नइ दिल्ली (New Delhi) । बीजेपी (BJP) के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन (NDA Alliance) इस लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में 400 से अधिक सीटें जीतेगा या नहीं, इसका फैसला मंगलवार को हो जाएगा। देश के चुनावी इतिहास में देखें तो अब तक यह संख्या केवल एक बार पार की गई है, जब इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस (Congress) ने 414 सीटें जीती थीं। उस वक्त कुल 541 लोकसभा सीटें थीं। आजादी के बाद शुरुआती बरसों में कांग्रेस प्रमुख पार्टी रही, उस दौरान भी उसकी सीटों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं होती थी। कांग्रेस ने साल 1957 के आम चुनाव में 371 सीटों पर विजय का परचम लहराया। साल 1951-52, 1957, 1962 और 1971 के चुनावों में कांग्रेस 300 से ही अधिक सीटें जीतती रही। इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव में कांग्रेस 154 सीटें ही जीत सकी। हालांकि, 1980 में यह संख्या 353 तक पहुंच गई।
राजीव गांधी के नेतृत्व में साल 1984 में नई सरकार का गठन हुआ, जिन्हें उनकी मां की हत्या के बाद जल्दबाजी में अंतरिम प्रधानमंत्री चुना गया था। हालांकि, इस भारी बहुमत का मतलब यह नहीं रहा कि उनकी सरकार परेशानियों से मुक्त थी। शाहबानो मामले पर फैसला, बाबरी मस्जिद में मंदिर के ताले खोलवाना और बोफोर्स घोटाले जैसे मुद्दों को लेकर उन्हें जमकर घेरा गया। इसका नतीजा यह रहा कि 1989 में कांग्रेस 197 सीटें ही जीत सकी और उसने केंद्र की सत्ता खो दी। इसके बाद जनता दल के नेतृत्व में पार्टियों के गठबंधन ने सरकार बनाई। हालांकि, कांग्रेस ने आने वाले सालों में तीन बार सरकार बनाई मगर उसे कभी भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस साल 1991 में 244 सीटें, 2004 में 145 और 2009 के लोकसभा चुनाव में 206 सीटें ही जीत सकी। ध्यान रहे कि बहुमत का आंकड़ा 272 सीटों का रहा।
1984 में कैसे विपक्षी दलों को लगा बड़ा झटका
अगर 1984 के आम चुनावों की बात करें तो कांग्रेस ने न केवल रिकॉर्ड संख्या में सीटें जीतीं, बल्कि उसे किसी भी पार्टी के लिए अब तक का सबसे अधिक 48.12% वोट शेयर भी मिला था। इससे पहले कांग्रेस ही इसके करीब तब पहुंची थी, जब देश के आजादी के बाद 1957 में दूसरा आम चुनाव हुआ। उस वक्त कांग्रेस को 47.78% वोट मिले थे। 1984 के बाद तो किसी भी पार्टी ने वोट शेयर में 40% का आंकड़ा पार नहीं किया। हां, 1989 में कांग्रेस जरूर 39.53% तक पहुंच गई थी। 1984 के आम चुनाव में विपक्षी दलों को बड़ा झटका लगा था। कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी सीपीआई (एम) रही, जिसने 22 सीटें जीतीं। इसका वोट शेयर 5.71% था। भाजपा ने 7.4% के साथ दूसरा सबसे बड़ा वोट शेयर हासिल किया मगर 2 सीटें ही जीत सकी। गैर-कांग्रेसी राष्ट्रीय दलों ने कुल मिलाकर 48 सीटें जीतीं, जबकि राज्य पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने कुल 79 सीटें जीती थीं।
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