नई दिल्ली (New Delhi) । सुनवाई (hearing) के दौरान एक वकील (Advocate) को अपने लकवाग्रस्त पक्षकार (paralyzed party) को व्हीलचेयर (wheelchair) पर कोर्ट में लाना भारी पड़ गया। बुधवार को शीर्ष न्यायालय इस कदम पर आपत्ति जताई है और इसके तार ‘सहानुभूति’ बटोरने से जोड़ दिए। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस पीवी संजय कुमार ने कहा है कि इस मामले की सुनवाई वकील की ओर दाखिल जानकारी के आधार पर की जा सकती थी।
बुधवार को शीर्ष न्यायलय इफ्को टोक्यो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम राहुल कुमार मामले की सुनवाई कर रहा था। फिलहाल, इस मामले को बेंच ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के सामने दोबारा आवंटन के लिए पेश कर दिया है। दरअसल, यह मामला मुआवजे और बीमा कंपनी पर बकाया देनदारियों से जुड़ा हुआ है।
सुनवाई के दौरान जब वकील ने बताया कि संबंधित दावेदार सुनवाई के लिए कोर्ट में पेश है, तो बेंच ने इस पर आपत्ति जताई। बेंच ने यह भी कह दिया कि प्रतिवादी की कोर्ट में मौजूदगी का इस्तेमाल ‘अनुचित सहानुभूति हासिल’ करने के लिए किया जा रहा है। न्यायालय ने इस मामले में नवंबर 2019 में ही नोटिस जारी किया था और बढ़े हुए मुआवजे पर रोक लगा दी थी।
फिर भड़का सीलबंद लिफाफों का मुद्दा
जानकारी के अनुसार, बुधवार को अदालतों में सीलबंद लिफाफों में रिपोर्ट दाखिल करने की प्रथा की आलोचना की और कहा कि यह प्राकृतिक न्याय और मुक्त न्याय दोनों सिद्धांतों का उल्लंघन करती है। न्यायालय ने सुझाव दिया कि जिन मामलों में सरकार अपनी खुफिया रिपोर्ट की सामग्री का खुलासा करने में हिचकिचाती है, वहां जनहित में छूट की कार्यवाही अपनाई जानी चाहिए। न्यायालय की यह टिप्पणी तब आई जब न्यायालय, केरल उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ मलयालम समाचार चैनल ‘मीडियावन’ की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
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