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तबादला ‘नीति’ के अक्षरश: पालन से सुधर जाएगा प्रशासन का बिगड़ा ढर्रा

July 09, 2021

  • उपकृत करने की परंपरा के चलते विभाग नहीं करते जीएडी की गाइडलाइन का पालन

रामेश्वर धाकड़
भोपाल। प्रदेश में इन दिनों तबादलों का सीजन चल रहा है। जिला मुख्यालयों से लेकर मंत्रालय तक तबादलों की सूची तैयार हो रही हैं। ज्यादातर विभाग तबादलों में सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी की गई तबादला नीति का अक्षरश: पालन नहीं करते हैं। विभाग सालों से चली आ रही तबादलों की पंरपरा से ही तबादले करते हैं। यदि नीति के तहत तबादले किए गए तो सरकार का बिगड़ा प्रशासनिक ढर्रा काफी हद तक सुधर जाएगा। बिगड़ती प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने पहले से ही नियम-कायदे बना रखे हैं, लेकिन विभाग आमतौर पर इनका पालन नहीं करते हैं। सामान्य प्रशासन विभाग ने पिछले महीने जारी की गई तबादली नीति में कुछ सख्त प्रावधान किए हैं। जिसके तहत 31 जुलाई तक विभागों द्वारा तबादलों की सूची सामान्य प्रशासन विभाग को हर हाल में मेल करनी होगी। उसके बाद जो सूची भेजी जाएगी। वह मान्य नहीं होगी। लेकिन ज्यादातर विभाग तबादलों का समय बीत जाने के बाद बैकडेट में तबादले करते आए हैं।

यह नीति में है, लेकिन पालन नहीं
तबादला नीति में हर साल यह प्रावधान किया जाता है कि प्रदेश के कम लिंगानुपात वाले 9 जिलेे मुरैना, भिंड, ग्वालियर, शिवपुरी, दतिया, छतरपुर, सागर, विदिशा एवं रायसेन में प्रमुख प्रशासनिक पदों पर महिला अफसरों को पदस्थापना की प्राथमितकता दी जाए। खास बात यह है कि इन 9 जिलों में से एक भी जिले में अधिकारी अधिकारी कलेक्टर-एसपी नहीं हैं। इतना ही नहीं किसी भी जिले में जिला पंचायत सीईओ, अपर कलेक्टर या अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक भी महिला अधिकारी नहीं है।

ऐसे नहीं होता तबादला नीति का पालन

  • अनुसूचित क्षेत्रों से तीन साल के बाद ही तबादले किए जाते हैं, लेकिन इन क्षेत्रों में अधिकारी ज्यादा नहीं टिकते हैं। इन क्षेत्रों में रिक्त पदों की पूर्ति पहले की जाना चाहिए, लेकिन अनुसूचित जिलों में ज्यादातर पद खाली है। इन क्षेत्रों ेसे तबादला होने पर पद भरने तक रिलीव नहीं किया जाता, लेकिन इस नियम का पालन नहीं होता।
  • जिलों में दागी एवं भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ गंभीर अनियमितता की जांच के बाद भी दूसरी जगह पदस्थ नहीं किया जाता।
  • जिलों में कई अधिकारी एवं कर्मचारी तीन साल से ज्यादा समय से जमे हुए हैं। खासकर निर्माण विभागों में ऐसा ज्यादा है।
  • जिन अधिकारी एवं कर्मचारियों ने पिछले साल वित्तीय वर्ष के लक्ष्य पूरे किए, उनको स्वयं के व्यय पर तबादले में प्राथमिकता मिलनी चाहिए, लेकिन नहीं मिलती।
  • जांच में प्रथम दृष्टय दोशी पाए जाने पर तबादला किया जाता है, लेकिन नहीं किया जाता। उसी पद पर पदस्थ रहते हैं। यदि हटा भी दिया जाता है तो बाद में उसी पद पर पदस्थ हो जाते हैं।
  • जहां कार्यालयों में ज्यादा स्टाफ है, उनका युक्तियुक्तकरण करने का प्रावधान है, लेकिन शिक्षा विभाग में ऐसा नहीं होता है। भोपाल, इंदौर, जबलपुर एवं अन्य शहरों में ज्यादा स्टाफ है।
  • कर्मचारी नेता को उसकी संगठन में नियुक्ति होने पर 4 साल या दो कार्यकाल तक तबादले से छूट रहती है, लेकिन कर्मचारी नेता दशकों तक एक ही विभाग या पद पर जमे रहते हैं।
  • क्रय, स्टोर, स्थापना शाखा में अधिकारी, कर्मचारियों को तीन साल पूरा होने पर अनिवार्य रूप से दूसरी जगह पदस्थ करना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता। नियम बनाने वाले विभाग जीएडी में ही इसका पालन नहीं होता है।
  • भ्रष्टाचार, शासकीन धन का दुरुपयोग, गबन के प्रथम दृष्टया दोषियों को पुन: उसी पद पर नहीं पदस्थ किया जाता, लेकिन कई विभाग इस नियम का पालन नहीं करते।
  • जिलों में अधिकारी जिस पद पर रह चुके हैं, बाद में उसी पद पर उनकी पदस्थापना नहीं होती। इसका पालन नहीं होता है। शिवपुरी में जिला पंचायत सीईओ एचपी वर्मा दूसरी बाद जिपं सीईओ बने हैं। मनरेगा जैसी योजनओं में भी कागजों में तालाब, कुए बना दिए। पंचायत में जमकर भ्रष्टाचार है।
  • जो नैतिक पतन (हनीटै्रप)में फंसे हैं, उनकी तैनाती कार्यपालिक पदों पर नही होगी। लेकिन ऐसे लोग पोस्टिंग पा जाते हैं।
  • तबादले के बाद रिलीव करने का स्पष्ट प्रावधान है, लेकिन रिलीव करने में भी पॉलिसी का पालन नहीं होता है।
  • नियमित अधिकारी एवं कर्मचारी का तबादला कर उसका प्रभार कनिष्ठ को नहीं दिया जा सकता, लेकिन विभागाध्यक्ष कार्यालय, निर्माण विभागों में इस नियम का जमकर उल्लंघन होता है।
  • तबादला नीति के तहत सभी तरह के अटैचमेंट खत्म होना चाहिए, लेकिन निगम-मंडलों, प्राधिकरणों, निर्माण विभाग समेत कई विभागों में कर्मचारी अधिकारी सालों से अटैच हैं।

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