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    पार्षद के टिकट से वंचित रहे नेता अब बनेंगे एल्डरमैन

  • November 17, 2022

    • प्रदेश में 1930 एल्डरमैन नियुक्त भाजपा
    • नियुक्ति की खबर लगते भाजपा में हलचल तेज, हर विधानसभा में दर्जनों दावेदार, विधायकों के सामने खड़ा हुआ संकट

    भोपाल। प्रदेश के नगरीय निकायों में 1930 एल्डरमैन की नियुक्ति को लेकर हलचल तेज हो गई है। प्रदेश संगठन ने पत्र जारी करके नाम मांग लिए हैं तो जल्द से जल्द सूची बुलाई गई। ये बात जंगल में आग की तरह फैल गई, जिसके बाद हलचल तेज हो गई। पार्षद का टिकट लेने में नाकाम रहे अधिकतर नेता दावेदार हो गए हैं। इधर, विधायकों के सामने संकट खड़ा हो गया है। क्षेत्र में एक अनार सौ बीमार जैसी हालत हो गई है।
    विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर प्रदेश भाजपा संगठन तैयारियों में जुट गया है। स्थानीय निकाय चुनाव को तीन माह हो गए हैं, जिसको देखते हुए पार्टी एल्डरमैन की नियुक्ति को लेकर खासी सक्रिय हो गई है। संगठन का प्रयास है कि सत्ता के पदों पर कार्यकर्ताओं की नियुक्ति होना चाहिए ताकि उसे भी सरकार के होने का अहसास रहे। इसके चलते एल्डरमैन की नियुक्ति को लेकर सभी निकायों से नामों की सूची बुलाई जा रही है ताकि सरकार को भेजकर एक बार में सारी नियुक्तियां करवा दी जाएं। इसको लेकर प्रदेश संगठन ने जल्द से जल्द सूची सौंपने को कहा है। एल्डरमैन की नियुक्ति की खबर लगते प्रदेश भाजपा में हलचल तेज हो गई है। दावेदारों ने खम ठोकना शुरू कर दिया है, विधायकों व पार्टी के नेताओं ने उन्हें लॉलीपॉप जो दी थी।

    दावेदारों की बढ़ी सक्रियता
    प्रदेश के चारों बड़े शहरों भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में 12-12 एल्डरमैन नियुक्त किए जाने हैं। भोपाल में 85 पार्षद हैं तो 12 एल्डरमैन के पद हैं। राजधानी के भाजपा विधायक अपने-अपने समर्थकों को एल्डरमैन बनाने के लिए सक्रिय हो गए हैं। बड़ी बात ये है कि संगठन की मंशा है कि संगठन के आधारभूत कार्यकर्ताओं को बनाया जाए, जो अच्छे काम कर सकें।

    आश्वासन देकर बुरे फंस गए विधायक
    नगर निगम चुनाव के दौरान जिन कार्यकर्ताओं के टिकट काटे गए, उन्हें आश्वासन में एल्डरमैन का पद ही दिया गया था। अब बात नियुक्ति की होने से ये सभी सिर पर आ गए हैं। कई दावेदारों ने खम ठोकना शुरू कर दिया है, जिसके चलते सबसे ज्यादा फजीहत विधायकों, पूर्व विधायकों व प्रत्याशी रहे नेताओं की हो रही है। जिन दावेदारों का टिकट कटा था, उन्हें मनाने के लिए वे ही गई थे। अब झूठ बोलने की गुंजाइश भी नहीं है। इधर, सालभर बाद विधानसभा के चुनाव हैं, फिर कार्यकर्ता अपना हिसाब कर लेगा। ऐसी स्थिति में विधायकों के लिए एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई जैसी स्थिति बन रही है। नहीं बनाने पर खामियाजा अगले साल भुगतना पड़ेगा।

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