लक्ष्मेश्वर महादेव मंदिर छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) की राजधानी रायपुर से करीब सवा सौ किमी दूर खरौद नगर में है। यह प्राचीन छत्तीसगढ़ के पांच ललित कला केंद्रों में से एक है। मोक्षदायी नगर होने के चलते इसे छत्तीसगढ़ का काशी भी कहा जाता है। माना जाता है कि मंदिर की स्थापना श्रीराम (Sriram) ने खर-दूषण को मारने के बाद लक्ष्मणजी के कहने पर की थी, इसलिए उनके नाम पर ही इसका नाम लक्ष्मेश्वर महादेव मंदिर पड़ा।
मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग (Shivling) है, जिसकी स्थापना खुद लक्ष्मणजी ने की थी, इसमें एक लाख छिद्र हैं, इसलिए इसे लक्ष लिंग भी कहा गया। इसके एक लाख छिद्रों में से एक छिद्र ऐसा है, जो पाताल (Hell) तक जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि उसमें कितना भी पानी डालें, वह समा जाता है, वहीं एक छिद्र ऐसा है, जिसमें हमेशा पानी भरा रहता है, जिसके चलते उसे अक्षय कुंड कहा जाता है। मान्यता है कि लक्ष लिंग पर अभिषेक किया गया जल मंदिर के पीछे कुंड में चला जाता है, इसके चलते कुंड कभी सूखा नहीं। इसके अलावा लक्ष लिंग जमीन से करीब 30 फीट ऊपर है, जिसे स्वयंभू लिंग भी माना गया है।
मंदिर की खासियत
लक्ष्मेश्वर महादेव (Laxmeshwar Mahadev) मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवारें हैं, जिसके अंदर 110 फीट लंबा और 48 फीट चौड़ा चबूतरा है। इसके ऊपर ऊपर 48 फीट ऊंचा और 30 फुट व्यास की गोलाई में मंदिर है। चबूतरे का ऊपरी भाग परिक्रमा कहा जाता है। गर्भगृह में विशिष्ट शिवलिंग है, सभा मंडप के सामने सत्यनारायण मंडप, नन्दी मंडप और भोगशाला हैं। मंदिर में सावन मास में श्रावणी और महाशिवरात्रि में भव्य मेला लगता है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved