ओडिशा ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में स्थित प्रसिद्ध पुरी मंदिर के खजाने की सरंचना के बारे में पता लगाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने मंदिर के ‘रत्न भंडार’ की लेजर स्कैनिंग शुरू कर दी है। एएसआई की 15 सदस्यीय टीम उपकरणों के साथ मंदिर परिसर में दाखिल हुई और प्रक्रिया शुरू की। दरअसल, श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन (SJTA) पहले ASI को ‘रत्न भंडार’ की बाहरी दीवार के साथ-साथ उत्तरी दीवार की लेजर स्कैनिंग करने की अनुमति दे चुकी है।
सर्वे के दौरान ASI की टीम अपने साथ एक कैमरा भी साथ ले गई थी, जिससे वहां की 3-डी तस्वीरें भी ली गईं। अगर पत्थरों में कोई दरार होगी तो वह क्लिक की गई तस्वीरों से पता चल जाएगी। पुरातत्वविद् अधीक्षण दिबिशादा बी गार्नायक ने कहा कि तकनीकी टीम ने बाहरी दीवार पर 37 बिंदुओं की तस्वीरें ली हैं।
उन्होंने कहा कि भौतिक संरचना की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए दस्तावेजीकरण किया जाएगा। एएसआई की टीम जो भी जांच करेगी, उसकी रिपोर्ट SJTA को सौंपी जाएगी। एक तकनीकी टीम इस रिपोर्ट की समीक्षा करेगी। मंदिर के मुख्य प्रशासक रंजन कुमार दास ने कहा कि मरम्मत कार्यों पर निर्णय रिपोर्ट के आधार पर ही लिया जाएगा।
दरअसल, रत्न भंडार में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के कीमती आभूषण और खाने-पीने के बर्तन रखे हुए हैं। ये वो चीजें हैं, जो उस दौर के राजाओं और भक्तों ने मंदिर में चढ़ाए थे। 12वीं सदी के बने मंदिर में तब से ये चीजें रखी हुई हैं। इस भंडारघर के भी हिस्से हैं, एक बाहरी और एक भीतरी भंडार। बाहरी हिस्से को समय-समय पर खोला जाता है। त्योहार या मौके-बेमौके भी खोलकर उससे गहने निकालकर भगवानों को सजाया जाता है। रथ यात्रा के समय ये होता ही है।
रत्न भंडार का अंदरूनी चैंबर पिछले 38 सालों से बंद पड़ा है। आखिरी बार इसे साल 1978 में खोला गया था। ये आधिकारिक जानकारी है। वहीं साल 1985 में भी इनर चैंबर को खोला गया, लेकिन इसका मकसद क्या था और भीतर क्या-क्या है, इस बारे में कहीं कुछ नहीं बताया गया।
साल 2018 में विधानसभा में पूर्व कानून मंत्री प्रताप जेना ने एक सवाल के जवाब में कहा कि आखिरी बार यानी 1978 में इसे खोलने के समय रत्न भंडार में करीब साढ़े 12 हजार भरी (एक भरी 11।66 ग्राम के बराबर होता है) सोने के गहने थे, जिनमें कीमती पत्थर जड़े हुए थे। साथ ही 22 हजार भरी से कुछ ज्यादा के चांदी के बर्तन थे। साथ ही बहुत से और गहने थे, जिनका तब वजन नहीं किया गया।
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