नई दिल्ली । तिब्बत के सरतार काउंटी (Serthar County) में स्थित विश्व का सबसे बड़ा तिब्बती(The world’s largest Tibetan) बौद्ध अध्ययन केंद्र लारुंग गार बौद्ध अकादमी(Centre for Buddhist Studies Larung Gar Buddhist Academy) अब चीन की सख्त निगरानी में है। चीन ने इस क्षेत्र में लगभग 400 सैनिकों और कई हेलीकॉप्टरों की तैनाती की है ताकि धार्मिक गतिविधियों पर कठोर नियंत्रण सुनिश्चित किया जा सके। लारुंग गार बौद्ध अकादमी को सेरथांग वुतुक बौद्ध अकादमी भी कहा जाता है। यह तिब्बत के सिचुआन प्रांत में स्थित है। यह विश्व की सबसे बड़ी बौद्ध शिक्षण संस्थाओं में से एक है। इसकी स्थापना 1980 में तिब्बती बौद्ध गुरु जिग्मे फुंसोक रिनपोचे द्वारा की गई थी।
चीन सरकार ने अगले वर्ष से अकादमी पर और सख्त नियम लागू करने की योजना बनाई है। इन नियमों के तहत बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियों के अकादमी में रहने की अवधि अधिकतम 15 वर्षों तक सीमित की जाएगी। इसके अलावा, सभी धार्मिक लोगों को सरकारी पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। इन योजनाओं में संस्थान में भिक्षु और भिक्षुणियों की कुल संख्या में कमी करने और चीनी छात्रों को अकादमी छोड़ने के आदेश भी शामिल हैं। चीनी छात्रों को कथित तौर पर वहां से जाने के लिए कहा जा रहा है। ये इस बात का संकेत है कि चीन वहां आबादी को कम करने की कोशिश कर रहा है।
लारुंग गार: इतिहास और चीन का दमन
1980 में स्थापित लारुंग गार अकादमी पिछले कुछ दशकों में कई बार चीनी दमन का सामना कर चुकी है। 2001 और 2016-17 में यहां बड़े पैमाने पर कार्रवाई हुई, जिसमें हजारों इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया और अनेक बौद्ध भिक्षुओं को जबरन निकाला गया। 20 जुलाई 2016 को शुरू हुआ विध्वंस मई 2017 तक जारी रहा। इन कार्रवाइयों के कारण यहां की आबादी लगभग 10,000 से घटकर आधी रह गई।
2016 में स्थानीय सरकार ने दावा किया था कि उनका उद्देश्य अकादमी को “ध्वस्त” करना नहीं था, बल्कि क्षेत्र के पुनर्विकास के लिए एक व्यापक योजना बनाई गई थी। लेकिन इस दावे को स्वतंत्र संगठनों ने खारिज कर दिया। ‘फ्री तिब्बत’ जैसे समूहों ने चीनी सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि सरकार की मंशा ईमानदार होती, तो वे विदेशी पत्रकारों को क्षेत्र का निरीक्षण करने की अनुमति देते।
तिब्बत विवाद: इतिहास और वर्तमान
तिब्बत का मुद्दा लंबे समय से चीन के लिए संघर्ष का कारण बना हुआ है। 1950 में चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने तिब्बत पर आक्रमण किया और 1951 तक इसे अपने क्षेत्र के रूप में दावा कर लिया। इसके परिणामस्वरूप, 1959 में एक बड़े विद्रोह के दौरान दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी। उन्होंने भारत में तिब्बती निर्वासित सरकार की स्थापना की। जहां चीन तिब्बत को अपने क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा मानता है, वहीं तिब्बती लोग अभी भी अधिक स्वायत्तता या स्वतंत्रता की मांग करते हैं।
लारुंग गार बौद्ध अकादमी का परिचय और इतिहास
1980 के दशक में, जब तिब्बती बौद्ध धर्म चीन के सांस्कृतिक क्रांति के बाद पुनर्जीवित हो रहा था, तब जिग्मे फुंसोक रिनपोचे ने इस अकादमी की स्थापना की। लारुंग घाटी सुदूर पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है। शुरू में, यह स्थान केवल कुछ भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए था, लेकिन धीरे-धीरे यह स्थान तिब्बती बौद्ध धर्म के अध्ययन और अभ्यास के लिए एक प्रमुख केंद्र बन गया। दुनिया भर से छात्र—चाहे वे भिक्षु हों, भिक्षुणियों हों या आम लोग—यहां आने लगे।
महत्वपूर्ण घटनाएं
1980-90 का दशक:
शुरुआती वर्षों में अकादमी में भिक्षुओं और भिक्षुणियों की संख्या तेजी से बढ़ी। यहां पारंपरिक बौद्ध ग्रंथों, ध्यान, और दर्शन की शिक्षा दी जाती थी।
2001 में विध्वंस:
चीनी सरकार ने 2001 में अकादमी के कुछ हिस्सों को गिराने का आदेश दिया और कई छात्रों को वहां से हटा दिया। इसे तिब्बती संस्कृति और धर्म पर दबाव बनाने के एक कदम के रूप में देखा गया।
2016 में फिर से विध्वंस:
चीनी अधिकारियों ने सुरक्षा और जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर अकादमी के और हिस्सों को गिराया। इस दौरान कई नन और भिक्षुओं को अकादमी छोड़ने पर मजबूर किया गया।
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