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    लोकसभा चुनाव: कांग्रेस 1991 के बाद सिर्फ एक बार लगा सकी सीटों का दोहरा शतक

  • April 02, 2024

    नई दिल्ली (New Delhi)। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस (Country’s oldest party Congress) आज उस दौर से गुजर रही है, जिस दौर से शायद ही भारत (India) में कभी कोई पार्टी शीर्ष पर जाकर गुजरी हो। हालात ये हैं कि 1991 के बाद केवल 2009 के लोकसभा चुनाव में ही यह पार्टी 200 सीटों का आंकड़ा छू पाई। इस बार भी उसे इस आंकड़े तक पहुंचने के लिए किसी चमत्कार की ही उम्मीद (only hope for a miracle) करनी होगी।


    निर्वाचन आयोग (Election Commission) के आंकड़े बताते हैं कि 1951-52 में पहले लोकसभा चुनाव में लोकप्रियता के शिखर पर सवार कांग्रेस को 364 सीटें मिलीं थीं। पार्टी को कुल 44.99 प्रतिशत वोट मिले थे। तीसरी लोकसभा के लिए 1962 में हुए चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी घटा और सीटें भी। वोट 44.71 प्रतिशत रह गया, जबकि सीटें 361 पर आ गईं। 1967 में पार्टी की लोकप्रियता में और गिरावट आई। वोट घटकर 40.78 प्रतिशत और सीटें 283 रह गईं। हालांकि, 1971 में फिर से वापसी की। उसका वोट बढ़कर 43.68 प्रतिशत और सीटें 352 हो गईं। इसमें सबसे ज्यादा योगदान आंध्र प्रदेश की 28, बिहार की 39, महाराष्ट्र की 42 और उत्तर प्रदेश की 73 सीटों का था।

    आपातकाल के बाद गिरे औंधे मुंह
    1977 पार्टी के लिए बहुत बुरा दौर था, जब उसे पहली बार केंद्र की सत्ता से महरूम होना पड़ा।
    देश में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया हुआ था। लोकसभा का कार्यकाल नवंबर में खत्म होने वाला था। लेकिन, अचानक 18 जनवरी को चुनाव की घोषणा कर दी गई।
    आपातकाल से नाराज जनता एकजुट हुई और कांग्रेस को केवल 154 सीटों पर समेट दिया। वोट प्रतिशत भी 34 फीसदी पर आ गया।
    26 वर्षों में कांग्रेस के लिए यह सबसे बुरा चुनाव था। उधर, जनता पार्टी को 295 सीटें मिलीं और उसने सरकार बना ली।

    1980 में चमत्कारिक वापसी
    जनता पार्टी की सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और 1980 में मध्यावधि चुनाव कराए गए। इस चुनाव में कांग्रेस को 42.69 प्रतिशत वोट के साथ 353 सीटें मिलीं। 1984 में पार्टी इस आंकड़े को भी पार कर गई। दरअसल, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही सुरक्षा गार्डों ने हत्या कर दी। इससे देश में कांग्रेस के प्रति जबरदस्त सहानुभूति की लहर उठी।

    1984 का रिकॉर्ड आज तक न टूटा
    सहानुभूति की लहर में कांग्रेस का वोट बढ़कर 48 प्रतिशत को भी पार कर गया। सीटें भी रिकॉर्ड 414 हो गईं। यह वह रिकॉर्ड है जो न तो कांग्रेस कभी दोहरा पाई और न ही पिछले 10 वर्षों में लोकप्रियता के शिखर पर पहुंची भाजपा इसके करीब पहुंची। भाजपा को 2014 में 282 सीटें और पिछले चुनाव में 303 सीटें मिलीं। इस बार भाजपा ने 400 के पार का नारा दिया है।

    1989 से अकेले बहुमत नहीं
    लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है। आंकड़े बताते हैं कि 1984 के बाद कांग्रेस को कभी भी अकेले बहुमत नहीं मिला। 1989 में उसे 39.53 प्रतिशत वोट और 197 सीटें मिलीं। 1991 में उदारीकरण के दौर में पार्टी 36.40 फीसदी वोट और 244 सीटें हासिल कर पाई। उस समय पहली बार भाजपा को 120 सीटें मिली थीं और उसका वोट 20 प्रतिशत से ज्यादा था।

    हार की हैट्रिक
    कांग्रेस की स्थिति लगातार खराब होती गई, जब तक कि 2004 का चुनाव नहीं हुआ। 1996 में कांग्रेस को 140 व भाजपा को 161 सीटें मिलीं। 1998 में पार्टी ने 141 तो भाजपा ने 184 सीटें जीतीं। 1999 में भाजपा ने 182 सीटें जीत एनडीए सरकार बनाई। कांग्रेस इस बार भी 114 सीटों पर सिमट गई। उसका वोट भी 28.30 फीसदी रह गया।

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