नई दिल्ली । डॉल्फिनों (सोंस) का कुनबा (dolphin’s family) गंगा के साथ-साथ चंबल नदी में बढ़ता जा रहा है। 1979 में राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में घड़ियालों के साथ डॉल्फिन के भी संरक्षण का काम शुरू किया गया था। तब यहां डॉल्फिन के महज पांच जोड़े छोड़े गए थे। दिसंबर में चंबल सेंक्चुअरी की टीम ने डॉल्फिनों की गणना की तो नतीजे काफी बेहतर मिले। सेंक्चुअरी के क्षेत्राधिकारी के अनुसार चंबल में 150 वयस्क डॉल्फिन अठखेलियां करती दिखी हैं।
सेंक्चुअरी के क्षेत्राधिकारी हरिकिशोर शुक्ला ने बताया कि समुद्री लहरों के बीच अठखेलियां करने वाली डॉल्फिनों को चंबल का साफ पानी रास आ गया है। मुफीद बहाव और पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा अच्छी मिलने से उनकी संख्या में इजाफा होता गया। क्योंकि पानी में प्रदूषण बढ़ते ही डॉल्फिन वह क्षेत्र छोड़ देतीं हैं। चंबल में ऐसा नहीं हुआ। क्षेत्राधिकारी के अनुसार ऐसी ही उनकी संख्या बढ़ती गई तो जल्द ही गंगा से ज्यादा यहां डॉल्फिन पाईं जाने लगेंगी।
डॉल्फिन को मछली न समझें
डॉल्फिन को हम मछली समझने की भूल करते हैं लेकिन यह एक स्तनधारी प्राणी है। व्हेल और डॉल्फिन एक ही कैटेगरी में आती हैं। डॉल्फिन को अकेले रहना पसंद नहीं है। वह 10 से 12 के समूह में रहती हैं। डॉल्फिन आवाज और सीटियों के माध्यम से एक दूसरे से बात करती हैं। डॉल्फिन को सांस लेने के लिए हर 15 मिनट में सतह पर आना होता है। मादा डॉल्फिन नर से बड़ी होती हैं। इनकी औसतन आयु 28 साल होती है। केंद्र सरकार ने इन्हें नॉन ह्यूमन पर्सन या गैर मानवीय जीव की श्रेणी में रखा है। यानी ऐसा जीव को इंसान न होते हुए भी इंसानों की तरह जीना जानता है और वैसे ही जीने का हक रखता है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved