वाशिंगटन । अमेरिका (America) का जो बाइडन प्रशासन (Biden Administration) चीन-रूस (China-Russia) को ध्यान में रखकर, पश्चिम एशिया के खतरों को देखते हुए एक बार फिर नए सिरे से सेना की तैनाती को दूरुस्त करने पर काम कर रहा है। उसका मकसद है कि अमेरिका की ताजा विदेश नीति के लिहाज से अपनी सेना, हथियारों, सैन्य अड्डों और गठबंधन को इस तरह से व्यवस्थित करे कि उसके मित्र देशों को मजबूती मिलने के साथ ही विरोधी देशों पर लगाम कसी जा सके।
रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने काम संभालने के बाद ही इसकी समीक्षा करना शुरू कर दिया है। अमेरिका अपने वैश्विक प्रबंधों को बजट और देश की नस्ली और कट्टरपंथी जैसी अंदरुनी समस्याओं को ध्यान में रखकर उसे मूर्त रूप देना चाहता है। रक्षा मंत्री की समीक्षा में अमेरिकी प्रशासन के लंबित पड़े फैसले भी शामिल हैं। इनमें अफगानिस्तान से सेना वापसी की प्रक्रिया को पूरी तरह से शांति स्थापना के साथ पूरा किया जाना भी है। साथ ही सेना की परमाणु ताकत का आधुनिकीकरण किया जाना भी है।
वैश्विक स्तर पर जो बाइडन प्रशासन की प्राथमिकता ट्रंप से कुछ अलग हैं। बाइडन की राष्ट्रीय सुरक्षा टीम दीर्घकालीन सुरक्षा के लिए सबसे पहले चीन को ध्यान में रख रही है, न कि ट्रंप की तरह इस्लामिक स्टेट या अलकायदा जैसे संगठनों को। बाइडन प्रशासन नाटो गठबंधन में यूरोपीय देशों को भी पूरी तवज्जो देना चाहता है। अमेरिका के नए प्रशासन की व्यवस्थाओं में सैन्य दृष्टि से पश्चिम एशिया, यूरोप और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव भी देखने को मिल सकता है।
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