नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि उपराज्यपाल (Lieutenant Governor) और दिल्ली के मुख्यमंत्री (Chief Minister of Delhi) दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (DERC) के अध्यक्ष (Chairman) के नाम पर (On the Name) मिलकर निर्णय लें (Should Decide Together) । इसके लिए ‘उन्हें एक साथ बैठने’ और ‘राजनीतिक विवाद से ऊपर उठने’ को कहा।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, “दो संवैधानिक पदाधिकारी (दिल्ली एलजी और सीएम) बैठकर इसे क्यों नहीं सुलझाते? उन्हें राजनीतिक कलह से ऊपर उठना होगा। हम इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहते। हम चाहते हैं कि दोनों पक्ष किसी समाधान पर पहुंचें।” पीठ में न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत द्वारा दिए गए सुझाव के जवाब में कहा, “हम कल दिल्ली एलजी से संपर्क करेंगे।” उन्होंने आगे कहा, “यह केवल चमत्कार होगा कि वे दोनों (दिल्ली एलजी और सीएम) एक नाम पर सहमत हों।” डॉ. सिंघवी द्वारा व्यक्त आपत्तियों का दिल्ली एलजी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने भारी विरोध किया। उन्होंने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली सरकार के वकील (डॉ. सिंघवी) यह कहकर शुरुआत करते हैं कि उन्हें कोई उम्मीद नहीं है। पहली प्रतिक्रिया यह होनी चाहिए कि हां, हम यह करेंगे।”
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 20 जुलाई को तय की है। इससे पहले 4 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल से कहा था कि वह नवनियुक्त डीईआरसी अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) उमेश कुमार को पद की शपथ न दिलाएं। इसने निर्देश दिया था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश का शपथ ग्रहण 11 जुलाई तक स्थगित रहेगा। शीर्ष अदालत आप के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया था कि डीईआरसी अध्यक्ष की नियुक्ति ‘अवैध और असंवैधानिक’ है। इसमें दावा किया गया कि निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह को ‘नजरअंदाज’ करके नियुक्ति की गई।
उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने 22 जून को सेवानिवृत्त मप्र उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव कुमार श्रीवास्तव को नियुक्त करने की दिल्ली सरकार की सिफारिश को नजरअंदाज करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) उमेश कुमार को अध्यक्ष नियुक्त किया था। दिल्ली सरकार ने नियुक्तियों के मामले में निर्वाचित सरकार पर उपराज्यपाल को अधिभावी शक्तियां देने वाले हालिया अध्यादेश के माध्यम से पेश जीएनसीटीडी अधिनियम की धारा 45-ए को चुनौती दी है।
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