गाय-बछड़े को ज्यादा बनाया निवाला
इंदौर, संतोष मिश्र। इंदौर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तेंदुए (leopard) ने पिछले 1 साल में लगभग 4 दर्जन मवेशियों (cattle) का शिकार किया है। इनमें सबसे ज्यादा गाय और बछड़े हैं। महू के एसडीओ कैलाश जोशी (Mhow SDO Kailash Joshi) के मुताबिक सबसे ज्यादा तेंदुए ने शिकार महू रेंज के जंगलों में किया है। तेंदुआ जब जंगल से निकलकर गांव की ओर आता है तो पूरे इलाके में हडक़ंप मच जाता है। गांव वाले शाम ढलते ही जहां घर के बाहर अलाव जलाने को विवश हो जाते हैं, वही बच्चों को घर से बाहर तक नहीं निकलने दिया जाता है। अगर किसानों को खेत में भी जाना पड़ता है तो टोली बनाकर ही बाहर निकलते हैं, साथ ही शाम ढलने के बाद ही सभी लोग घर में दुबकने के लिए विवश हो जाते हैं।
मवेशियों के मालिकों को दिया 4 लाख का मुआवजा
वन विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक महू तहसील में एक साल में मवेशियों के शिकार के कुल 37 प्रकरण बनाए गए हैं। संबंधित गांव के सरपंच, सचिव सहित वन विभाग के अधिकारियों की जांच पड़ताल के बाद विभाग द्वारा इन पशुओं के मालिकों को 3 लाख 27 हजार 900 रुपए मंजूर करते हुए, उन्हें राशि दे दी गई है। इसी प्रकार मानपुर रेंज में पिछले 1 साल में कुल 18 प्रकरण शिकार के बनाए गए हैं। विभाग द्वारा जांच पड़ताल के बाद इन पशुओं के मालिकों को 91 हजार 200 रुपए की मुआवजा राशि दी गई है।
वेटरनरी डॉक्टर की रिपोर्ट सबसे महत्वपूर्ण
तेंदुए द्वारा पशुओं को शिकार करने के बाद मुआवजा देने में वेटरनरी डॉक्टर की रिपोर्ट सबसे महत्वपूर्ण रहती है। इस रिपोर्ट के बाद ही वन विभाग के अधिकारी व संबंधित ग्राम पंचायत के सरपंच, सचिव रिपोर्ट बनाकर बड़े अधिकारियों के पास फाइल भेजते हैं और फिर वहां से हरी झंडी मिलने के बाद मुआवजा दिया जाता है।
महू, चोरल और मानपुर रेंज में 12 जंगल, जहां 30 से 35 तेंदुए हैं
वन विभाग के सूत्रों के मुताबिक महू मानपुर और चोरल रेंज में एक दर्जन जंगल है। इसमें महत्वपूर्ण रूप से महू और मानपुर में बेरछा, छोटी जाम, बड़ीजाम, पातालपानी, कालीकराय, जानापाव, वाचू पॉइंट एवं गोपिया कुंड सहित चोरल क्षेत्र में तीन जंगल हैं। इन जंगलों में 30 से 35 तेंदुए हैं।
7 दिन में ही मुआवजा देने का फरमान
मध्य प्रदेश सरकार का फरमान है कि तेंदुए के शिकार हुए पशु के मालिकों को 7 दिन में मुआवजा हर हाल में दे दिया जाए। इसके लिए विभाग की टीम सक्रियता से कार्य करती है। अधिकतर मामलों में 7 दिन में पशु मालिकों को नहीं मिल पाता है, क्योंकि जांच पड़ताल में कम से कम 15 से 20 दिन का समय लग जाता है। वैसे भी महामारी के कारण वन विभाग के अधिकारियों से लेकर सरपंच, सचिव व्यस्त थे, इसलिए 1 साल में अधिकतर प्रकरणों में 15 से 1 महीने के अंतराल में ही पशु मालिकों को मुआवजा मिला है।
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