गर्व का सफर किसी एक दिन में नहीं बंध पाएगा… शहर के इस गौरव में हर शख्स का समर्पण नजर आएगा
गौरव दिवस की तलाश में जुटा शहर… बहुत मुश्किल है इस शहर के गौरव को किसी एक दिन में समेट पाना… हमारे संस्कार के गौरव पर इठलाना या हमारी कर्मठता… हमारी जिद और जुनून पर गर्व जताना… इस शहर ने शर्म से लेकर गर्व तक का गुरूर बड़ी मुश्किल से हांसिल किया है… जिस वक्त ने इस शहर को जन्म दिया… बड़ी जद्दोजहद को अपनाते, लड़ते-भिड़ते शहर को आगे बढ़ाते…इस शहर ने कभी जल के संकट को भोगा तो कभी अंधेरे में रात गुजारी…कभी सडक़ों के गड्ढों में जिंदगी गुजारी तो कभी परदेसियों द्वारा खराब सडक़ों की लानतों पर शर्मसार होकर नजरें झुकाईं…हम तो उस अंतरराष्ट्रीय बेइज्जती को भी झेल चुके हैं, जब टेस्ट मैच खेलने आई विदेशी टीम धूल उड़ते मैदान में खेलने से इनकार कर हमारी इज्जत पर पलीता लगा गई…हम तब भी शर्मसार बने, जब स्वर कोकिला लता मंगेशकर के आतिथ्य पर उंगली उठाई और उन्हेें वाहन में कैद कर विरोध की कालिख लगाई…ऐसे कई मुंह छिपाने वाली बेबसी के बाद यदि हम गौरव दिवस मनाने का अधिकार जता रहे हैं तो उसका हक इस शहर के हर उस छोटे-बड़े शहरी को है, जिसने मौका मिलते ही मिजाज दिखाया…स्वच्छता का पैगाम आते ही खुद के संस्कारों का आचरण दिखाया…कचरापेटी हटते ही घरों में कचरा इकट्ठा कर निगम के वाहनों तक पहुंचा…सुविधाघर मिलते ही दीवारों को रंगने से खुद को बचाया…आवारा ढोरों को शहर से हटाकर पूरे देश में इंदौर को ऐसा पहला शहर बनाया, जहां गाय ग्वालों के घर में पलती है…सडक़ों पर नहीं विचरती है… इंदौर के गौरव का पहला दिन तो वह था, जब हमने स्वच्छता का खिताब पाया…इंदौर के गौरव का दिन तो वह है, जब हमने अंधकार से छुटकारा पाया…इंदौर के गौरव का दिन तो वह है, जब हमने नर्मदा को घर-घर में पाया…सडक़ों को घरों की तरह स्वच्छ बनाया…इंदौर का गौरव तो यह है कि हमारे बच्चे बड़ों को सबक सिखाते हैं…कोई कचरा फेंके तो वह उसे उठाकर कचरापेटी में डालते हैं…इंदौर का गौरव तो यह है कि हम दिन-रात मेहनत कर कमाते-खाते हैं और अपने भविष्य को ही नहीं शहर को भी उन्नत बनाते हैं…इंदौर का गौरव तो यह है कि हम अपनी माताओं-बहनों को आधी रात में भी सुरक्षा का एहसास दिला पाते हैं…गुंडों के घर तोड़ डालते हैं… हिमायतियों को नेस्तनाबूद कर डालते हैं… समय पर कर चुकाते हैं…सेवा का ऐसा जज्बा दिखाते हैं कि कोरोना जैसी जानलेवा महामारी में भी लोगों को भोजन खिलाने पहुंच जाते हैं… इलाज कराते हैं…मीलों पैदल चलकर दूसरे शहरों से आते लोगों को चप्पल पहनाते हैं… भूख मिटाते हैं…सरहद तक पहुंचाते हैं…तब हर दिन गौरव दिवस बन पाता है…यह गौरव किसी एक दिन में नहीं बन पाता है…तारीखों और तारीफों में हम उलझना नहीं चाहते हैं… अहिल्या के चरण और आचरण दोनों के आगे शीश झुकाते हैं…शहर का नाम भगवान इंद्रेश्वर के नाम पर इंदौर हो या उनकी भक्त माता अहिल्या के नाम पर…हम तो भक्त और भगवान दोनों के वात्सल्य में डूबकर गौरव का एहसास पाते हैं…हम तो उस सरकार को भी अपना मानते हैं, जिसने सिसकती सडक़… पानी की कतार और घरों में अंधकार का दर्द दिया और उस सरकार को भी लगातार पुरस्कार देते हैं, जिसने दर्द का इलाज किया… आगे बढऩे का अवसर दिया…यह गर्व तभी गौरव दिवस बन पाएगा, जब शहर गौरव की इस परंपरा को कायम रख पाएगा…शहर का नेतृत्व लोगों के दर्द को समझ पाएगा…उनके समर्पण को सम्मान दे पाएगा…उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाएगा…प्रशासन सुरक्षा का वचन निभाएगा…लोगों के हक दिला पाएगा और सरकार के विचार में विकास का नजरिया नजर आएगा… तब हमारा गौरव और बढ़ जाएगा…यह शहर देश ही नहीं दुनिया का सबसे गौरवशाली वर्तमान लिखता हुआ इतिहास के पन्ने लिखता जाएगा…
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