– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
अपवादों को छोड़ दिया जाए तो कोरोना के खिलाफ जंग केवल सरकारी डेडिकेटेड कोविड सेंटरों के माध्यम से ही बेहतर तरीके से जीती जा सकती है। यह मैं अपने प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर साझा कर रहा हूं। दीपावली की सुबह लगभग काल बनकर ही मेरे लिए आई थी पर जयपुर का सरकारी आरयूएचएस अस्पताल नया जीवनदाता बनकर उभरा। यह कोई जयपुर या राजस्थान के हालात नहीं बयां कर रहा बल्कि जिस तरह की व्यवस्थाएं सरकारों द्वारा कोरोना संक्रमितों के लिए की जा रही है, वह वास्तव में सराहनीय है। लगभग देश के सभी सरकारी डेडिकेटेड कोविड सेंटरों में कमोबेश यही स्थिति है। पर धवल पक्ष के स्थान पर स्याह पक्ष को सामने लाया जा रहा है।
दीपावली की सुबह परिजनों ने शुभचिंतकों के सहयोग से अतिगंभीर स्थिति में आरयूएचएस के आउटडोर में दिखाकर वार्ड 8 में भर्ती कराया। तत्काल इलाज शुरू हुआ और दो दिनों में एक-दो बार बेहोशी को देखते हुए आरयूएचएस प्रभारी डॉ. अजित सिंह ने स्वयं आकर दूसरे कमरे में शिफ्ट किया। तत्काल रेमडेसिविर के साथ अन्य इंजेक्शन और ऑक्सीजन की व्यवस्था की गई। यहां मैं यह कहना चाहता हूं कि यह व्यवस्था अकेले मेरे लिए नहीं अपितु आरयूएचएस में आने वाले सभी कोरोना मरीजों के लिए हो रही है। वह भी पूरी तरह निःशुल्क। इसके बाद जिस तरह का बेहतरीन इलाज एसएमएस हास्पिटल के नोर्थ विंग वार्ड में डॉ. नवल व उनकी टीम द्वारा उपलब्ध कराया गया वह वास्तव में धरती के भगवान का साक्षात रूप देखने को मिला। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कोरोना के प्रति विजन, वार्डो में अधिक बेड की व्यवस्था व कोविड सेंटरों पर मरीज के नाश्ते से लेकर महंगी रेमडेसिविर जैसी दवाओं की निःशुल्क व्यवस्था, मरीजों के लिए बड़ी राहत से कम नहीं।
सवाल उठता है कि मीडिया में सरकारी व्यवस्था को लेकर इतनी आलोचना क्यों कर हो रही है। हो सकता है व्यवस्था में थोड़ी कमी रह जाए पर संक्रमित की गंभीर स्थिति खासतौर से डायबिटिज और बीपी की स्थितियां भी काफी कुछ निर्भर करती है। दूसरी ओर मरीज को किस स्थिति में अस्पताल में ले जाया गया है, यह भी अपने आप में गंभीर है। देश के मीडिया समूहों ने सरकारी व्यवस्था को लेकर तो प्रश्न उठाए हैं पर क्या किसी समूह ने खुलकर निजी अस्पतालों में मौत का आंकड़ा या इलाज पर होने वाले बेतहाशा खर्च के आंकड़ों को उजागर किया है। शायद इसका उत्तर नहीं में ही आएगा। आंकड़ों का अध्ययन किया जाए और सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों के आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए तो स्थितियां विपरीत होंगी। राजस्थान सहित देश के सभी सरकारी सेंटरों पर व्यवस्थाओं की खुले मन से सराहना की जानी चाहिए।
देश में जिस तरह से कोरोना संक्रमितों के मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए मीडिया सहित सभी का सकारात्मक माहौल बनाने का दायित्व भी हो जाता है। सरकारी व्यवस्थाओं में कमी निकालना आसान है लेकिन सही ढंग से आकलन किया जाए तो आरयूएचएस जैसे सरकारी डेडिकेटेड कोविड सेंटर ही आम संक्रमितों के लिए जीवनदाता बन रहे हैं। कोरोना के इस भयावह दौर में सबसे अधिक आवश्यकता सकारात्मक माहौल बनाने की है। सरकारी कोविड सेंटरों के बारे में आम कोरोना संक्रमितों में पॉजिटिव सोच विकसित होगी तो आम आदमी इन केन्द्रों पर ही जाने को प्राथमिकता देगा और इसका सीधा लाभ संक्रमितों को मिलेगा।
विचारणीय यह है कि पहले संक्रमण की दहशत और उसके बाद सरकारी केन्द्रों के प्रति नकारात्मक माहौल बनाने से नुकसान किसका हो रहा है? आम आदमी का। साधनहीन आदमी का। वह बेचारा डर के मारे अस्पताल जाने से ही कतराने लगता है। ऐसे में सामाजिक दायित्व बड़ी बात हो जाती है जिसे समझना होगा।
दरअसल भयमुक्त वातावरण तैयार कर ही कोरोना के खिलाफ जंग जीती जा सकती है। क्योंकि वैक्सीन अभी दूर है। सरकार के सख्त कानूनों की अवहेलना आम है। बाजार खुले हैं तो शादी-विवाह के दौर में लापरवाही अधिक हो रही है। मास्क का किस तरह और कितना उपयोग हो रहा है वह सामने है। यूरोप में दिन-प्रतिदिन बिगड़ती स्थितियां सामने हैं। देश में भी नए संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में केवल जागरुकता के जरिये ही लोगों को सही और सस्ते इलाज की सुविधा से लाभान्वित किया जा सकता है।
बेशक कमियों को उजागर किया ही जाना चाहिए पर आमजन में सरकारी व्यवस्था के प्रति सही सोच बनाना भी हमारा दायित्व है ताकि लोग कोरोना संक्रमण का सही इलाज प्राप्त कर सकें और इलाज के नाम पर लुटने से बच सकें। जब सरकारी व्यवस्था में जांच से लेकर दवाओं तक की उचित व्यवस्था है तो लोगों तक यह जानकारी पहुंचाना हमारा दायित्व है। आखिर केन्द्र व राज्य सरकारें किसके लिए इतने प्रयास कर रही हैं। साफ है आम आदमी के लिए ही। ऐसे में सकारात्मक भूमिका निभाकर उन्हें अधिक लाभान्वित किया जा सकता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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