- तत्कालीन प्रमुख सचिव माला श्रीवास्तव की रिपोर्ट का हवाला देकर कांग्रेस ने लगाया आरोप
- मप्र शासन ने न तो भू-माफिया पर एफआईआर की और न ही आर्थिक वसूली की
- माला श्रीवास्तव की रिपोर्ट से ही ईदगाह हिल्स की भूमि सरकारी घोषित
भोपाल। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता अमिताभ अग्निहोत्री ने आरोप लगाया है कि राजधानी भोपाल में भूमाफिया ने 2800 एकड़ सरकारी जमीन बेच दी, लेकिन सरकार ने इस मामले में न तो माफिया के खिलाफ एफआईआर किया और न ही उनसे आर्थिक वसूली की है। अग्रिहोत्री ने बताया कि भारत शासन के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की दृढ़ इच्छा शक्ति से भोपाल रियासत का भारत में विलय 30 अप्रैल, 1949 को भारत शासन के प्रतिनिधि बीपी मेनन एवं भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खां के संयुक्त हस्ताक्षर से जारी मर्जर एग्रीमेंट से हुआ था। जिसमें शर्तों की 10 कण्डिकाओं का उल्लेख था, जिसकी सत्यापित प्रति मप्र शासन ने न्यायालय की मर्जर विवाद संबंधी याचिकाओं में भी लगायी है।
अग्निहोत्री ने आरोप लगाया है कि इस ऐतिहासिक सत्य की उपेक्षा कर मध्यप्रदेश शासन ने 1 जून को भोपाल रियासत का भारत में विलीनीकरण का दिवस मानते हुए करोड़ों रूपए का इवेंट कार्यक्रम आयोजित कर 1 जून को अगले वर्ष से शासकीय अवकाश की घोषणा की। अगर शासन के पास 1 जून का भोपाल रियासत का भारत वर्ष में विलीनीकरण का कोई दस्तावेज है, तो न्यायालय में मर्जर विवाद की याचिकाओं में 30 अप्रैल, 1949 के मर्जर एग्रीमेंट की सत्यापित प्रति क्यों लगायी? 1 जून का दस्तावेज क्यों नहीं लगाया? भोपाल रियासत के भारतवर्ष में विलय के 30 अप्रैल, 1949 की मूल प्रति कहां हैं? इसकी सत्यता जानने के लिए शासन ने जांच क्यों नहीं प्रारम्भ की? भोपाल के कस्टोडियन प्रॉपर्टी विवाद में भारत शासन एवं फिल्म अभिनेता सैफ अली के पत्र व्यवहार में भोपाल मर्जर का उल्लेख 30 अप्रैल, 1949 का किया गया। इसी मर्जर विवाद का लाभ नवाब परिवार एवं भू-माफियाओं द्वारा उठाया गया। इस घोटाले को उजाकर मध्यप्रदेश शासन की तत्कालीन प्रमुख सचिव माला श्रीवास्तव द्वारा कोर्ट में याचिका क्रमांक – 6054 / 2001 में प्रस्तुत रिपोर्ट से हुआ, जिसमें बताया गया कि भोपाल के 13 प्रमुख स्थानों की लगभग 2800 एकड़ भूमि जो सरकारी होनी थी, वह प्रायवेट हो गयी। माला श्रीवास्तव की रिपोर्ट के कारण ही ईदगाह हिल्स की भूमि को शासकीय घोषित किया गया। हाईकोर्ट ने याचिका क्रमांक – 6054 / 2001 के आदेश दिनांक 31.08.2004 में इन भूमियों को सरकार को जांच कर अधिग्रहित करने का अधिकार दिया, जिस पर अभी लगभग 19 वर्ष बीत जाने के बाद भी सरकार ने इस 2800 एकड़ भूमि को सरकारी घोषित करने की कोई कार्यवाही नहीं की।