श्रीनगर । जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (Chief Minister Omar Abdullah) और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा (Lieutenant Governor Manoj Sinha) के बीच में पहली बार टकराहट की स्थिति खुलकर नजर आ रही है। दरअसल, राजभवन (Raj Bhawan) से जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा के 48 अधिकारियों का ट्रांसफर कर दिया गया था। अब इन अधिकारियों के ट्रांसफर को रोकने के लिए उमर सरकार ने न केवल राजभवन बल्कि मुख्य सचिव अटल डुल्लू और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखा है और इन तबादलों को अवैध बताते हुए रद्द करने की मांग की है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार की तरफ से बताया गया कि यह ट्रांसफर मुख्यमंत्री कार्यालय की अनुमित के बिना किए गए हैं। सीएम ने अपनी तरफ से लिखे पत्र में बताया है कि यह ट्रांसफर राजभवन द्वारा चुनी हुई सरकार पर किया गया अतिक्रमण है ऐसी स्थिति में इसे तुरंत ही हटाया जाए। इन ट्रांसफर्स को अवैध ठहराने की अपनी बात की पुष्टि करने के लिए सीएम की तरफ से तर्क दिया गया है कि इन अधिकारियों में कई राजस्व अधिकारियों का भी ट्रांसफर किया गया है, जो कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम का भी उल्लंघन है। क्योंकि इसमें कहा गया है कि ऐसे ट्रांसफर के लिए मंत्री परिषद के अनुमोदन की आवश्यकता होती है लेकिन राजभवन की तरफ से हमें ऐसी कोई जानकारी तक नहीं मिली।
सीएम और एलजी के बीच की यह तनातनी ऐसे समय में सामने आई है जब आने वाले तीन दिनों में गृहमंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर के दौरे पर जाने वाले हैं।
जम्मू की सत्ता में शामिल कांग्रेस ने भी राजभवन द्वारा किए गए तबादलों का विरोध किया है। एलजी के फैसलों की आलोचना करते हुए कांग्रेस की तरफ से कहा गया कि उन्हें अपना फैसला सुनाने से पहले कामकाज के नियमों की मंजूरी का इंतजार करना चाहिए था। जम्मू-कश्मीर सरकार एक महीने पहले तैयार किए गए कारोबारी नियमों पर गृह मंत्रालय की मंजूरी का इंतजार कर रहा है। मंजूरी मिलने के बाद इस राजभवन भेजा जाएगा ताकि ऐसे फैसलों में कोई भ्रम की स्थिति न रहे।
कांग्रेस नेता गुलाम अहमद मीर ने इस मामले पर अपनी स्थिति को साफ करते हुए कहा कि ऐसा कदम उठाना उचित नहीं है। इससे गलत संदेश गया है कि प्रशासन के बीच में सब कुछ ठीक नहीं है।
आपको बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को पहली निर्वाचित सरकार मिलने के बाद यह दूसरी बार है जब इतने बड़े पैमाने पर अधिकारियों का ट्रांसफर हुआ है। इससे पहले ऐसा ही एक फैसला उमर के सत्ता में आने के 2 महीने बाद भी हुआ था। तब उमर के मुख्य सचिव को रोकने के बाद भी ट्रांसफर कर दिया गया था।
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