमानदार कार्यकर्ता कहा था। बाबूजी ने सियासत का ककहरा लखनऊ से सीखा। उन्होंने सदैव अटल जी को ही अपना राजनीतिक गुरु माना।

मध्य प्रदेश के राज्यपाल बनाए जाने के बाद भी उनका लखनऊ नियमित आना-जाना रहा। लखनऊ की राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। अटल बिहारी वाजपेई के विभिन्न चुनावों के रणनीतिकार हुआ करते थे। टंडन जी विधान परिषद् एवं विधान सभा के सदस्य रहे। उत्तर प्रदेश के मंत्री के नाते उन्होंने प्रदेश के अनेक नगरों को विकास की ओर अग्रसर किया, विशेष कर नगरीय सुविधाओं के लिए महत्वपूर्ण काम किया। लखनऊ के नवीनीकरण में उनका योगदान सदा स्मरणीय रहेगा। टंडन जी कार्यकर्ताओं के बीच भी बेहद लोकप्रिय थे। उनका निधन राजनीति के लिए अपूर्णीय क्षति हुई है। टंडन जी के जाने से सुसंस्कृत एवं सिद्धांत प्रिय व्यक्तिव का गहरा अभाव रहेगा। हर दिल अजीज थे और लखनऊ की परंपराओं में रचे बसे थे।

विपक्ष दलों के भीतर भी बाबूजी का बड़ा आदर हुआ करता था। बसपा प्रमुख मायावती ने उनको मुंह बोला भाई बनाया हुआ था। प्रत्येक रक्षाबंधन पर उन्हें राखी बांधने घर जाया करती थीं। उत्तर प्रदेश में बसपा और भाजपा के बीच जब गठबंधन हुआ था, उसमें टंडन जी की अहम भूमिका थी। मायावती और लाल जी के बीच भाई-बहन का रिश्ता बन जाने के बाद दोनों दल एक साथ आए थे और मिलकर सरकार बनाई थी। प्रदेश भर में राखी बांधने की चर्चाएं हुआ करती थी। दरअसल, मायावती लाल जी टंडन को हमेशा चांदी की राखी बांधा करती थीं। मायावती खुद पर लाल जी टंडन का एहसान समझती थीं।

बात 1995 की है जब चर्चित गेस्ट हाउस कांड की घटना घटी, उस दौरान मायावती की जान खतरे में पड़ी, तब लाल जी टंडन और एक अन्य भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने मौके पर पहुँचकर मायावती को सकुशल आजाद कराया था। तभी से मायावती उनका एहसान मानती थी। उसके कुछ सालों बाद मायावती ने उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। वह मुख्यमंत्री बनी थी। वहीं से मायावती और लाल जी टंडन के बीच भाई-बहन का रिश्ता बना, जो हमेशा यथावत रहा। रिश्ते-संबंध निभाने में उनका कोई सानी नहीं था। हर रिश्ते में वह ईमानदारी दिखाते थे। लाल जी टंडन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को अपना साथी, भाई और पिता मानते थे। उनके साथ करीब पांच दशकों तक रहे। इतना लंबा साथ अटल का शायद ही किसी और राजनेता के साथ रहा हो। लाल जी का यूं चले जाना, भाजपा के लिए बड़ा आघात है। वह पार्टी के लिए विशालकाय प्रशिक्षक, थिंकर, प्रेरणादायक जैसे थे। आधुनिक लखनऊ के वह शिल्पकार थे। उन्हें श्रद्धांजलि!

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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