- अग्रिबाण एक्सक्लूसिव : मंदिर पुजारियों ने कहा लोगों को नहीं पता..इसे प्रचारित किया जाए
- एक पालकी में और दूसरा हाथी पर विराजित होता है
उज्जैन। महाकाल की सवारी में श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को देखते हुए आए दिन माँग की जाती है कि महाकाल की पालकी को ऊँचा किया जाए या फिर सुरक्षा के लिए लगे बैरिकेट्स को हटाकर छोटे बेरिकेट लगाए जाएं ताकि सड़कों पर खड़े लोगों को पालकी में सवार बाबा महाकाल के दर्शन सुगमता से हो सके लेकिन यह बात बहुत कम लोग या श्रद्धालु जानते हैं कि बाबा महाकाल के एक समान दो मुखारविंद एक साथ सवारी में चलते हैं और दोनों में से किसी का भी दर्शन हो जाए तो बराबर का पुण्य लाभ मिलता है। बाबा महाकाल अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए राजा की तरह निकलते हैं। उनका राजसी ठाट-बाट और वैभव हर श्रद्धालु का मन मोह लेता है। बाबा महाकाल जब अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं तो उनके आगे कड़ाबीन के धमाकों से नगर की जनता को यह संदेश दिया जाता है कि राजा पधार रहे हैं। पुलिस का बैंड स्वर लहरियों के साथ आगे चलता है। पुलिस के सशस्त्र जवान सवारी मार्ग पर कदमताल के साथ चलते और जब महाकाल राजा मंदिर से बाहर आते हैं तो मुख्य द्वार पर उन्हें पुलिस विभाग की और से सशस्त्र बल गार्ड ऑफ ऑनर देता है और फिर एक राजा की तरह पालकी में सवार बाबा महाकाल अपनी जनता का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकल पड़ते हैं।
नगर की जनता भी अपने राजा के आगमन के लिए पलक-पावड़े बिछाकर हाथों में फूलों की थाली लेकर अपने राजा के स्वागत के इंतजार में खड़ी रहती है। बाबा महाकाल की सवारी का वैभव, आकर्षण और आस्था अब इतनी हो गई है कि हर सवारी में श्रद्धालुओं की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है। पुलिस एवं जिला प्रशासन द्वारा भी सवारी और पालकी की सुरक्षा के लिए हर तरह की व्यवस्था की जाती है। सवारी मार्ग पर लगाए गए बैरिकेड की अधिक ऊँचाई होने के कारण सड़क पर खड़े श्रद्धालुओं को पालकी में सवार महाकाल राजा के दर्शन नहीं हो पाते इसको लेकर आए दिन आम जनता का विरोध होता है। जनप्रतिनिधियों द्वारा भी कई बार बैठकों में यह कहा जाता है की महाकाल की पालकी की ऊँचाई कुछ बढ़ाई जाए जिससे श्रद्धालुओं को महाकाल राजा के दर्शन सुगमता से हो सके लेकिन यह बात बहुत कम ही लोग जानते हैं कि महाकाल की सवारी में एक जैसे दो मुखारविंद चलते हैं। एक मुखारविंद पालकी में और दूसरा हाथी पर होता है। दोनों ही एक समान मुखारविंद होते हैं। महाकाल मंदिर के पुजारी पंडित महेश गुरु ने अग्रिबाण को बताया कि पूर्व के समय में जो राजा होते थे वह या तो पालकी में सवार होकर निकलते थे या हाथी पर सवार होकर निकलते थे, इसलिए अनादिकाल से जब से महाकाल की सवारी निकल रही है, उसी समय हमारे पूर्वजों ने भक्तों की सुविधा के लिए यह व्यवस्था की थी कि भगवान के एक जैसे दो मुखारविंद बनवाए गए और तभी से एक मुखारविंद पालकी में विराजित किया जाता है और दूसरा उसी तरह का मुखारविंद हाथी पर बैठाया जाता है और महाकाल राजा इस तरह पालकी में भी सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं और हाथी पर सवार होकर भी अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते हैं। पुजारी महेश गुरु बताते हैं कि दोनों मुखारविंद एक समान रहते हैं। जिन भक्तों को पालकी में बैठे महाकाल राजा के दर्शन नहीं हो पाते हैं वह श्रद्धालु हाथी पर सवार महाकाल राजा के दर्शन कर सकता है। आपने कहा कि श्रद्धालुओं को इस बात की जानकारी नहीं है इसलिए श्रद्धालु सिर्फ पालकी की ओर ही ध्यान देते हैं। आवश्यकता है कि मंदिर प्रबंध समिति इस बात का बड़े स्तर पर प्रचार प्रसार करें ताकि आम लोगों और श्रद्धालुओं को पता चल सके कि नगर भ्रमण पर बाबा महाकाल पालकी और हाथी दोनों पर सवार होकर निकल रहे हैं।