इन्दौर। शहर में नाबालिगों के लिव इन में रहने के मामले तेजी से संज्ञान में आने लगे हैं। माता-पिता की मर्जी के बिना प्रेमी के साथ न केवल रह रहे हैं, बल्कि इस रिलेशन के बाद गर्भवती होने की सूरत में बच्चे को जन्म देने का अधिकार तो है, लेकिन बच्चा कहां बढ़ेगा और पलेगा, इस पर असमंजस की स्थिति है। चार मामलों में कलेक्टर ने भोपाल शासन से दिशा-निर्देश की मांग की है।
महिला एवं बाल विकास विभाग एवं कलेक्टर के समक्ष पहुंचे माता-पिता ने बताया कि बेटी लंबे समय से किसी नाबालिग युवक के साथ लिव इन में रह रही थी और उसी से उसे बच्चा भी पैदा हुआ है। हाल ही में एमटीएमच अस्पताल में बच्चे को जन्म देने के बाद डिस्चार्ज नहीं दिया जा रहा है। बच्चे की सुपुर्दगी को लेकर अस्पताल प्रबंधन ने जहां महिला एवं बाल विकास विभाग से निर्देश मांगे हैं, वहीं बाल कल्याण समिति के गठन नहीं होने के कारण उक्त नवजात का फैसला अटका पड़ा है। अब कलेक्टर ने भोपाल शासन से दिशा-निर्देश की मांग की है।
ज्ञात हो कि 4 अप्रैल के बाद से ही इन्दौर जिले की बाल कल्याण समिति का कार्यकाल समाप्त हो गया था, तब से लेकर अब तक समिति का गठन नहीं हुआ है। उज्जैन संभाग की समिति द्वारा अब तक इन्दौर के मामलों पर फैसले सुनाए जा रहे थे, लेकिन पिछले तीन महीने से उज्जैन समिति का भी कार्यकाल खत्म हो गया है, जिसके चलते इन्दौर जिले में नाबालिगों को लेकर लिए जाने वाले फैसलों पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
तीन और अन्य मामले प्रकाश में आए
एमटीएच अस्पताल में जन्म देने वाली दो नाबालिगों के साथ-साथ एमवाय अस्पताल से भी दो मामलों में महिला बाल विकास विभाग को पत्र लिखकर सूचित किया गया है। इन नाबालिगों के बच्चों को इनके सुपुर्द करने के लिए दिशा-निर्देश की मांग की गई है। एक मामले में खुलासा हुआ है कि नाबालिग के गर्भवती होने और प्रेमी के छोडक़र चले जाने के बाद माता-पिता ने बच्ची के नवजात को सरेंडर करने के लिए लिखित में आवेदन दिया था, लेकिन जब बच्चा दुनिया में आया है तो बच्ची उसे अपने पास रखने के लिए अड़ी हुई है, जिसके कारण मामला अटका पड़ा है। कलेक्टर आशीष सिंह के अनुसार वे विशेष अधिकार के आधार पर इन मामलों में संज्ञान लेकर फैसला करेंगे।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved