प्रयागराज (Prayagraj)। इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) में लिव इन रिलेशनशिप (live-in relationship) को लेकर अहम फैसला सुनाया है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे अंतर धार्मिक प्रेमी जोड़े (Inter religious loving couples) की याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए लिव इन रिलेशनशिप को टाइम पास जैसा (like time pass) करार दिया है. हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता जरूर दी है, लेकिन ऐसे रिश्तों में ईमानदारी से ज्यादा एक दूसरे का मोह या आकर्षण ही होता है. कोर्ट ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप के रिश्ते बेहद नाजुक और अस्थाई होते हैं।
हाई कोर्ट के फैसले के मुताबिक, जिंदगी कठिनताओं और संघर्षों से भरी होती है. इसलिए इसे फूलों का बिस्तर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी इन्हीं टिप्पणियों के आधार पर मुस्लिम युवक के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हिंदू युवती की सुरक्षा दिए जाने की अर्जी को खारिज कर दिया. हाई कोर्ट ने कहा कि 22 साल की उम्र में सिर्फ 2 महीने किसी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह लेने से रिश्तों की परिपक्वता यानी मैच्योरिटी को नहीं आंका जा सकता. हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हिंदू युवती और मुस्लिम युवक की याचिका को खारिज करते हुए फैसला सुनाया है।
दरअसल, मथुरा जिले के रिफाइनरी थाना क्षेत्र की राधिका नाम की 22 साल की युवती घर छोड़कर साहिल नाम के युवक के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी थी. जिसके बाद 17 अगस्त को राधिका के परिवार वालों ने साहिल के खिलाफ मथुरा के रिफाइनरी थाने में आईपीसी की धारा 366 के तहत केस दर्ज कराया. परिवार वालों ने साहिल के खिलाफ राधिका को शादी के लिए अगवा किए जाने का केस दर्ज कराते हुए उसे जान का खतरा भी बताया था. इस मामले में लिव इन रिलेशनशिप में रह रही राधिका और साहिल ने एफआईआर रद्द किए जाने की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की.
राधिका ने याचिका में परिवार वालों से अपनी व प्रेमी साहिल की जान का खतरा बताते हुए मथुरा पुलिस को सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम का आदेश दिए जाने की भी मांग की थी. साथ ही अदालत से आरोपी साहिल की गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाने की भी मांग की गई थी. साहिल की तरफ से उसके रिश्तेदार एहसान फिरोज ने याचिका दाखिल की थी. याचिका पर जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई।
अदालत में सुनवाई के दौरान राधिका और साहिल की तरफ से दलील दी गई कि वह दोनों बालिग हैं और अपनी मर्जी से लिव इन रिलेशनशिप में एक दूसरे के साथ रह रहे हैं. कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक दोनों को साथ रहने का अधिकार है और किसी को उनके शांतिपूर्ण जीवन में दखल देने का कोई हक नहीं है. राधिका और साहिल की इस याचिका का राधिका के परिवार वालों की तरफ से विरोध किया गया. हाईकोर्ट को बताया गया कि साहिल का आपराधिक इतिहास है और 2017 में मथुरा के छाता थाने में उसके खिलाफ गैंगस्टर का केस भी दर्ज हो चुका है।
पीड़ित परिजनों की तरफ से कहा गया कि साहिल के साथ राधिका का भविष्य कतई सुरक्षित नहीं है और वह कभी भी उसकी जिंदगी के लिए खतरा बन सकता है. हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए एफआईआर रद्द किए जाने और राधिका और साहिल को सुरक्षा दिए जाने की मांग को ना मंजूर कर दिया और याचिका को खारिज कर दिया. अदालत ने अपने फैसले में टिप्पणी करते हुए लिव इन रिलेशनशिप को टाइम पास जैसा करार दिया और इस रिश्ते को अस्थाई व नाजुक बताया। कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि जिंदगी जटिलताओं से भरी होती है और इसे फूलों का बिस्तर नहीं समझना चाहिए. महज 2 महीने के अंदर किसी रिश्ते की परिपक्वता का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है. हाईकोर्ट ने कहा लिव इन रिलेशनशिप को सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिली हुई है, इसलिए उनकी टिप्पणी का कोई गलत मतलब नहीं निकालना चाहिए।
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