– डॉ. रमेश ठाकुर
कावेरी जल बंटवारा विवाद के सुप्रीम कोर्ट से भी हल नहीं निकलने के बाद कर्नाटक-तमिलनाडु में रार बढ़ गई है। कर्नाटक ने तल्खी भरे लहजे में पानी देने से साफ इनकार कर दिया है। अब सवाल यह है कि यह मामला आखिरकार कब सुलझेगा। दोनों ही राज्य इसे लेकर 141 साल से आपस में लड़-भिड़ रहे हैं। भविष्य में पानी को लेकर समूचे देश में किस तरह के हालात उत्पन्न होने वाले हैं, यह उसकी भी ताजा तस्वीर है। ये विवाद सभी को गंभीर होकर सोचने पर विवश करता है। पानी का ये झगड़ा हमें चेताता है कि पानी के महत्व को समझ लें। वरना, आने वाले समय में देश के कोने-कोने में पानी को लेकर हालात भयानक होने वाले हैं। दो राज्यों के मध्य कावेरी जल विवाद दशकों से नासूर बना हुआ है।
दरअसल, नया विवाद ये है कि ‘कावेरी जल विनिमयन समिति’ ने कर्नाटक सरकार को जब से तमिलनाडु को रोजाना पांच हजार क्यूसेक पानी देने को कहा है, तभी से दोनों राज्यों में तगड़ा विवाद छिड़ा है। दोनों तरफ जमकर राजनीतिक तू-तू, मैं-मैं हो रही हैं। कर्नाटक अपने रुख पर अडिग है। साफ कह दिया है कि हम एक बूंद पानी नहीं छोड़ेंगे। कावेरी जल विवाद वर्षों पुराना है। सभी जानते हैं कि कावेरी एक अंतरराज्यीय नदी है जो कर्नाटक-तमिलनाडु के समीप से बहती है। नदी का एक भाग केरल राज्य से टच करता है। पड़ोसी राज्य पूरी तरह से उसी के जल पर निर्भर है। चाहे खेतों की सिंचाई हो, या व्यक्तिगत इस्तेमाल में प्रयोग करना हो। सभी की पूर्ति इसी नदी के पानी से होती है। ये नदी महासागर में मिलने से पहले कराइकाल से होकर गुजरती है जो पांडिचेरी का हिस्सा है, इसलिए इस नदी के जल बंटवारे को लेकर हमेशा विवाद रहता है। बीते कुछ दशकों से नदी का पानी भी कम हुआ है। कम होने का सिलसिला लगातार जारी भी है।
बहरहाल, पानी का विवाद तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच है, क्योंकि दोनों राज्यों की सीमाएं आपस में मिलती हैं। सूखे के कारण तमिलनाडु पानी की कमी से जूझ रहा है। तभी उन्होंने इस बाबत कावेरी जल विनिमयन समिति से सिफारिश की, कि पड़ोसी राज्य कर्नाटक उन्हें प्रतिदिन की जरूरत के हिसाब से 24 क्यूसेक पानी दे। उनकी अर्जी सुनने के बाद कावेरी जल विनियमन समिति ने कर्नाटक सरकार को आदेशित किया कि पानी मुहैया कराएं। लेकिन कर्नाटक की सरकार ने पानी देने से साफ इनकार कर दिया। इस इनकार का तर्क देते हुए सरकार ने कहा कि उसके पास खुद पर्याप्त पानी नहीं है। उनका प्रदेश भी कम बारिश के चलते सूखे की मार झेल रहा है। इसके बाद दोनों राज्यों में रार और बढ़ गई। कर्नाटक ने इस मसले को लेकर दिल्ली में अपने शीर्ष नेताओं को अवगत करवा हस्तक्षेप की मांग की है। कर्नाटक सरकार की एक टीम दिल्ली पहुंची हुई है। जो अपने नेताओं और कानूनी विशेषज्ञों से रायशुमारी कर रही है।
कावेरी जल विवाद आजादी से पहले का है। चाहे केंद्र सरकारें रही हों, या राज्य की सरकारें, किसी ने इसका स्थायी समाधान तलाशने की कोशिश नहीं की। सन् 1924 में अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज के बीच समझौता हुआ था। तब, इस समझौते में केरल और पुडुचेरी भी शामिल थे। आजादी के करीब दो-तीन दशकों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन जैसे- जैसे पर्यावरण में बदलाव हुआ। बारिश कम होने लगी और पानी की मांग बढ़ती गई। उसके साथ ही ये विवाद भी गहराता गया। मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा, लेकिन फिर भी मसले का हल नहीं निकला। इससे पहले भी तमिलनाडु सरकार दो मर्तबा कर्नाटक के जलाशयों से प्रतिदिन 24,000 क्यूसेक पानी छोड़ने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है। प्रत्येक बार कर्नाटक सरकार ने तमिलनाडु की याचिका का जम कर विरोध किया। बाकायदा अपना हलफनामा पेश किया, जिसमें दलीलें दीं कि उनके यहां भी पानी की बहुत कमी है।
इस विवाद के निस्तारण के लिए केंद्र सरकार को आगे आना होगा। उन्हें कोई ऐसी जलनीति बनानी होगी जिससे विवाद का हल निकल सके। वरना, ये झगड़ा कभी बड़ा रूप धारण कर सकता है। हालांकि केंद्र ने तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पुडुचेरी के बीच उनकी जल-बंटवारे क्षमताओं के संबंध में विवादों पर मध्यस्थता करने के लिए बीते 2 जून, 1990 को कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया था। लेकिन वह विवाद निपटाने में असफल रही। केंद्र को इसके आगे सोचना होगा। ये ऐसा विवाद बन गया है जो चुनाव में राजनीतिक दल अपने मेनिफेस्टो में भी अंकित करने लगे हैं।
कायदे से देखें तो कावेरी जल दोनों राज्यों के लोगों के लिए सिंचाई और पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने सहित आजीविका का प्रमुख स्रोत है। हालांकि, डीएमके नेताओं का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी नदी, निचले राज्य या क्षेत्रों को पानी देने से इनकार नहीं कर सकते। पर, उनका ये तर्क कोई सुनने को राजी नहीं है। कर्नाटक पिछले कुछ महीनों में सूखे का सामना कर रहा है। इसलिए मुश्किल है कि कर्नाटक सरकार ‘कावेरी जल विनियमन समिति’ की सिफारिश माने। न मानने का एक कारण ये भी है। चुनाव में उन्होंने कावेरी का मुद्दा उठाया था, प्रदेश की जनता से भरपूर पानी देने का वादा किया था। इस लिहाज से वह तमिलों को शायद ही पानी दें।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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