नई दिल्ली (New Delhi) । लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में दक्षिण भारत (south india) का सियासी समीकरण काफी हद तक क्षेत्रीय दलों (regional parties) की भूमिका पर निर्भर करेगा। भाजपा और कांग्रेस (BJP and Congress) दोनों के लिए दक्षिण भारत काफी महत्वपूर्ण है। विपक्षी खेमे के क्षेत्रीय दल अगर दक्षिण भारत में बेहतर प्रदर्शन करते हैं तो भाजपा की चुनौती बढ़ जाएगी। इसलिए कांग्रेस ने यहां अपना समीकरण साधने के लिए अलग रणनीति बनाई है। वहीं, भाजपा भी दक्षिण में समीकरण दुरुस्त करने के लिए बहुत जोर लगा रही है।
जानकारों की मानें तो दक्षिण का किला क्षेत्रीय दलों के सहयोग के बिना कोई भी राष्ट्रीय दल जीतने की स्थिति में नहीं है। यहां कुल 131 लोकसभा सीटें आती हैं, जिनमें कर्नाटक में 28, तेलंगाना में 17, आंध्र प्रदेश में 25, तमिलनाडु में 39, केरल में 20, पुदुचेरी और लक्षद्वीप में 1-1 सीट है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे देखें तो भाजपा 30 संसदीय सीटें जीतने में सफल रही थी। जबकि, कांग्रेस 27 सीटें और क्षेत्रीय दलों के खाते में 74 सीटें आई थीं, जिसमें ज्यादतर गैर-भाजपा दल हैं।
कांग्रेस की कोशिश दक्षिण में दबदबा बनाने की
जानकारों का कहना है कि विपक्ष दक्षिण भारत की कुल 131 लोकसभा सीट जीतने में अगर सफल रह जाता है और भाजपा बेहतर प्रदर्शन नहीं करती है तो यहां बड़ा सियासी उलटफेर हो सकता है। कांग्रेस की कोशिश दक्षिण भारत में अपना दबदबा बनाने की है। लेकिन, क्षेत्रीय दलों को साधने में वह जितना सफल रहती है, उसकी सफलता का प्रतिशत भी उतना ही बढ़ जाएगा।
तमिलनाडु में डीएमके-कांग्रेस का गठबंधन है, जिसमें डीएमके बड़े भाई की भूमिका में है। भाजपा तमिलनाडु में एआईडीएमके की जूनियर पार्टनर है। आंध्र प्रदेश में भाजपा और टीडीपी की बातचीत चल रही है, यहां संभवतः भाजपा छोटे भाई की भूमिका में होगी। इसके अलावा, केरल में कांग्रेस के अगुवाई वाले यूडीएफ और लेफ्ट के नेतृत्व वाले एलडीएफ के बीच सीधा मुकाबला है। शुरुआती दौर में कांग्रेस का तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, संयुक्त आंध्र प्रदेश में जबरदस्त तरीके से वर्चस्व था। लेकिन, यह धीरे-धीरे कम होता गया। केरल में कम्युनिस्ट दलों का दबदबा बढ़ा। कांग्रेस पार्टी का यहां एकतरफा वर्चस्व नहीं रहा है।
भाजपा धीरे-धीरे अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रही
तमिलनाडु में डीएमके और एआईएडीएमके जैसे क्षेत्रीय दलों का प्रभाव राष्ट्रीय दलों की रणनीति पर सीधा असर डालता है। कांग्रेस यहां द्रमुक की जूनियर पार्टनर है। जबकि भाजपा धीरे-धीरे अपना प्रभाव जमाने की कोशिश कर रही है। अभी उसकी स्थिति यहां बहुत मजबूत नहीं रही है। इसी तरह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस और बीआरएस जैसे क्षेत्रीय दल चुनावी समीकरण को अपने इर्द-गिर्द रखने में सफल रहे हैं।
कर्नाटक में जेडीएस बड़ी ताकत
इसी तरह कर्नाटक में जेडीएस एक ताकत है। हालांकि, यहां भाजपा और कांग्रेस दोनों का अच्छा जनाधार है। दोनों दल यहां अच्छी संख्या में सीट जीतने की क्षमता रखते हैं। लेकिन, जानकार मानते हैं कि जेडीएस को यहां कम नहीं आंका जा सकता और वह किसी का पलड़ा भारी करने की भूमिका निभा सकता है। मौजूदा समय में केरल में लेफ्ट की अगुवाई वाली एलडीएफ गठबंधन का कब्जा है तो तेलंगाना में बीआरएस, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस का अच्छा खासा दबदबा है।
कर्नाटक में कांग्रेस ने अपने दम पर हाल ही में सरकार बनाई है और तेलंगाना भी पार्टी जीती है। वहीं, तमिलनाडु में डीएमके के साथ सरकार में शामिल है। इसलिए इन राज्यों में उसे विपक्षी खेमे के बढ़त की उम्मीद है। वर्ष 2019 में क्षेत्रीय दलों ने दक्षिण में 74 सीटें जीती थी, जिसमें वाईएसआर 25, डीएमके 20, बीआरएस ने 9 सीटें जीती थी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा कर्नाटक और तेलंगाना में सीटें जीतने में सफल रही जबकि केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में खाता तक नहीं खोल सकी।
भाजपा गठबंधन का तानाबाना बुन रही
भाजपा दक्षिण में नए सहयोगी दलों के साथ गठबंधन का तानाबाना बुन रही है, जिसमें आंध्र प्रदेश में टीडीपी और कर्नाटक में जेडीएस के साथ नजदीकियां बढ़ा रही है। जहां तक कांग्रेस की बात है तमिलनाडु में डीएमके और लेफ्ट पार्टियां कांग्रेस के साथ हैं और 2024 में मिलकर चुनाव लड़ेंगी। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस अकेले दम पर चुनावी मैदान में उतर सकती है।
सियासी माहौल बनाने में जुटी कांग्रेस
कांग्रेस कर्नाटक में सरकार बनने के बाद से 2024 के मिशन में जुट गई है। तेलंगाना में लगातार बीआरएस नेताओं को अपने पाले में लाकर सियासी माहौल बनाने में जुटी है। ऐसे ही केरल में कांग्रेस लेफ्ट के साथ पहले की तरह ही मुकाबला करना चाहती है, क्योंकि भाजपा का प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं है।
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