रामेश्वर धाकड़, भोपाल। भाजपा में उम्रदराज हो रहे कद्दावर नेताओं को अपने बेटा-बेटी का सियासी भविष्य सता रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद के खिलाफ अब तक कड़े रुख की वजह से कामयाब नहीं हो पाते हैं, लेकिन बढ़ते दबाव के चलते अब भाजपा हाईकमान नेता पुत्रों के लिए गाइड लाइन तय कर सकता है। नई गाइड लाइन में अपने लाड़लों को राजनीति में लाने वाले नेताओं को सियासी मैदान छोडऩा पड़ सकता है।
‘एक परिवार एक टिकट’ का लागू हो सकता है फार्मूला
मप्र के लिहाज से बात करें तो मप्र के कई कद्दावर नेताओं के बेटा-बेटी चुनावी मैदान में उतरने को आतुर हैं। सरकार में मुख्यमंत्री समेत आधे से ज्यादा मंत्रियों का चुनाव क्षेत्र उनके बेटे ही संभाल रहे हैं। यही स्थिति अन्य राज्यों में भी है। भाजपा के ज्यादातर कद्दावर नेताओं के बेटा-बेटी राजनीतिक तौर पर परिपक्व हो चुके हैं, उन्हें सिर्फ टिकट का इंतजार है। पार्टी एक परिवार एक टिकट का फार्मूला लागू कर सकती है।
मप्र के इन नेताओं के बेटा-बेटी टिकट के दावेदार
मुख्यमंत्री के बेटे कातिर्केय चौहान, गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव, जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया, नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र प्रताप, प्रभात झा के पुत्र तुष्मुल, माया सिंह के बेटे पीतांबर, डॉ. नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण , गौरीशंकर शेजवार के पुत्र मुदित, गौरीशंकर बिसेन की पुत्री मौसम बिसेन हिरनखेड़े, पारस जैन के बेटे संदेश , कुसुम मेहदलेे के भतीजे पार्थ, रामपाल सिंह के बेटे दुर्गेश, सूर्यप्रकाश मीणा के बेटे देवेश, ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यन भी राजनीति में आने को तैयार हैं।
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