डेस्क। आप जिस मोबाइल नंबर (mobile number) से बैंकिंग (banking) करते हैं, वही नंबर टेलिकॉम कंपनी (Number Telecom Company) किसी और को जारी कर दे तो? फिर उस सिम (Sim) के जरिए आपके बैंक अकाउंट (Bank Account) को खाली कर दिया जाए तो आप कहां जाएंगे? पुलिस, बैंक या फिर टेलिकॉम कंपनी? आपको जो नुकसान हुआ, वह एक तरफ… मगर इस पूरे प्रकरण में आपकी कोई गलती नहीं है।
चूक टेलिकॉम कंपनी की तरफ से हुई और बतौर उपभोक्ता, आप अपने नुकसान का मुआवजा पाने के हकदार हैं। राजस्थान के कृष्णा लाल के साथ यही सब हुआ था। उन्होंने अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया। नतीजा राज्य के आयकर विभाग ने वोडाफोन आइडिया को आदेश दिया है कि वह कृष्णा को 27.5 लाख रुपये चुकाए। यह रकम उन 68.5 लाख रुपये में बची हुई थी जो कृष्णा के अकाउंट से ट्रांसफर किए गए थे।
बार-बार शिकायत पर भी टेलिकॉम कंपनी ने नहीं सुनी
कृष्णा के मोबाइल नंबर ने 25 मई, 2017 को अचानक काम करना बंद कर दिया। वह टेलिकॉम कंपनी के स्टोर गए और शिकायत दर्ज कराई। नया नंबर मिल गया मगर कई शिकायतों के बाद भी इनऐक्टिव रहा। जयपुर में वह बार-बार स्टोर जाकर शिकायत करते रहे, फिर से सिम ऐक्टिवेशन की रिक्वेस्ट डाली। जब तक सिम ऐक्टिवेट होता, उनके खाते से 68.5 लाख रुपये निकाले जा चुके थे। उन्होंने पुलिस की मदद ली।
पता चला कि टेलिकॉम कंपनी ने बिना वेरिफिकेशन के कृष्णा का मोबाइल नंबर किसी भानु प्रताप को दे दिया था। उसने कई OTPs जेनरेट किए और कृष्णा का अकाउंट खाली कर दिया। टेलिकॉम कंपनी ने न सिर्फ नियमों का उल्लंघन किया, बल्कि नए सिम कार्ड के ऐक्टिवेशन में देरी भी हुई जिसकी वजह से पीड़ित के बैंक अकाउंट से पैसे ट्रांसफर होने जारी रहे। पुलिस के फॉलोअप पर भानु प्रताप ने 44 लाख रुपये तो लौटा दिए मगर बाकी नहीं। आयकर विभाग ने वोडाफोन आइडिया से कहा है कि वह बाकी बचे 27.5 लाख रुपये कृष्णा को चुकाए।
बस स्टॉप पर नहीं रुकी तो मुआवजा
इसी महीने कर्नाटक की एक उपभोक्ता अदालत ने यह फैसला सुनाया। विजया बाई ने बेंगलुरु से तुमाकुरु के लिए टिकट बुक की थी। मगर बस निर्धारित स्टॉप पर न रुककर उससे 400 मीटर दूर रुकी। महिला ने कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम (KSRTC) में शिकायत की पर सुनवाई नहीं हुई। फिर पीड़िता ने कंज्यूमर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने KSRTC से महिला को 8,010 रुपये का मुआवजा देने का आदेश सुनाया।
लापरवाही पर भी देना पड़ता है मुआवजा
गुजरात की एक अदालत ने पिछले दिनों अहमदाबाद नगर निगम से एक परिवार को डेढ़ लाख रुपये मुआवजा देने को कहा। 2004 में एक खुले मैनहोल में गिरकर 7 साल के बच्चे की मौत हो गई थी। अदालत ने पाया कि नगर निगम के अधिकारियों की लापरवाही से मैनहोल को ढका नहीं गया। अदालत ने कहा कि पीड़ित एक बच्चा था और उसे लापरवाह नहीं करार दिया जा सकता।
‘ट्रेन देरी से पहुंची तो जिम्मेदार है रेलवे’
ज्यादा पुरानी बात नहीं, इसी हफ्ते का वाकया है। दो यात्रियों ने दिल्ली आने के लिए प्रयागराज एक्सप्रेस के टिकट लिया। ट्रेन लेट होने के कारण दोनों यात्री करीब पांच घंटे की देरी से दिल्ली पहुंचे। इस वजह से उनकी कोच्ची की फ्लाइट छूट गई। पैसेंजर ने रेलवे के खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत की और फोरम ने रेलवे पर जुर्माना लगा दिया। फिर रेलवे ने चोरी भी, सीनाजोरी भी के रास्ते पर चलते हुए मामले को सुप्रीम कोर्ट तक खींच लिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी यात्रियों के पक्ष में फैसला देकर रेलवे की लताड़ लगाई।
जस्टिस एम आर शाह और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने कहा कि रेलवे ट्रेनों में देरी के लिए अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकता। बेंच ने कहा कि अगर रेलवे देरी की वजह बताने में नाकाम रहता है तो उसे यात्रियों को मुआवजा देना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यात्रियों का समय कीमती है और ट्रेनों में देरी के लिए किसी न किसी को जवाबदेह बनाना होगा। कोर्ट ने कहा, ‘यह प्रतिस्पर्द्धा और जवाबदेही का समय है। अगर पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन को निजी क्षेत्र के साथ कंपीट करना है तो उसे अपने सिस्टम और कार्यशैली में सुधार करना होगा। देश के लोग/यात्री शासन/प्रशासन की दया पर निर्भर नहीं रह सकते हैं। किसी को तो जिम्मेदारी लेनी होगी।’
वादे के अनुसार सेवा न मिले तो पा सकते हैं मुआवजा
अगस्त 2021 का मामला है। केरल में रहने वाले एक शख्स ने नई कार खरीदी। कार के साथ जो स्पेयर वील दिया गया, वह छोटा था। मामला कंज्यूमर कोर्ट गया। अदालत ने पाया कि छोटे आकार का स्पेयर वील हैंडलिंग पर असर डालता है।। सब कुछ सुनने के बाद, कोर्ट ने ग्राहक के पक्ष में फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि कार निर्माता और डीलर को कार्यवाही के लिए ग्राहक को अदालती खर्च के रूप में 5,000 रुपये के साथ 20,000 रुपये का भुगतान करना चाहिए।
6 साल की कानूनी जंग… आखिर सजा मिली
पिछले हफ्ते, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया। चार मौजूदा और एक रिटायर आईएएस अफसर को अवमानना का दोषी पाया गया। उन्हें जेल या जुर्माने की सजा सुनाई गई। रसूखदारों पर यह कार्रवाई हुई 62 साल की एक बुजुर्ग महिला किसान की याचिका पर। 2015 में महिला से जमीन ली गई थी और मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया। लोकायुक्त से होते हुए मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा। यह मामला एक मिसाल है कि अगर सिस्टम ने आपके साथ गलत किया है तो आप उसे जिम्मेदार ठहरा सकते हैं।
‘अवैध गिरफ्तारी पर मिलेगा 25 हजार रुपये मुआवजा’
उत्तर प्रदेश में ऐसी नीति है। अगर किसी शख्स को अवैध तरीके से हिरासत में रखा जाता है तो सरकार उसे 25 हजार रुपये मुआवजा देगी। यह नीति इसी साल मार्च से लागू हुई। दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई का प्रावधान है। शिकायत पर तीन महीने में जांच पूरी होगी और सही पाए जाने पर तत्काल मुआवजा मिलेगा।
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