बरेली। उत्तर प्रदेश के बरेली (Bareilly of Uttar Pradesh) में रुहेलखंड विश्वविद्यालय (Rohilkhand University) के अटल सभागार में रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) सर संघचालक मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों और उनके परिजनों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जाति का भेदभाव छोड़िए। हम सभी हिंदू हैं, जो दूसरी जातियां अलग-अलग धर्म अपनाए हुए हैं। उनके पूर्वज भी हिंदू थे। हमें विभिन्न जातियों, पंथ, भाषाओं और क्षेत्रों के परिवारों के साथ मित्रवत संबंध बनाकर उनके साथ नियमित रूप से मिलन, भोजन और चर्चा करनी चाहिए। विभिन्न आर्थिक स्तर के परिवारों के बीच परस्पर सहयोग की भावना जागृत हो, स्वयंसेवकों को इसके लिए प्रयास करना चाहिए।
संघ प्रमुख अपने बरेली प्रवास के चौथे दिन कुटुंब स्नेह मिलन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कहा कि सक्षम, संपन्न और वंचित परिवारों के बीच परस्पर सहयोग की भावना होने पर कई सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का खुद ही निराकरण हो जाएगा। स्वयंसेवक परिवारों के जीवन का मंत्र देशार्चण, सद्भभाव, ऋणमोचन और अनुशासन होना चाहिए। देशार्चण से तात्पर्य है कि हमें देश की पूजा करनी चाहिए, अर्थात भारत के प्रति समर्पण भाव रखना चाहिए।
मोहन भागवत ने कहा कि हमें सबके प्रति सद्भभावना का व्यवहार रखते हुए मित्रों के कष्टों का निवारण करने और अपनी संगति से उन्हें सुधारने का भी प्रयास करना चाहिए। स्वयंसेवक परिवारों से मित्रता के छह गुणों को अपनाने का आह्वान किया। कहा कि हमें जो वस्त्र और भोजन आदि प्राप्त होते हैं, वह समाज के अलग-अलग वर्गों के हम पर ऋण हैं। हमें इन ऋणों को उतारना चाहिए। जो लोक कल्याण की भावना से अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं, उन्हें युगों-युगों तक याद रखा जाता है।
उन्होंने चौथा मूल मंत्र अनुशासन को बताया। कहा कि अनुशासन के बिना कोई भी समाज या राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता। राष्ट्र को एक बार फिर विश्वगुरु बनाने के लिए हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासित रहना चाहिए। उन्होंने संघ के शताब्दी वर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि पिछले सौ वर्ष में संघ का काफी विस्तार हुआ है। संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर देश के लोग अब संगठन की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखने लगे हैं। अपनी मूल परंपराओं और संस्कृति से जुड़े रहकर प्रगति करना चाहते हैं।
संघ प्रमुख ने कहा कि स्वयंसेवकों के आचरण से ही समाज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छवि बनती है। स्वयंसेवकों का आचरण जितना अच्छा होगा, संघ की छवि उतनी अच्छी बनेगी। स्वयंसेवकों को सप्ताह में कम से कम एक दिन स्मार्टफोन को छोड़कर परिवार और मित्र परिवारों के साथ बैठकर भोजन करने के अलावा राष्ट्र और सांस्कृतिक विरासत से जुड़े विषयों पर चर्चा अवश्य करनी चाहिए।
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