इंदौर। प्रदेश की पहचान यूं तो सालों से शांति के टापू के रूप में रही है। इसके चलते कई बाहरी बदमाश यहां पनाह लेते आए हैं, लेकिन शहर में होने वाले अपराधों में 25 प्रतिशत मामलों में बाहरी गिरोह का हाथ होता है। शहर की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि आस-पास के कई जिलों में सक्रिय गिरोह यहां आते हैं और वारदात को अंजाम देकर रफू चक्कर हो जाते हैं। यह बढ़ते अपराधों का एक प्रमुख कारण और पुलिस के लिए एक चुनौती है।
कंजर गिरोह- शहर में चोरी, लूट, डकैती, ट्रक कटिंग में कंजर गिरोह का बड़ा हाथ है। कई बार यह गिरोह पकड़े भी जा चुके हैं और यह इस बात का आधार है। ये गिरोह देवास और सोनकच्छ से यहां आते हैं और वारदातों को अंजाम देकर रफ्फू चक्कर हो जाते हैं।
धार, टांडा के आदिवासी गिरोह-ये गिरोह भी शहर में होने वाली चोरी, डकैती और लूट में कई बार पकड़े जा चुके हैं। कई बार तो ये हत्या जैसी घटना को भी अंजाम दे चुके हैं। ये धार और टांडा से यहां आते हैं और शहर के बाहरी हिस्सों में डेरों में रुक जाते हैं, फिर रैकी कर घटनाओं को अंजाम देते हैं।
ईरानी गिरोह- यह गिरोह नकली पुलिस बनकर लोगों को ठगने के अलावा ज्वेलर्स की दुकानों पर पहुंचकर बातों में उलझाकर माल लेकर फरार हो जाता है। ये सेंधवा और भोपाल के आस-पास रहते हैं और कई बार पकड़े भी जा चुके हैं।
सांसी गिरोह- यह गिरोह ब्यावरा और राजगढ़ में सक्रिय है और चोरी के अलावा शादी में बच्चों की मदद से बैग उड़ाता है। ये भी कई बार पकड़े जा चुके हैं, लेकिन बच्चे होने के कारण छूट जाते हैं।
सिकलीगर- ये गिरोह धार, खरगोन के अलावा देवास जिले के हैं। ये लोग अवैध हथियार बनाने में माहिर हैं और पूरे देश में देसी पिस्टल बेचते हैं, जो शहर में होने वाली हत्याओं में उपयोग आती है। इसके अलावा ये लोग बर्तन चमकाने के बहाने ठगी भी करते हैं।
पारदी गिरोह- यह गिरोह गुना का है, जो शहर में लंबे समय से चोरी, लूट और डकैतियों में शामिल रहा है। इस गिरोह ने तो कुछ साल पहले एक सिख ट्रांसपोर्टर की हत्या तक कर दी थी।
छारा गिरोह- पिछले कुछ सालों से एक नया गिरोह छारा शहर में सक्रिय है। ये लूूट और डिक्की तोडक़र वारदातों को अंजाम देता है। यह गुजरात से यहां आता है और कुछ वारदातों को अंजाम देकर फरार हो जाता है।
25 फीसदी अपराधों के पीछे बाहरी गिरोह : एसपी
एसपी महेशचंद्र जैन ने इस बात की पुष्टि की कि चोरी, लूट, डकैती, वाहन चोरी जैसे मामलों में शहर में होने वाली घटनाओं में 25 प्रतिशत में ये बाहरी गिरोह हैं। मालवा शांति का टापू है और यहां के लोग अपराध में विश्वास नहीं रखते।
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