नई दिल्ली (New Delhi)। इस समय देश में चुनाव का माहौल (Election atmosphere country) है। 19 अप्रैल (April 19) को पहले चरण (first phase) के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) के लिए मतदान (Voting) होगा। ये चुनाव कुल सात चरणों में होने हैं। उधर तमाम सियासी दलों ने अपने अधिकतर उम्मीदवारों का भी एलान कर दिया है। पार्टियां अपने प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार में जुटी हुई हैं।
हर सीट पर अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए पार्टियां जोर-आजमाइश कर रही हैं। चुनावी गहमागहमी के बीच कम ही लोगों को पता होगा कि पहले दो आम चुनावों में कुछ सीटों पर दो-दो सांसद चुने गए थे। ये व्यवस्था में 1961 में एक कानून के जरिए खत्म की गई थी।
आइये जानते हैं कि क्या थी वह व्यवस्था जिसके तहत एक सीट पर दो सांसद चुने जाते थे? यह नियम क्यों था? बाद में यह व्यवस्था कैसे खत्म की गई?
क्या थी वह व्यवस्था जिसके तहत एक सीट पर दो सांसद चुने जाते थे?
26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद मार्च 1950 में सुकुमार सेन देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे। कुछ दिनों बाद संसद ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम पारित किया, जिसमें बताया गया कि संसद और विधानसभाओं के चुनाव कैसे होंगे?
पहले आम चुनाव के लिए लोकसभा की कुल 489 सीटें थीं। ये सीटें 401 निर्वाचन क्षेत्रों में बांटी गई थीं। जब 1951 और 1952 के बीच देश के पहले आम चुनाव हुए तो 489 सीटों में से 314 निर्वाचन क्षेत्रों में एक सांसद का चुनाव किया गया।
हालांकि, 86 सीट ऐसी भी रहीं जहां से दो-दो सांसद चुने गए। इनमें एक सामान्य श्रेणी से और एक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से चुने गए। 1951 में सबसे अधिक दो सांसदों वाली सीट उत्तर प्रदेश में 17 थीं। इसके बाद मद्रास में ऐसी 13, बिहार में 11, बॉम्बे में आठ और मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में छह-छह सीटें थीं। वहीं पश्चिम बंगाल में एक ऐसी सीट थी, जहां से तीन सांसद निर्वाचित हुए थे।
जिस व्यवस्था के तहत एक सीट से दो या तीन सांसद चुने गए उसे समाज के वंचित वर्गों को प्रतिनिधित्व देने के लिए बनाया गया था।
दूसरे लोकसभा चुनाव में क्या हाल रहा था?
देश में दूसरे लोकसभा चुनाव 1957 में कराए गए थे। इसके पहले राज्यों का पुनर्गठन हुआ था। 1957 में लोकसभा सीटों की कुल संख्या 494 थी। ये सीटें 401 निर्वाचन क्षेत्रों में बांटी गई थीं। इस बार 91 सीटें ऐसी रहीं जहां दो-दो सांसद चुने गए। सबसे ज्यादा यूपी में दो सांसद वाली 18 सीट थीं। वहीं मध्य प्रदेश में नौ सीट, आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, बॉम्बे में आठ-आठ, मद्रास में सात, ओडिशा में छह और पंजाब में पांच सीट थीं।
यह व्यवस्था कब खत्म हुई?
दो सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों में सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की काफी आलोचना की गई। उस वक्त सुझाव दिया गया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी सीटें एकल सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों वाली होनी चाहिए। दो-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र वाली व्यवस्था असुविधाजनक और बोझिल मानी गई। आखिरकार 1961 के दो-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र (उन्मूलन) अधिनियम के जरिए इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। वहीं जब 1962 के लोकसभा चुनाव हुए तो इसमें एकल व्यवस्था लागू कर दी गई जो आज तक चल रही है। यानी एक निर्वाचन क्षेत्र से एक ही सांसद का निर्वाचन होगा।
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