क्या राहुल, क्या खडग़े… दोनों को ही बोलना नहीं आता… न विषय है न विचार… न सोच है न आधार… न तैयारी रहती है और न गंभीरता दिखती है… वही रटे-रटाए संवाद…वही अडानी-अंबानी… वही मोदी की कहानी… एक ही बात बार-बार दोहराते हैं… न प्रभाव छोड़ते हैं न हाव-भाव नजर आते हैं… देश की सबसे बड़ी पार्टी आज पतन की दहलीज पर खड़ी है…लाश बुजुर्गों और अल्पसंख्यकों के कांधों पर टिकी है, मगर चैतन्यता की जिद ऐसी अड़ी है कि मजमा जमाते हैं और बेइज्जती कराते हैं… ऐसा ऐल-फेल बोल जाते हैं कि महीनों तक कांग्रेसी कचरा उठाते हैं और भाजपाई चटखारों का लुत्फ लेते नजर आते हैं… बेचारे पटवारी से लेकर कांग्रेस के दिग्गजों और नेताओं, कार्यकर्ताओं ने जी-जान लगाई… भीड़ जुटाई… लेकिन पूरी भीड़-भाड़ में जाती नजर आई, राहुल ने वहीं अडानी राग सुनाया और महफिल को मातम में डुबाया तो खडग़े ने विपक्षियों को हथियार थमाया… कुंभ पर सवाल उठाया…डुबकी को भूख और जरूरत से जोडक़र दिमागी दिवालियापन दिखाया और हर कांग्रेसी तक यह कहता नजर आया कि न आते तो अच्छा रहता… मुंह न खोलते तो बवाल नहीं मचता और न बोलते तो मान बचा रहता…मगर भीड़ देखकर जोश में आने वाले राहुल हों या खडग़े जुबान का संस्कार खो देते हैं… आदर्श रौंद देते हैं…रटी-रटाई न कहें तो कुछ ऐसा बोल देते हैं कि बवाल हो जाता है… दरअसल इसका कारण यह है कि कांग्रेस में न वैचारिकता है न भविष्य की सोच… भटके हुए लक्ष्य को लेकर राह पकडऩे और मंजिल पर पहुंचने की नादानी उनके आचरण, व्यवहार और वाणी से नजर आती है… वो जीतते भी तभी हैं, जब जनता किसी को हराना चाहे… लोगों की कांग्रेस से अपेक्षा खत्म हो चुकी है… कार्यकर्ता निढाल हो चुके हैं और नेता भी सत्ता के प्रहार से बचने के लिए मुंह छिपा रहे हैं…हालत यह है कि कांग्रेसी खुद अपने कत्ल के हथियार विरोधियों को थमा रहे हैं… राहुल अडानी, अंबानी तो खडग़े मोदी से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं… और कांग्रेसी मातम करते नजर आ रहे हैं…
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