नई दिल्ली । भारत (India) में बूस्टर या प्रिकॉशनरी डोज (booster or prescription dose) लेने वालों की तादाद कम है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, सरकार ने दूसरी डोज और प्रिकॉशनरी डोज के बीच में जो 9 महीने का गैप अनिवार्य कर रखा है, वह अवैज्ञानिक है। फोर्टिस सी-डॉक के चेयरमैन डॉ अनूप मिश्रा कहते हैं, ‘ज्यादातर स्टडीज बताती हैं कि वैक्सीन (vaccine) की दो डोज से बनने वाली न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज 4 से 6 महीने बाद घटने लगती हैं। इसलिए मेरी राय में, डोज के बीच गैप छह महीने से ज्यादा नहीं होना चाहिए।’ सर गंगाराम अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट में सीनियर कंसल्टेंट डॉ अतुल गोगिया भी गैप को घटाकर छह महीने करने के पक्ष में है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बूस्टर शॉट मिल सके। आइए समझते हैं कि बूस्टर डोज पर गैप को एक्सपर्ट्स क्यों अनसाइंटिफिक बता रहे हैं।
दूसरे देशों में बूस्टर डोज के लिए कितना गैप?
दूसरे देशों के उदाहरण देखें तो अमेरिका में सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (CDC) ने दो डोज के बीच पांच महीनों के गैप की सिफारिश कर रखी है। यूके में 16 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोगों के लिए दूसरी डोज के तीन महीने बाद बूस्टर डोज उपलब्ध है। बेहद कमजोर इम्युन सिस्टम वाले लोग, जैसे ब्लड कैंसर से पीड़ित लोग दूसरी डोज के आठ हफ्तों बाद कभी भी तीसरी डोज ले सकते हैं। यूके में सभी लोगों को हेल्थकेयर प्रोवाइड करने वाले नैशनल हेल्थ सर्विस (NHS) के अनुसार, कमजोर इम्युन सिस्टम वाले चाहें तो बूस्टर डोज के तीन महीने बाद चौथी डोज भी ले सकते हैं।
‘सरकार को अब कम कर देना चाहिए गैप’
पिछले साल दिसंबर में जब भारत में बुजुर्गों, फ्रंटलाइन और हेल्थ वर्कर्स के लिए बूस्टर डोज शुरू की गई थी, तब कई राज्य प्राइमरी वैक्सीनेशन में पिछड़ रहे थे। तो यह बात समझ में आ रही थी कि सरकार सभी को थोड़ा धीमी रफ्तार से बूस्टर डोज देना चाहती थी। लेकिन अब ज्यादातर वयस्क आबादी पूरी तरह वैक्सीनेटेड और हमारे पास वैक्सीन की कमी भी नहीं है। इसलिए मुझे लगता है कि सरकार को दूसरी और तीसरी डोज के बीच गैप कम करना चाहिए।
AIIMS के पूर्व डीन डॉ एनके मेहरा ने समझाया, ‘कोविड के खिलाफ इम्युनिटी दो तरह से मिलती है। पहली ह्यूमरल इम्युनिटी जो एंटीबॉडीज के उत्पादन के रूप में मिलती है और दूसरी सेल मीडिएटेड इम्युनिटी। कोविड जैसे वायरल इन्फेक्शन में गंभीर बीमारी रोकने में इन दोनों का अहम रोल होता है। हालांकि एंटीबॉडीज छह-आठ महीनों में घटने लगती हैं और यह कई स्टडीज में साबित हो चुका है।’ मेहरा ने कहा कि ऐसा इसलिए होता है कयोंकि एंटीबॉडी बनाने वाली प्लाज्मा सेल्स की शेल्फ लाइफ कम होती है।
उन्होंने बताया, ‘सेल मीडिएटेड इम्युनिटी एक्टिव रहती है मगर बेहतर सुरक्षा के लिए ह्यूमरल इम्युनिटी का होना जरूरी है और इसीलिए बूस्टर डोज की जरूरत पड़ती है। मेहरा कहते हैं, ‘जिस किसी का भी इम्युन सिस्टम कमजोर है जैसे कैंसर पेशेंट्स, डायबिटीज के मरीज या बुजुर्ग लोग, उन्हें प्राइमरी वैक्सीनेशन के छह महीने बाद बूस्टर डोज की अनुमति मिलनी चाहिए।
संक्रमण से बचना है तो बूस्टर जरूरी : स्टडी
कोविड के मामलों में इजाफे के बीच हर कोई यही जानना चाहता है कि क्या उसने टीके की जो खुराक (कोवैक्सिन या कोविशील्ड) लगवाई थी, वह अब भी बचाव दे रही होगी? इस बारे में स्टडी करने वाले आईसीएमआर – नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन लोगों ने कोविशील्ड लगवाई है और उन्हें कभी कोविड नहीं हुआ था, उनमें ओमीक्रोन के सब वेरिएंट्स से संक्रमण होने पर दिक्कत बढ़ सकती है। ऐसे में इन्हें बूस्टर जरूर लगवाना चाहिए।
वहीं जिन्हें संक्रमण के बाद टीका लगा, उनमें ओमीक्रोन के खिलाफ ऐंटीबॉडी का स्तर सही देखा गया है। इससे पहले कोवैक्सिन को लेकर भी यही रिपोर्ट सामने आई थी। कुल मिलाकर इनमें से किसी भी वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बाद भी ओमीक्रोन और उसके सब वेरिएंट मरीज को बहुत बीमार कर सकते हैं। ऐसे में इनसे बचने के लिए बूस्टर डोज की सलाह दी गई है।
कोविशील्ड पर रिसर्च में और क्या पता चला?
कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर किए गए अध्ययन में सामने आया है कि इस वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के बाद भी शख्स में ओमीक्रोन का असर दिख रहा है। इतना ही नहीं ओमीक्रोन के नए वेरिएंट शरीर की ऐंटीबॉडी को प्रभावित कर रहा है। वहीं अगर बूस्टर डोज ले ली जाए तो काफी हद तक ऐंटीबॉडी इस वेरिएंट के खिलाफ असरदार हो सकती हैं। आईसीएमआर के एक वैज्ञानिक ने कहा है कि डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले ओमीक्रोन का स्पाइक बेहद ताकतवर है।
हालांकि, कोविशील्ड लगवा चुके लोगों के अध्ययन से पता चलता है कि यह वायरस से लड़ने के लिए मजबूत ऐंटीबॉडी रखता है लेकिन फिर भी ओमीक्रोन वेरिएंट के बाद इसका असर कम हुआ है। रिसर्चर्स ने जांच में पाया कि टीके से मिली ऐंटीबॉडी ने ओमीक्रोन के सब वेरिएंट की तुलना में बीटा और डेल्टा वेरिएंट को अधिक प्रभावी ढंग से बेअसर किया है। ओमीक्रोन के मुकाबले सीरम में ऐंटीबॉडी का औसम सबसे कम 0.11 पाया गया, जबकि अन्य मामलों में इसका औसत 11.28 और 26.25 था।
‘मिक्स एंड मैच वैक्सीन से मिलेगी डबल सुरक्षा’
एक हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कोरोना से बचाव को लेकर सबसे प्रभावी तरीके का दावा किया है। द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने बताया कि अगर लोगों को मिक्स एंड मैच वैक्सीन का बूस्टर शॉट दिया जाए तो उन्हें कोविड-19 से अधिक सुरक्षित किया जा सकता है। मिक्स एंड मैच वैक्सिनेशन का मतलब, जिस वैक्सीन की पहली दो डोज लगी है, उससे अलग किसी अन्य वैक्सीन का बूस्टर शॉट देने से है।
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि वैक्सीन की दो डोज की तुलना में अगर तीसरी या बूस्टर डोज लगाई जाए तो इससे अतिरिक्त सुरक्षा मिल सकती है। वहीं शोध में पाया गया है कि इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए मिक्स एंड मैच वैक्सीन प्रणाली को प्रयोग में लाना कारगर हो सकता है। शोध में पाया गया कि जिन लोगों को कोरोनावैक वैक्सीन की पहली दो खुराक लगी थी, उन्हें फाइजर या एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का बूस्टर शॉट देकर संक्रमण और रोग के खिलाफ अधिक प्रभावी ढंग से सुरक्षा दी जा सकती है। वैज्ञानिकों ने पाया कि ऐसा करके कोरोना के अत्याधिक संक्रामक वेरिएंट्स से भी अतिरिक्त सुरक्षा पाई जा सकती है।
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