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    सुनी सुनाई : मंगलवार 17 अगस्त 2021

  • August 17, 2021

    दबाव की राजनीति फुस्स
    मप्र भाजपा का संगठन इतना मजबूत है कि यहां किसी भी तरह की दबाव की राजनीति असर नहीं करती। यह जानते हुए भी पिछले दिनों पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने सत्ता और संगठन पर दबाव बनाने विधायकों की बैठक बुलाई लेकिन इसकी भनक लगते ही संगठन सक्रिय हुआ और विश्नोई के घर होने वाली बैठक फुस्स हो गई। बैठक में बमुश्किल 5 मौजूदा और दो पूर्व विधायक ही पहुंचे। जबकि बताया जाता है कि इस बैठक में 35 विधायकों को आमंत्रित किया गया था। दरअसल अजय विश्नोई, केदार शुक्ला, नागेन्द्र सिंह गुढ़, यशपाल सिसोदिया, डॉ. गौरीशंकर बिसेन जैसे भाजपा के वरिष्ठ विधायक यह मानने लगे हैं कि उन्हें अगले चुनाव में टिकट नहीं मिलना है। यदि इस बार मंत्री नहीं बनाया गया तो उनका राजनीतिक केरियर लगभग समाप्त हो जाएगा। अजय विश्नोई के घर यह चार विधायक तो पहुंचे ही थे, इनके अलावा राजेन्द्र शुक्ला की मौजूदगी आश्चर्यजनक थी। पूर्व मंत्री जयंत मलैया और दीपक जोशी भी इस बैठक में थे। पार्टी सूत्रों का मानना है कि अजय विश्नोई की दबाव की राजनीति पूरी तरह फ्लाप हो गई है। यह बात दूसरी है कि विश्नोई दावा कर रहे हैं कि राज्य के काम की समीक्षा के लिये यह बैठक बुलाई थी।

    कांग्रेस में संजय का दबदबा
    2005 से पहले संजय सिंह मसानी को मप्र की राजनीति में शायद ही कोई पहचानता था। 2005 में शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके साले संजय सिंह मसानी महाराष्ट्र के गोंदिया से आकर मप्र में सक्रिय हुए थे। उन्होंने बालाघाट जिले में राजनीतिक जमीन तैयार करना शुरू की थी। मुख्यमंत्री से रिश्तेदारी के कारण उनकी राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्र में खासी पकड़ बन गई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा से टिकट मांगा था, लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो उन्होंने कमलनाथ की उंगली और कांग्रेस का हाथ थामने में देर नहीं की। संजय सिंह बुरी तरह पराजित हुए लेकिन उन्हें कमलनाथ जैसे नेता की शार्गिदी जरूर मिल गई है। संजय सिंह अब चाहते हैं कि कांग्रेस में भी उनका दबदबा बढ़ जाए। यही कारण है कि पिछले दिनों कमलनाथ से सिफारिश लगवाकर उन्होंने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में अपने लिए कक्ष आवंटित करा लिया है। यह बात दूसरी है कि उनके पास कांग्रेस में कोई महत्वपूर्ण पद नहीं है। फिलहाल संजय अपने नए कक्ष में बैठने के लिए मुहुर्त की तलाश में है।

    विंध्य के नाम पर बगावत
    मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी अब पूरी तरह पार्टी से बगावत के मूड में आ चुके हैं। वे भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री पर हमले करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। पृथक विंध्य प्रदेश बनाने को लेकर नारायण त्रिपाठी ने मुहीम तेज कर दी है। उन्होंने अपनी मुहिम को नाम दिया है ‘हमारा विंध्य हमें लौटा दो।Ó त्रिपाठी ने इस सप्ताह अपनी ही सरकार पर नौ सवाल दागे हैं। उन्होंने पूछा है कि विंध्य में कितने एम्स हॉस्पिटल हैं, कितने आईआईएम हैं, कितने आईआईटी हैं, कितने अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम हैं, कितने एयरपोर्ट हैं, कितने विशेष आर्थिक औद्योगिक क्षेत्र हैं, कितने अंतर्राज्यीय बस स्टैण्ड हैं, कितने फूड पार्क हैं और हाईकोर्ट की कितनी खण्डपीठ हैं?  जवाब में उन्होंने शून्य लिखकर सरकार की खिंचाई की है। त्रिपाठी ने भाजपा की ओबीसी राजनीति पर भी सवाल खड़े करते हुए मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पूछा है कि 26 जनवरी को रीवा में सवर्ण आयोग बनाने की घोषणा की थी उसका क्या हुआ?

    खतरे में आईएएस का केरियर
    मप्र में 2014 बैच के आईएएस आदित्य सिंह का केरियर फिलहाल खतरे में पड़ गया है। बेहद गंभीर आरोपों के साथ उन्हें भोपाल स्मार्ट सिटी के सीईओ के पद से हटाया है। आरोप है कि स्मार्ट सिटी एरिए में 100 करोड़ की जमीन बेचने में 35 करोड़ की गड़बड़ी हुई है। इसकी जांच आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने शुरू करके प्राथमिक तौर पर इसे संदिग्ध माना है। ईओडब्ल्यू का संकेत मिलते ही सरकार ने आदित्य सिंह को हटाने के आदेश जारी कर दिए हैं। इधर बताया जा रहा है कि आदित्य सिंह अपनी सफाई में तर्क दे रहे हैं कि उन्होंने कोई गड़बड़ी नहीं की है। जिन दो टेंडर पर जमीन दी गई है वह निर्धारित राशि से अधिक बोली पर दी है। यदि बोली कम होती तो तीन टेंडर आवश्यक थे। फिलहाल न तो सरकार और न ही मंत्रालय के अधिकारी आदित्य सिंह की बात सुनने को तैयार हैं। फिलहाल उन्हें मंत्रालय में पटक दिया गया है। ईओडब्ल्यू की जांच के चलते उनकी नई पोस्टिंग की भी कोई उम्मीद नहीं है।

    टिकट दो…जीत की ग्यारंटी
    टीकमगढ़ भाजपा विधायक राकेश गिरी गोस्वामी ने पिछले दिनों भोपाल में संगठन के लगभग सभी पदाधिकारियों से मुलाकात कर आग्रह किया है कि पृथ्वीपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए यदि उनकी पत्नी लक्ष्मी गिरी गोस्वामी को भाजपा का टिकट मिलता है तो वे जीत की ग्यारंटी देने को तैयार हैं। दरअसल कांग्रेस के दिग्गज नेता बृजेन्द्र सिंह राठौर के निधन से यह सीट खाली हुई है। कांग्रेस इस सीट से बृजेन्द्र सिंह के बेटे को प्रत्याशी बनाएगी। कांग्रेस को उम्मीद है कि बृजेन्द्र सिंह के बेटे को संवेदना के वोट मिलेंगे। दूसरी ओर राकेश गिरी का दावा है कि उनकी पत्नी हर हाल में यह सीट निकालने की स्थिति में हैं। लक्ष्मी गिरी गोस्वामी टीकमगढ़ नगरपालिका की अध्यक्ष रह चुकी हैं। राकेश गिरी ने संगठन से आग्रह किया है कि पृथ्वीपुर पर निर्णय से पहले पार्टी किसी भी स्तर पर सर्वे करा लें यदि उनकी पत्नी के पक्ष में रिपोर्ट आती है तो टिकट देने पर गंभीरता से विचार करे।

    एक और मीडिया सलाहकार
    कमलनाथ लगभग 18 महीने मप्र के मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान वे लगातार दावा करते रहे कि उन्हें मीडिया में चेहरा दिखाने की जरूरत नहीं है। उनका काम ही उनकी पहचान है। पद से हटने के बाद शायद कमलनाथ को मीडिया का महत्व समझ में आ रहा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पिछले डेढ़ साल से मीडिया मैनेजमेंट को लेकर कमलनाथ कई प्रयोग कर चुके हैं। अब उन्होंने दिल्ली में सक्रिय एक युवा पत्रकार पीयूष बबेले को अपना नया मीडिया सलाहकार बनाकर प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में बिठाया है। पीयूष बबेले इंडिया टुडे सहित कई प्रमुख संस्थानों में खोजी पत्रकार के रूप में पहचान बना चुके हैं। पिछले दिनों उनकी पुस्तक ‘नेहरू मिथक और सत्यÓ काफी चर्चा में रही है। पीयूष बबेले ने मप्र सरकार की योजनाओं और भाजपा संगठन की कार्यशैली पर पैनी नजर गड़़ा दी है। पीयूष ने फिलहाल कमलनाथ के भाषण लिखना शुरू कर दिया है। पीयूष का कहना है कि जब तक कमलनाथ मप्र में दूसरी बार सीएम की शपथ नहीं ले लेते तब तक वे भोपाल में रहकर उनकी मदद करते रहेंगे।

    और अंत में….
    मप्र में अचानक आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के नाम पर राजनीति तेज हो गई है। दरअसल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने सर्वे के आधार पर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा संगठन को संकेत दिए थे कि प्रदेश में आदिवासी और ओबीसी को साधे बगैर अगली सरकार बनाना मुश्किल है। भाजपा इस मुद्दे पर गुपचुप रणनीति बना ही रही थी कि इसकी भनक कमलनाथ को लग गई। कमलनाथ ने विश्व आदिवासी दिवस पर अवकाश और पिछड़े वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण के नाम पर विधानसभा और विधानसभा के बाहर हंगामा खड़ा कर दिया। शिवराज और कमलनाथ के बयानों और सक्रियता से तय हो गया है कि मप्र में अगले दो साल की राजनीति आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के ईर्द-गिर्द ही घुमेगी।

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