नई दिल्ली। हाल ही में जारी ग्रीनपीस इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली सहित देश के कई बड़े शहरों में पिछले साल की तुलना में नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा में इजाफा हुआ है। सैटेलाइट डाटा विश्लेषण के आधार पर तैयार रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल, 2020 की तुलना में अप्रैल, 2021 में दिल्ली में नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा 125 फीसदी तक ज्यादा रही।
ग्रामीण क्षेत्र में तो खेती में अंधाधुंध रासायनिक खाद के इस्तेमाल और पशुपालन आदि के कारण हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड की मौजूदगी होती है, लेकिन बड़े शहरों में हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड में वृद्धि का मूल कारण निरापद या ग्रीन फ्यूल कहे जाने वाले सीएनजी वाहन का उत्सर्जन है।
नाइट्रोजन के ऑक्सीजन के साथ गैसें, जिन्हें ऑक्साइड ऑफ नाइट्रोजन कहते हैं, मानव जीवन और पर्यावरण के लिए उतनी ही नुकसानदेह है, जितनी कार्बन ऑक्साइड। यूरोप में हुए शोध बताते हैं कि सीएनजी वाहन से निकलने वाले नैनो मीटर आकार के बेहद बारीक कण कैंसर, अल्जाइमर और फेफड़े की बीमारियों को खुला न्योता हैं। पूरे यूरोप में इस समय सुरक्षित ईंधन के रूप में वाहनों में सीएनजी के इस्तेमाल पर शोध चल रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि यूरो-6 स्तर के सीएनजी वाहन के लिए भी कण उत्सर्जन की कोई अधिकतम सीमा तय नहीं है और इसीलिए इससे उपज रहे वायु प्रदूषण और इंसान के जीवन पर उसके कुप्रभाव और वैश्विक पर्यावरण को हो रहे नुकसान को नजर अंदाज किया जा रहा है। पर्यावरण मित्र कहे जाने वाले इस ईंधन से बेहद सूक्ष्म पर घातक 2.5 एनएम का उत्सर्जन पेट्रोल-डीजल वाहनों की तुलना में 100 से 500 गुना अधिक है, खासकर शहरी यातायात में, जहां वाहन बहुत धीरे-धीरे चलते हैं।
भारत जैसे गर्म देश में सीएनजी वाहन उतनी ही मौत बांट रहे हैं, जितनी डीजल की कार और बसें नुकसान कर रही थीं। फर्क सिर्फ इतना आया है कि सीएनजी के प्रचलन से कार्बन के बड़े पार्टिकल कम हो गए हैं। यही नहीं, ये वाहन प्रति किलोमीटर संचालन में 20 से 66 मिलीग्राम अमोनिया उत्सर्जन करते हैं, जो ग्रीनहाउस गैस है और जिसकी भूमिका ओजोन छतरी को नष्ट करने में है।
यह सच है कि सीएनजी वाहन से अन्य ईंधनों की तुलना में पार्टिकुलेट मैटर 80 फीसदी और हाइड्रो कार्बन 35 प्रतिशत कम उत्सर्जित होता है, पर इससे कार्बन मोनो ऑक्साइड उत्सर्जन पांच गुना अधिक है। शहरों में स्मॉग और वातावरण में ओजोन परत के लिए यह अधिक घातक है। परिवेश में ऑक्साइड ऑफ नाइट्रोजन गैस अधिक होने का सीधा असर इंसान के श्वसन तंत्र पर पड़ता है। इससे फेफड़े की क्षमता कम होती है।
ऑक्साइड ऑफ नाइट्रोजन गैस वातावरण में मौजूद पानी और ऑक्सीजन के साथ मिलकर तेजाबी बारिश कर सकती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 2011 का एक अध्ययन बता चुका है कि सीएनजी पर्यावरणीय कमियों के बिना नहीं है। तब अध्ययन से यह पता चला था कि रेट्रोफिटेड सीएनजी कार इंजन 30 फीसदी अधिक मीथेन उत्सर्जित करती है।
ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन के प्रभाव पर शोध में पाया गया कि इस तरह के उत्सर्जन में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है। दरअसल सीएनजी भी पेट्रोल-डीजल की तरह जीवाश्म ईंधन ही है। यानी डीजल-पेट्रोल भी खतरनाक है और उसका विकल्प बना सीएनजी भी। दुनिया को इस समय अधिक ऊर्जा की जरूरत है। आधुनिक विकास की अवधारणा बगैर इंजन की तेज गति के संभव नहीं।
इन दिनों शहरी वाहनों में वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में बैटरी चालित वाहन लाए जा रहे हैं, पर यह याद नहीं रखा जा रहा कि जल, कोयला या परमाणु से बिजली पैदा करना पर्यावरण के लिए उतना ही जहरीला है, जितना डीजल-पेट्रोल फूंकना। दरअसल जीवाश्म ईंधन की उपलब्धता की सीमा है। खराब हो गई बैटरी से निकला तेजाब और सीसा सिर्फ वायु को नहीं, धरती को भी बांझ बना देता है। सीएनजी से निकली नाइट्रोजन ऑक्साइड अब मानव जीवन के लिए खतरा बनकर उभर रही है। यह दुर्भाग्य ही है कि हम आधुनिकता के जंजाल में उन खतरों को पहले नजर अंदाज करते हैं, जो आगे चलकर भयानक हो जाते हैं।
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