संयुक्त राष्ट्र । परमाणु हथियारों को दुनिया से पूरी तरह से खत्म करने के लक्ष्य को लेकर हुआ समझौता शुक्रवार को प्रभाव में आ गया। यह समझौता संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले हुआ है। हालांकि इस समझौते पर परमाणु हथियारों से लैस देशों ने कड़ा विरोध जताया है।
अब परमाणु हथियार उन्मूलन समझौता अंतरराष्ट्रीय कानून बन गया
करीब दस साल के प्रयास के बाद अब परमाणु हथियार उन्मूलन समझौता अंतरराष्ट्रीय कानून बन गया है। इसका उद्देश्य हिरोशिमा और नागासाकी पर हमले जैसी घटना को फिर से नहीं होने देना है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने इन दोनों जापानी शहरों पर परमाणु बम का हमला किया था। नतीजतन, वहां पर दशकों तक तबाही के निशान मौजूद रहे और पीढि़यों ने विकिरण की मार झेली। बहुत से ऐसे देश जो इस समझौते में शामिल हैं और वे खुद परमाणु हथियार विकसित न करने के लिए संकल्पबद्ध हैं, वे भी मानते हैं कि मौजूदा वैश्विक स्थिति में लक्ष्य पाना बहुत मुश्किल है।
120 से ज्यादा देशों ने जताई सहमति
यह समझौता जुलाई 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की स्वीकृति पा चुका है। 120 से ज्यादा देशों ने इस पर सहमति जताई है, लेकिन इनमें वे नौ देश शामिल नहीं है जिन्हें परमाणु हथियार संपन्न माना जाता है। ये देश हैं- अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इजरायल। 30 देशों का सैन्य गठबंधन नाटो भी इस समझौते में शामिल नहीं हुआ है।
जापान ने परमाणु समझौते का समर्थन नहीं किया
परमाणु हमले की मार झेलने वाले दुनिया के इकलौते देश जापान ने भी इस समझौते का समर्थन नहीं किया है। वहां की सरकार परमाणु हथियार कभी विकसित न करने के लिए संकल्पबद्ध है, लेकिन वह इस समझौते को हकीकत से दूर मानती है। तमाम गैर-परमाणु हथियार संपन्न देश भी समझौते को लेकर बंटे हुए हैं।
दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त बनाने के लिए अभियान छेड़े बियाट्राइस फिन और उनकी टीम को 2017 में नोबेल पुरस्कार मिल चुका है। वह इस समझौते से आह्लादित हैं। कहते हैं कि हमने अपने उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है।
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